tag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post2486925899690084010..comments2024-03-27T06:40:09.006+01:00Comments on जो न कह सके: असली भारतीयSunil Deepakhttp://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-11623189010638163732008-01-27T10:11:58.301+01:002008-01-27T10:11:58.301+01:00सवाल यह है की हिन्दी लिखे को कौन और कितना पढ़ता. अं...सवाल यह है की हिन्दी लिखे को कौन और कितना पढ़ता. अंग्रेजी पढ़ने के लिए पैसे खर्चने वाला वर्ग है.संजय बेंगाणीhttp://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-42595430745496455172008-01-29T15:54:01.840+01:002008-01-29T15:54:01.840+01:00'भारतीय' के दायरे की व्यापकता और उसमें यथा...'भारतीय' के दायरे की व्यापकता और उसमें यथार्थ की गहराई कितनी है, इसी से असली भारतीय और असली भारतीय साहित्य की पहचान हो सकती है। भारत के अतीत, वर्तमान और भविष्य का सच, सपना और सरोकार कितनी समग्रता में किसी साहित्य में आ सका है, इसी से उसका मूल्यांकन हो सकता है। <br><br>अंग्रेजी में लिखने वाले कई भारतीय लेखक भारतीय सामाजिक यथार्थ के एक छोटे-से अंश के बारे में, अंग्रेजी भाषी भारतीय पाठकों के छोटे से वर्ग कोया विदेशी पाठक वर्ग को ध्यान में रखकर लिखते हैं। पर चूंकि शिक्षा, समृद्धि और सत्ता के मामले में यह पाठक वर्ग काफी आगे है, गैर-अंग्रेजी भारतीय साहित्य के मुकाबले उसकी चर्चा और प्रसिद्धि अधिक होती है, और इसलिए अंग्रेजी में लेखन को स्वतंत्र, सफल पूर्णकालिक पेशा बना पाना संभव है। <br><br>बांग्ला, तमिल, मलयालम जैसी कुछ भारतीय भाषाओं के साहित्य के मामले में स्थिति थोड़ी बेहतर है। परंतु समकालीन हिन्दी साहित्य का पाठक वर्ग बहुत ही सिमटा हुआ है। कुछेक सौ या हजार हिन्दी पाठकों के छोटे और अल्पसमृद्ध समूह के दायरे में सिमटने को मजबूर हिन्दी के लेखक चाहकर भी लेखन को आजीविका का स्वतंत्र और आत्मनिर्भर माध्यम नहीं बना सकते। अज्ञेय, निर्मल वर्मा जैसे हिन्दी लेखकों ने अपने लिए पश्चिम के द्वार खोल लिए थे, इसलिए वे ऐसा कर सके। आज भी हिन्दी के कुछ आलोचक, साहित्यकार और प्रोफेसर विदेशी विश्वविद्यालयों और अकादमिक संस्थानों से किसी-न-किसी रूप में जुड़े हैं और उनके लिए साहित्य समृद्धि और सम्मान हासिल करने का सफल साधन बना है। <br><br>साहित्य की राजनीति, जोड़-तोड़ या 'रैकेटिंग' से अलग रहने वाले हिन्दी के साहित्यकार बस संतोष को ही परम सुख मानकर जीते हैं, नहीं तो अतृप्त आत्मा की तरह बेचैनी लिए ही गुजर जाते हैं।Srijan Shilpihttp://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-51561569407660681772009-10-02T11:57:53.636+02:002009-10-02T11:57:53.636+02:00आपका लेख असली भारतीय, एक प्रयास है भारतीय भाषाओँ म...आपका लेख असली भारतीय, एक प्रयास है भारतीय भाषाओँ में बुद्धिजीवियों की बात पहुँचने का.जितेन्द्र सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08150589308219146782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-25304615301086436692009-10-02T12:01:56.637+02:002009-10-02T12:01:56.637+02:00http://havedfun.blogspot.com/2009/10/blog-post.htm...http://havedfun.blogspot.com/2009/10/blog-post.htmlजितेन्द्र सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08150589308219146782noreply@blogger.com