सोमवार, जून 20, 2011

विचित्र शब्द

हिन्दी के "चंदू की चाची ने, चंदू के चाचा को चाँदी के चम्मच से चाँदनी चौंक में चटनी चटाई" जैसे वाक्यों को, जिन्हें बोलने में थोड़ी कठिनायी हो या बोलने के लिए बहुत अभ्यास करना पड़े, अंग्रेज़ी में "टँग टिविस्टर" (Tongue twister) यानि "जीभ को घुमाने वाले" वाक्य कहते हैं.

Grafic design about strange words by S. Deepak

इस तरह के वाक्य अन्य भाषाओं में भी होते हैं. चेक गणतंत्र की भाषा चेक में ऐसा एक वाक्य हैः "मेला बब्का वू कापसे ब्राबसे, ब्राबसे बाबसे वू कापसे पिप. ज़्मक्ला बबका ब्राबसे वू कापसे, ब्राबसे बाबसे वू कापसे चिप." यानि "नानी की जेब में चिड़िया थी, चिड़िया ने चींचीं की, नानी ने चिड़िया को दबाया, चिड़िया मर गयी."

विभिन्न भाषाओं कई बार छोटे से शब्द मिलते हें, जिनके अर्थ समझाने के लिए पूरा वाक्य भी कम पड़ सकता है. कुछ इस तरह के शब्दों के उदाहरण देखिये.

जापानी लोग कहते हैं "अरिगा मेईवाकू" जिसका अर्थ है, "वह काम जिसे कोई आप के लिए करता है, जो आप नहीं चाहते थे, और आप की पूरी कोशिश के बाद कि वह व्यक्ति वह काम न करे, वह उसे करता है, और आप के लिए इतना झँझट खड़ा कर देता है जिससे आप को बहुत परेशानी होती है, लेकिन फ़िर भी आप को उस व्यक्ति को धन्यवाद कहना पड़ता है". जर्मन शब्द "बेरेनडीन्स्ट" का अर्थ भी इससे मिलता जुलता है.

जापानी का एक अन्य शब्द है, "आजे ओतोरी" जिसका अर्थ है "बड़ा होने के समारोह के लिए अपने बालों का विषेश स्टाईल बनवाना, जिससे बजाय अच्छा लगने के, आप की शक्ल और भी बिगड़ी हुई लगे".

हालैंड निवासी कहते हैं "प्लिमप्लामप्लैटरेन", जब कोई पानी की सतह पर इस तरह से पत्थर फ़ैंके कि वह पत्थर कुछ दूर तक पानी पर उछलता हुआ जाये.

फ्राँसिसी बोली में कहते है, "सिन्योर तेरास", उस व्यक्ति के बारे में जो बार या रेस्टोरेंट में जा कर बहुत सा समय बिताता है, पर खाता पीता बहुत कम है जिससे उसका खर्चा कम होता है.

अलग अलग भाषाओं में बात को कहने के कुछ अजीब अजीब तरीके भी होते हैं, जैसे कि इंदोनेशिया में समय बरबाद को कहते हैं "कुसत सेबे लोकटी", यानि "अपनी कोहनियाँ चाटना". चीनी लोग, जब कोई ज़रूरत से अधिक ध्यान और हिदायत से काम करता है, कहते हैं, "तुओ कूरी फाँग पी" यानि "पाद मारने के लिए पैंट उतारना". कोरिया में जब कोई बिना आवश्यकता के बहुत ताकत लगा कर कुछ काम करता है, तो कहते हैं "मोजी जाबेरियूदाछोगा सामगान दा तायेवोन्दा" यानि "मच्छर पकड़ने के चक्कर में घर गिरा देना".

इस तरह के शब्दों के बारे में विचित्र और दिलचस्प बातें लिखीं हैं होलैंड के आदम जूआको ने अपने चिट्ठे "टिंगो का अर्थ" (The Meaning of Tingo) पर. उनका यह चिट्ठा इतना सफ़ल हुआ कि इसकी उन्होंने किताब छपवायी. किताब छपने के बाद से उन्होंने चिट्ठे पर नयी पोस्ट लिखना बन्द कर दिया, फ़िर भी पढ़ने के लिए वहाँ बहुत सी दिलचस्प बातें मिलती हैं.

हमारी भारतीय भाषाओं में भी जाने इस तरह के कितने शब्द होंगे, विचित्र तरीके होंगे बात को कहने के, ऐसे छोटे छोटे शब्द होंगे जिनके लम्बे अर्थ हों, जो सारी दुनिया से अलग हों. शायद हममें से कोई उस पर चिट्ठा बना सकता है, सफ़लता अवश्य मिलेगी. कुछ उदाहरण हमें भी देने की कोशिश कीजिये.

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शुक्रवार, जून 17, 2011

अंत का प्रारम्भ

पिछले कुछ सालों में इटली के प्रधानमंत्री श्री सिल्वियो बरलुस्कोनी का नाम विश्व भर में जाना जाने लगा है. जिन्हें इटली के बारे में कोई अन्य जानकारी नहीं है, वे भी बरलुस्कोनी का नाम जानते हैं. इसका कारण यह भी है कि विश्व भर में पत्रकारिता बदल रही है. उदारवाद और वैश्वीकरण से, अखबारों में बिक्री कैसे बढ़ायी जाये की चिन्ता भी बढ़ी है और इस चिन्ता को घटाने में बरलुस्कोनी जी बड़े सहयोगी हैं क्योंकि वह नियमित रूप से सेक्स से जुड़े स्कैंडलों के हीरो हैं जिनकी खबरे दुनिया के समाचार पत्र खुशी से छापते हैं.

उत्तरी इटली के मिलान शहर के उद्योगपति, बरलुस्कोनी ने पहला पैसा ज़मीन और घरों के बनाने और उनकी बिक्री से बनाया, फ़िर टेलीविज़न और अखबारों के व्यवसाय में झँडे गाड़े. आज उनके व्यवसाय विभिन्न क्षेत्रों में फ़ैले हैं और वह दुनिया के सबसे अमीर लोगों में गिने जाते हैं. सत्रह वर्ष पहले, राजनीति में आने से पहले, वह 1980 के दशक में इटली की समाजवादी पार्टी के नेता इटली के प्रधान मंत्री बेत्तिनो क्राक्सी के करीबी मित्र समझे जाते थे. 1990 के दशक के प्रारम्भ में इटली में "साफ़ हाथ" का स्कैंडल हुआ जिसकी चपेट में उस समय के बहुत सारे भ्रष्टाचारी राजनीतिज्ञ आ गये. जेल से बचने के लिए क्राक्सी को इटली छोड़ मोरोक्को भागना पड़ा. उस समय को इटली के "पहले गणतंत्र का अंत" कहा जाता है और तब आशा थी कि इटली में भ्रष्टाचार विहीन नया "दूसरा गणतंत्र" बनेगा. उस समय नये गणतंत्र के दूत के रूप में राजनेता बरलुस्कोनी का जन्म हुआ, उन्होंने "फोर्स्ज़ा इतालिया" (Forza Italia) यानि "मजबूत इटली" नाम का नया राजनीतिक दल बनाया जिसमें राजनीति से बाहर के नये "ईमानदार" लोगों को जगह दी गयी.

Berlusconi posters

लोगों का कहना था कि बरलुस्कोनी राजनीति से बाहर के व्यक्ति हैं, पहले से ही इनके पास पैसा है, उन्हें देश का पैसा खाने की आवश्यकता नहीं, वह ईमानदारी से देश की सेवा करेंगे. उनकी इस स्वच्छ छवि में कुछ कमियाँ थीं, जैसे कि उनके विरुद्ध चल रहे कुछ मुकदमें और राजनीति में उनका पुरानी फासिस्ट पार्टी से गठबँधन, पर इन दोनो बातों को उनके प्रशंसकों ने बहुत गम्भीरता से नहीं लिया. नब्बे के दशक में उन्होंने चुनाव जीते और सरकार बनायी, लेकिन गठबँधन के साथियों ने उनका पूरा साथ नहीं दिया और उनकी सरकार बहुत समय तक नहीं चली. उसी समय में उन पर लगे मुकदमे भी बढ़ने लगे. इससे बरलुस्कोनी ने दो तरह की बातों को बढ़ावा दिया - पहली बात कि मुझसे सत्ता में रहने वाले वामपंथी दल डरते हैं और मुझे राह से हटाने के लिए वामपंथी मजिस्ट्रेटों के सहयोग से झूठे मुकदमे चलाये रहे हैं, और दूसरी बात कि मैं देश को तरक्की की राह पर ले जाना चाहता हूँ लेकिन बाकी के दल आपस में मिल कर मुझे यह मौका नहीं दे रहे.

इन्हीं दो संदेशों को वह विभिन्न रूपों में पिछले दशक में भी दौहराते रहें हैं, हालाँकि इस दशक में वह स्वयं सबसे अधिक समय से सत्ता में हैं. जवान कम उम्र की लड़कियों और युवतियों पर सेक्स सम्बंधी बातें व इशारे करना, अपनी मर्दानगी की डींगे मारना, इन सब बातों के लिए वह शुरु से ही जाने जाते थे. प्रधानमंत्री बनने के बाद जब विभिन्न अंतरराष्ट्रीय सभाओं आदि में उन्होंने अन्य देशों की नारी नेताओं के बारे में बिना सोचे समझे टिप्पणियाँ की या इशारे किये, तो विभिन्न देशों की जनता ने उन्हें पहचानना शुरु कर दिया. विरोधी दलों की औरतों के बारे में उनकी टिप्पणियाँ बार बार अखबारों में मुख्यपृष्ठ का मसाला बनती रही हैं.

अपनी इस दृष्टि के समर्थन में उन्होंने यह कहना शुरु कर दिया कि मैं जिस औरत को चाहूँ, उसे राजनीति में नेता बना सकता हूँ, क्योंकि नेता बनने के लिए उनको बस किसी पुरुष नेता का सहारा चाहिये, और कुछ नहीं. जनता में वह बहुत लोकप्रिय थे, और उनकी इस तरह की बातों को बहुत गम्भीरता से नहीं लिया गया, लोग कहते थे कि वह अच्छे नेता हैं, काम बढ़िया करते हैं, इस तरह की बातें तो वह हँसी मज़ाक में कहते रहते हैं और साथ ही यह भी कि इस तरह की बातें उनकी व्यक्तिगत जीवन की बाते हैं, इन्हें गम्भीरता से नहीं लेना चाहिये.

पर पिछले दो तीन सालों में उनकी इस तरह की बातें इतनी बढ़ गयीं हैं कि इन बातों के पीछे उनकी सरकार क्या करती है या नहीं करती, इसकी बात होनी बन्द हो गयी है. उन पर चलने वाले मुकदमे हर साल नये जुड़ रहे हैं, लेकिन वह कहते हैं कि सब झूठे हैं, कि मुकदमे कम्युनिस्ट मजिस्ट्रेटों द्वारा उन्हें सत्ता से हटाने के लिए बनाये जा रहे हैं. उनकी सरकार ने कई नये कानून बनाये हैं ताकि वह अपने मुकदमों से छुटकारा पा सकें.

उनके विरुद्ध पैसे दे कर जवान युवतियों से सेक्स सम्बंध करने के बहुत से मामले निकले हैं. पैसा दे कर सेक्स करना, यह इतालवी कानून के विरुद्ध नहीं, लेकिन युवती कम से कम 18 साल की होनी चाहिये. लेकिन अन्य युवतियों की वेश्यावृति से पैसे कमाना, यानि दल्लेबाज़ी गैरकानूनी है.

इसलिए, इन मामलों में यही कहा गया कि उन्होंने कोई गैर कानूनी काम नहीं किया, लेकिन उन युवतियों ने पत्रिकाओं को प्रधान मंत्री के साथ अपने आत्मीय अनुभवों की बातों के साक्षात्कार बेच कर सनसनी फैलायी और दल्लाबाज़ी के अपराध में उनके कुछ सहयोगियों पर मुकदमे चले. ऐसी बातें भी निकलीं कि अच्छे खाते पीते घरों की पढ़ी लिखी युवतियाँ उनसे दोस्ती बनाती हैं ताकि ऊँचे पद की नौकरी या संसद में जगह पा सकें. कहते हैं कि उनके मंत्री मंडल में और देश के विभिन्न शहरों की स्थानीय सरकारों में इस तरह से उन की जान पहचान वाली बहुत सी यवतियाँ हैं जिनमें से कुछ ने स्वीकारा है कि उनके प्रधान मंत्री से प्रेम या सेक्स सम्बंध भी रहे हैं. उनकी संगीत, नृत्य और कम कपड़े पहने हुए युवतियों की पार्टियों में विदेशी राष्ट्रपति, मंत्री, प्रधानमंत्री भी हिस्सा लेते हैं, इसकी बातें भी कई बार निकली.

इन सब बातों में हर बार अखबार में पहले पन्ने पर हेडलाईन निकलती हैं, कुछ दिन हल्ला उठता है, फ़िर बात गुम हो जाती है, यह समझना कठिन होता है कि क्या सच है, क्या झूठ. तीन साल पहले उनकी पत्नी ने उन पर आरोप लगाया कि वह नाबालिग युवतियों से सम्बंध बना रहे थे और उनसे अलग होने का फैसला किया. लेकिन 75 वर्षीय बरलुस्कोनी इससे हताश नहीं हुए हैं और तलाक के बाद उनके चर्चे और भी बढ़ गये हैं. कुछ महीने पहले, मोरोक्को की एक सत्रह साल की नाबालिग लड़की रूबी से सेक्स का स्कैंडल निकला, जिसकी बहुत चर्चा रही, लेकिन यह कहना कठिन है कि इसका कुछ असर पड़ेगा या यह भी भुला दिया जायेगा. इस बात पर कुछ मास पहले सारी इटली में विभिन्न शहरों में उनके विरुद्ध स्त्री समूहों द्वारा आयोजित बड़े प्रदर्शन हुए थे. नीचे की तस्वीरों में, बरलुस्कोनी के विरुद्ध बोलोनिया शहर में हुए प्रदर्शन की कुछ तस्वीरें.

Anti-Berlusconi protests, Bologna, February 2011 - images by S. Deepak

Anti-Berlusconi protests, Bologna, February 2011 - images by S. Deepak

Anti-Berlusconi protests, Bologna, February 2011 - images by S. Deepak

विदेश में लोग बार बार पूछते हैं कि इतने स्कैंडल के बाद भी बरलुस्कोनी कैसे प्रधानमंत्री बने हुए हैं और जनता में इतने लोकप्रिय हैं. ऐसा नहीं कि इटली में उनके विरुद्ध बोलने वाले लोग नहीं, लेकिन यह भी सच है कि 30 या 33 प्रतिशत वोट लेने वाली उनकी पार्टी पिछले राष्ट्रीय चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी थी. यानि, 67 से 70 प्रतिशत लोग उनके विरुद्ध हैं, पर उनके विरोधी अलग अलग गुटों या दलों में बँटे हैं, मिल कर उनका सामना नहीं कर पाते. पिछले दो दशकों में विरोधी दल अगर सत्ता में आये भी हैं, तो आपस में ही लड़ते रहे हैं.

लेकिन शायद अब स्थिति कुछ बदलने लगी है. मई के अंत में देश के कई बड़े शहरों में चुनाव हुए. करीब करीब हर जगह, बरलुस्कोनी की पार्टी को मात मिली. पिछले सप्ताह, सरकार के चार निर्णयों पर विरोधी दलों ने जनमत का आयोजन किया, जिसमें बरलुस्कोनी ने सबसे कहा कि वोट देने नहीं जाईये ताकि जनमत असफ़ल हो जाये. लेकिन लोग वोट देने गये और सरकार के चारों निर्णयों को जनता ने गलत कहा, यानि सरकार को यह निर्णय बदलने पड़ेंगे. इनमें से एक निर्णय बरलुस्कोनी पर चलने वाले मुकदमें से सम्बंधित भी है.

कल तक बरलुस्कोनी जी लगता था कि अपने किले में सुरक्षित हैं, उन्हें कोई हरा नहीं सकता, अब अचानक लोग कहने लगे हैं कि शायद बरलुस्कोनी का समय गया, जनता का उन पर विश्वास नहीं रहा. बहुत से लोग कह रहे हैं कि यह बरलुस्कोनी के अंत का प्रारम्भ है.

उनकी सरकार के पास अभी दो साल और हैं. प्रतीक्षा करनी पड़ेगी यह देखने के लिए कि क्या वह इन दो सालों में अपनी छवि को सुधार सकेंगे? नयी नीतियाँ बना सकेंगे जिनसे उनके प्रशंसक फ़िर से उन पर विश्वास करने लगें? क्या विरोधी दल मिल कर काम कर सकेंगे और सरकार बना सकेंगे? इन सब प्रश्नों के उत्तर तो समय ही देगा.

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शुक्रवार, जून 10, 2011

ब्राज़ील डायरी (2)

पिछले दिनों मुझे ब्राज़ील के गोयास और परा प्रदेशों में यात्रा का मौका मिला. उसी यात्रा से मेरी डायरी के कुछ पन्ने प्रस्तुत हैं. कल इस डायरी का पहला भाग प्रस्तुत किया था. आज प्रस्तुत है दूसरा और अंतिम भाग.

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3 जून 2011, अबायतेतूबा (परा)

ब्राज़ील में गोरे, काले, भूरे, हर रंग के लोग मिलते हैं. अफ्रीकी, अमेरंडियन और यूरोपीय लोगों के सम्मिश्रण से एक ही परिवार में तीनो जातियों के चेहरे दिखते हैं. अक्सर लड़के और लड़कियाँ छोटे छोटे कपड़े पहनते हैं और शारीरिक नग्नता पर कोई ध्यान नहीं देता. अमेज़न जँगल में दूर दूर के गाँवों में भी लोग इसी तरह के छोटे छोटे पश्चिमी लिबास पहनते हैं.

यह वस्त्र मेरे मन में समृद्ध यूरोप या अमरीका की छवि बनाते हैं. भारत में इस तरह के कपड़े तो केवल बड़े शहरों में अमीर घर के लोग ही पहनते हैं. इसलिए उन्हें देख कर अक्सर उनकी गरीबी को तार्किक स्तर पर समझता हूँ लेकिन भावनात्मक स्तर पर महसूस नहीं कर पाता हूँ.

(नीचे की तस्वीरों में अबायतेतूबा के ग्रामीण और नदी के किनारे पर रहने वाले गरीब लोग)

Rural area, Abaetetuba, Parà Brazil - Images by S. Deepak

River area, Abaetetuba, Parà Brazil - Images by S. Deepak

मन में कुछ अज़ीब सा लगता है. गोरा चेहरा, सुनहरे बाल, छोटे छोटे आधुनिक कपड़े, ऐसे लोग गरीब कैसे हो सकते हैं?

गरीबी और भूख से भी अधिक चुभती हैं, परिवार में हिँसा की कहानियाँ, विषेशकर यौन हिँसा की कहानियाँ. अमेज़न जँगल में नदियों में हज़ारों द्वीप हैं जिनमें रहने वाले रिबारीन लोग हैं. उनमें छोटी छोटी चौदह पंद्रह साल की गर्भवती लड़कियों को देख कर बहुत दुख होता है. नदी के किनारे घर हैं, एक दूसरे से कटे हुए, जहाँ एक घर से दूसरे घर जाने के लिए नाव से ही जा सकते हैं, जँगल को पार करके जाना बहुत कठिन है. इस तरह से हर परिवार अपने आप में अलग द्वीप सा है. मेरे साथ की सोशल वर्कर ने बताया कि अक्सर नाबालिग लड़कियों से यौन सम्बन्ध बनाने वाले उनके पिता या अन्य पुरुष रिश्तेदार होते हैं.

इस तरह एक परिवार में पति पत्नि, उनके बच्चे और पिता और बेटियों के हुए बच्चे साथ साथ देखने को मिले. इस बात पर नदियों के किनारे पर बसे, बाकि दुनिया से कटे हुए इस समाज में शायद अधिक चेतना भी नहीं है. जब एक युवती से मैंने उसके पति के बारे में पूछा, तो उसने सहजता से कहा कि उसका पति नहीं है, बल्कि उसके बच्चे उसके पिता के साथ हुए हैं. इस तरह के परिवार भी बहुत देखे जहाँ घर में एक स्त्री के तीन चार बच्चे थे, लेकिन हर बच्चे का पिता अलग पुरुष था.

होटल में, स्वास्थ्य केन्द्र में, हर तरफ़ नाबालिग बच्चों से सेक्स सम्बन्ध और उनके यौनिक शोषण के बारे में पोस्टर लगे हैं, चूँकि नाबालिग बच्चों को खोजने वाले पयर्टक भी यहाँ बहुत आते हैं. कुछ सोचते हैं कि एड्स की बीमारी का इलाज, नाबालिग कमसिन बच्ची से सम्भोग करने से होगा. (नीचे की तस्वीर में अबायतेतूबा के एक स्वास्थ्य केन्द्र में बच्चों के यौनिक शोषण के बारे में पोस्टर)

Poster on sexual exploitation of minors, Parà Brazil - Images by S. Deepak

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बहुत सुन्दर है अमेज़न का जँगल. हर तरफ़ हरियाली और नदियाँ, झीलें, पक्षी. बहुत सुन्दर लोग भी हैं. लेकिन उनकी सुन्दरता में गरीबी, हिँसा और शोषण की इतनी कहानियाँ. पर वहाँ के गरीबों और भारत के गरीबों में एक बड़ा अंतर दिखता है, अपने आत्मसम्मान का. भारत में लगता है कि अगर आप गरीब हैं या मजदूरी का काम करते हैं या वैसा काम करते हें जिसे नीचा समझा जाये, तो वह लोग "जी, जी हज़ूर" करके अपने आप को नीचा दिखाने को मजबूर होते हैं, तथा अपने आप को ऊँचा समझने वाले लोग उनसे मानव जैसा व्यवहार भी नहीं करते.

आनन्द गिरिधरदास की किताब "इंडिया कालिंग"  (India Calling, Anand Giridhardas, Harper Collins India, 2011) में इसका एक वर्णन है जिसे पढ़ कर मन बहुत क्षुब्ध हुआ था. इस किताब में एक जगह वह बताते हैं एक घर का काम करने वाले नौकर के व्यवहार के बारे में:
तब मुझे समझ में आया. उसने मुझे पहचाना नहीं था. उसने सोचा था कि मैं डिलिवरीवाला था, क्योंकि मैंने टी शर्ट और निकर पहनी हुई थी, और इसलिए भी कि इज़्ज़तदार भारतीय गद्दे अपने आप नहीं उठाते. जैसे ही उसने मुँह बनाया और मुझे जाने के लिए कहा, मैंने उसकी आँखों में आँखें डाल कर उसे याद दिलाया कि मैं सुबह उनके घर नाशते पर आया था. उसमें जो बदलाव आया, मैं उसे कभी भूल नहीं पाऊँगाः वह मेरी आँखों के सामने सिकुड़ कर छोटा हो गया, मालिक से नौकर. उसका तना हुआ बदन झुक गया. उसकी आँखों में विनीत भाव आ गया. जो हाथ इधर उधर चला रहा था, झुक कर शरीर से जुड़ गये. "जी सर, क्षमा कीजिये सर, जी सर" करके बात करने लगा. थोड़ी देर पहले वह पुरुष था और मैं बच्चा. अब वह बच्चा बन गया था, मुझे माफ़ी माँग रहा था, डरा हुआ उम्मीद कर रहा कि मैं यह बात किसी से कहूँगा नहीं.
भारत में इस तरह के अनुभव आम हैं. जबकि ब्राज़ील के गरीब लोगों के बात करने में इस तरह से खुद को नीचा समझना नहीं दिखा. हम लोग वहाँ की झोपड़पट्टी में गये, वहाँ चाहे लोग कितने भी गरीब थे, उनके बात करने के ढंग में आत्मविश्वास था, लगा जैसे वह कह रहे हों कि पैसे न हों तो भी हम तुमसे किसी बात में कम मानव नहीं.

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4 जून 2011, बेलेम

कल शाम को अबायतेतूबा से वापस आये थे. सुबह वहाँ से अंद्रेया का टेलीफ़ोन आया. हमारे जाने के बाद, उस झोपड़पट्टी के पास पुलिस वालों और नशे की सम्गलिंग करने वालों के बीच घमासान युद्ध हुआ था जिसमें दस लोग मारे गये.

किस्मत अच्छी थी कि हमारे वहाँ रहते कुछ नहीं हुआ था. जल्दी से सूटकेस तैयार करना है, यह यात्रा भी स्माप्त होने वाली है.

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गुरुवार, जून 09, 2011

ब्राज़ील डायरी (1)

पिछले दिनों मुझे ब्राज़ील के गोयास और परा प्रदेशों में यात्रा का मौका मिला. उसी यात्रा से मेरी डायरी के कुछ पन्ने प्रस्तुत हैं.

24 मई 2011, गोयास वेल्यो

बोर्ड पर लिखा था, "ओ कुआरो". मैंने मेक्स से उसका मतलब पूछा तो उसने बताया कि यह ब्राज़ील की ग्वारानी जनजाति के अमेरिंडियन लोगों का आपस में नमस्ते कहने का तरीका है.

मेक्स प्राथमिक स्कूल के बच्चों को प्राचीन अफ्रीकी और अमेरिंडियन सभ्याताओं के बारे में पढ़ाता है. वह बोला, "हम लोगों के खून में, यूरोप से आये लोगों के साथ साथ, अफ्रीका से लाये गुलामों और यहाँ के रहने वाले मूल अमेरिंडियन निवासियों का खून भी मिला है. एक ही ब्राज़ीली परिवार में तुम्हें सुनहरे बालों और नीली आँखों वाले यूरोपी चेहरे, काले अफ्रीकी चेहरे, भूरे अमेरिंडियन चेहरे और इन सबके सम्मिश्रिण से बने हर रंग के चेहरे मिलेंगे. लेकिन आज का ब्राज़ील वासी, अपने आप को यूरोपीय मानना बेहतर समझता है, हमारी सभ्यता पर यूरोपी भाषा, सोच विचार, धर्म हावी हैं."

"अफ्रीकी सभ्यता या अमेरिंडियन सभ्यता की हमारी जड़ों की, किसी को परवाह नहीं, वे तो आजकल नीचे दर्जे की सभ्यताएँ मानी जाती हैं. उनको याद रखना या बना कर रखना बेकार है, ऐसा कहते हैं. अधिकतर लोग उन भाषाओं और सभ्यताओं के बारे में कुछ जानना चाहते ही नहीं. लेकिन अपने खून में मिली सभ्यता, संस्कृति, किस्से कहानियाँ, पाराम्परिक ज्ञान को यूँ फैंक देना गलत है." मेक्स ने कुछ हताश हो कर बताया, "सच तो यह है कि आज चाहो भी तो ग्वारानी भाषा किससे बोलो? जो भाषा मर चुकी है, भुला दी गयी है, उसे मेरे कितना भी चाहने से फ़िर से जीवित नहीं किया जा सकता."

(नीचे की तस्वीरों में विला स्पेरान्ज़ा स्कूल में अफ्रीकी और अमेरिंडियन मुखौटे)

African mask, Goias Velho, Brazil, Images by Sunil Deepak

Amerindian mask, Goias Velho, Brazil, Images by Sunil Deepak

उसकी इस बात से मैं हिन्दी के बारे में सोचने लगा. आज भारत में भी सब माँ पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा अंग्रेजी बोले, अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़े. मैं खुद भी कितना ही "हिन्दी हिन्दी" बोलता सोचता रहूँ, सच तो यही है कि बात थोड़ी सी भी जटिल होने लगे तो मुझसे हिन्दी में बात नहीं की जाती, अंग्रेज़ी में की जाती है. धीरे धीरे क्या हिन्दी भी एक दिन ग्वारानी बन जायेगी?

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25 मई 2011, गोयास वेल्यो

मैंने एड्रियानो से पूछा कि उसने अपनी बेटी को "विला स्पेरान्सा" के स्कूल में क्यों पढ़ाना चाहा, तो उसने बताया, "मैंने इस स्कूल के बनाने का कुछ काम किया था. तब मुझे बच्चों के लिए इस स्कूल में इतने ध्यान से बनायी गयी बच्चों के खेलने की जगहें, सोचने की जगहें, पढ़ने की जगहें, आदि देख कर बहुत अच्छा लगा. जब मेरी बेटी ओलिन्दा को स्कूल में दाखिल करने का समय आया तो मैंने सोचा कि उसे इसी स्कूल में पढ़ाना चाहिये. मेरे कई मित्रों ने मुझसे कहा कि यह स्कूल बेकार है, यहाँ ठीक से पढ़ायी नहीं होती, बच्चों को खेल खिलाते रहते हैं, होम वर्क भी नहीं देते, किताबें भी कम है, वगैरह. पर वह लोग यह इस लिए कहते हैं क्योंकि यहाँ की पढ़ायी के तरीके को ठीक से नहीं समझते. मैं यहाँ के पढ़ने खेलने के मिले जुले तरीकों से बहुत खुश हूँ."

बाद में मैंने मेक्स से पूछा कि लोग तुम्हारे स्कूल के बारे में इस तरह क्यों सोचते हैं कि यहाँ ठीक से पढ़ायी नहीं होती?

मेक्स इस स्कूल का जन्मदाता है और कर्ता धर्ता भी. पहाड़ी पर, रियो वेरमेलियो नदी के किनारे, एक बहुत सुन्दर जगह पर बना है "विला स्पेरान्सा" यानि "आशा का घर". हर तरफ़ रंग बिरंगी कुर्सिया मेज़, खेलने की चीज़ें और किताबें. बस एक दिक्कत है यहाँ कि एक क्लास से दुसरी में जाने के लिए बहुत सीढ़ियाँ चढ़नी उतरनी पड़ती हैं.

मेक्स ने कहा, "हम लोग पढ़ायी और खेल के साथ साथ सभ्यता की बात भी करते हैं जिसमें पुरानी अफ्रीकी और अमेरिंडियन कहानियाँ, रीति रिवाजों, नृत्य, संगीत और गीत, वस्त्र, पाराम्परिक खाने आदि के बारे में सप्ताह में एक दिन उत्सव मनाया जाता है. इसका ध्येय है कि हम अपनी प्राचीन जड़ों के प्रति शर्मिन्दा न हों. बल्कि अपनी साँस्कृतिक धरौहर को पहचाने, उसे सम्भाल कर रखें और उस पर गर्व करें. लेकिन यहाँ एवान्जलिक और कैथोलिक दो तरह के ईसाई धर्म का बहुमत हैं, उनके कुछ लोगों ने कहना शुरु कर दिया कि हम बच्चों में पुराने अफ्रीकी और अमेरिंडियन धर्म जैसे मुकम्बा या ओरिशा, का बढ़ावा दे रहे हैं, ताकि बच्चे अपना धर्म बदल दें. यह बात ठीक नहीं क्योंकि हम किसी को धर्म बदलने के लिए नहीं कहते, पर फ़िर भी इस बात से बहुत से लोगों ने यह कहना शुरु कर दिया है कि विला स्पेरान्सा में बच्चों को नहीं पढ़ाना चाहिये. वही लोग हमारे स्कूल के बारे में गलत अफवाहें फैलाते हैं."

(नीचे की तस्वीरों में विला स्पेरान्ज़ा स्कूल से दिखती रियो वेरमेल्यो नदी और स्कूल में अफ्रीकी सभ्यता का कार्यक्रम)

Vila Esperança school view, Goias Velho, Brazil, Images by Sunil Deepak

African living festival in Vila Esperança, Goias Velho, Brazil, Images by Sunil Deepak

मैं भारत में होने वाली विभिन्न धर्मों के बीच होने वाली बहस के बारे में सोचने लगा. देश, परिवेश बदल जाते हैं, लेकिन मानव अपनी भिन्नताओं को ले कर लड़ने झगड़ने का कोई न कोई बहाना खोज ही लेता है! धर्म बदलने बदलवाने को ले कर तो इतनी बहस और लड़ाईयाँ होती हैं. कर्णाटक में गया था तो वहाँ गाँवों में कुष्ठ रोग तथा एडस रोग के लिए काम करने वाली कैथोलिक ननस् पर वहाँ के कुछ हिन्दु दल धर्म बदलने का प्रचार करने का आरोप लगा रहे थे. मेक्स की तरह सिस्टर आइडा ने भी मुझसे कुछ ऐसी ही बात कही थी.

मुझे मेक्स का स्कूल बहुत अच्छा लगा. दिल किया कि काश बचपन में मुझे भी इस तरह के स्कूल में पढ़ने का मौका मिलता, जहाँ कुछ रटना नहीं पढ़ता, हर बात में बच्चों को स्वयं सोचने समझने के लिए प्रेरित किया जाता है.

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28 मई 2011, गोयानिया

जूनियर मेरे साथ काम करने वाली मेरी ब्राज़लियन मित्र का बेटा है, वह होटल में मुझे लेने आया. करीब पंद्रह साल बाद उससे मिल रहा था. मुझसे गले लग कर मिला. जब अंतिम बार मिले थे, तब वह स्कूल में पढ़ता था, अब वह विवाहित है दो बच्चे हैं और वकील का काम करता है. पर यह जूनियर उस पंद्रह साल पहले वाले खेल कूद और सिनेमा में दिलचस्पी रखने वाले लड़के से बहुत भिन्न था जिससे पिछली बार मिला था. अब उसके चेहरे पर मृदुल मुस्कान थी, और धीरे धीरे सोच समझ के बोलने वाला हो गया था.

करीब दस साल पहले, एक दिन जूनियर कार में कहीं जा रहा था, चौराहे पर लाल बत्ती के हरा होने का इन्तज़ार कर रहा था, जब किसी ने कार की खिड़की से उसे बन्दूक दिखा कर लूटने की कोशिश की थी. जूनियर ने कार चला कर भागने की कोशिश की थी, तो लूटने वाले ने उसके सिर पर गोली मारी थी. किस्मत अच्छी थी, जूनियर मरा नहीं, कई महीनों तक बेहोश पड़ा रहा, जब होश आया तो बोल नहीं पाता था, उसने फ़िर से बोलना सीखा. अब भी बोलते बोलते कई बार अटक सा जाता है, इसलिए धीरे धीरे बोलता है.

स्वास्थ्य मंत्रालय में गया. वहाँ काम करने वाली एक अन्य पुरानी मित्र के बारे में पूछा, तो मालूम चला कि वह कई महीनो से छुट्टी पर चल रही है. मेरी मित्र खरीदारी करने सुपरमार्किट गयी थी. खरीदे सामान की ट्राली को ले कर निचले तल पर कार पार्क में पहुँची तो दो लोगों ने उसे चाकू दिखाया. सब सामान, पैसा, घड़ी, कार, पर्स आदि ले लिया. बेचारी को इतना धक्का लगा कि तब से मनोविज्ञान विशेषज्ञ से चिकित्सा चल रही है.

ब्राज़ील यात्रा में इस तरह की कहानियाँ इतनी सारी सुनने को मिलती हैं कि अकेले बाहर जाने से बहुत डर लगता है. कार में कहीं जाते हैं तो हमेशा दरवाज़ा लोक्क करके खिड़कियाँ बन्द करके जाते हैं. मुझे यह भी सलाह दी गयी कि उँगली से सोने की अँगूठी को उतार देना ही बेहतर है, लेकिन बहुत कोशिश करने पर भी उसे उँगली से नहीं निकाल पाया, तो मेरी मित्र बोली, "भगवान न करे कि वह अँगूठी लेने के लिए तम्हारी उँगली ही काट लें!"

सभी पैसे वाले लोग यहाँ ऊँचे गगनचुम्बी घरो में रहते हैं, जिनके आसपास ऊँची दीवारें हैं और गेट पर बन्दूक लिये हुए संतरी.

बेलेम विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाले प्रोफेसर क्लाउदियो कह रहे थे, "हम लोग शौध कार्य के लिए पिछले दो सालों से शहर के बाहरी हिस्से और आसपास के गाँवों में घूम रहे हैं. वहाँ की हालत कितनी बुरी है, इसका शहर में रहने वालों को पता नहीं. न ठीक से बिजली पानी, न सफ़ायी, न रहने के लिए ठीक से घर. मैंने सोचा भी नहीं था कि हमारे ब्राज़ील में लोग इस तरह भी रह सकते हैं. इसीलिए वहाँ के लोगों में हिँसा है, बहुत गुस्सा है. इस तरह का जीवन होगा तो गरीब नवयुवक तरह तरह के नशे करेंगे ही."

यह सच है कि ब्राज़ील के शहर देखो तो लगता है यूरोप या अमरीका में हो, जबकि शहर के बाहरी हिस्सों तथा गाँवों में रहने वालों की स्थिति पिछड़ी हुई है. लेकिन जिस तरह की भूखी नँगी गरीबी और गन्दगी भारत में दिखती है, उसके हिसाब से तो ब्राज़ील की गरीबी कम ही लगती है. अमीरों और गरीबों के बीच विषमताएँ भारत में कम नहीं, लेकिन भारत में गरीबों में इस तरह की हिँसा क्यों नहीं है, यहाँ क्यों है?

भारत में किसी भी गरीब से गरीब जगह पर भी, किसी भी झोपड़पट्टी में अकेले जाते मुझे कभी डर नहीं लगा, बल्कि मैं सोचता हूँ कि गरीब झोपड़ियों में लोग बहुत प्यार और भोलेपन से मिलते हैं. पर यहाँ की झोपड़पट्टी में अकेले जाने का अर्थ लूट और हिँसा हैं. लेकिन यह भी सच है कि मैं कभी भारत में नक्सलवादी हिँसा क्षेत्र में नहीं गया, शायद वहाँ जा कर इसी तरह का डर लगे?

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