tag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post8156207616146319177..comments2024-03-27T06:40:09.006+01:00Comments on जो न कह सके: रिश्तेSunil Deepakhttp://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-28081102417943275702009-07-17T06:29:27.161+02:002009-07-17T06:29:27.161+02:00दीपक जी, बहुत दिनों बाद बहुत शानदार आलेख पढ़ा है। ...दीपक जी, बहुत दिनों बाद बहुत शानदार आलेख पढ़ा है। घटनाओं और चरित्रों के वर्णन ने ही सब कुछ स्पष्ट कर दिया।दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedihttp://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-46008319592419430302009-07-17T08:52:46.696+02:002009-07-17T08:52:46.696+02:00अब क्या टिप्पणी लिखूं? लिखूँ तो पोस्ट सी लम्बी हो ...अब क्या टिप्पणी लिखूं? लिखूँ तो पोस्ट सी लम्बी हो जाएगी. सुन्दर पोस्ट है.<br><br><br>विवाह के साथ समर्पण व जिम्मेदारी, वफादारी जैसी अपेक्षाएं जुड़ी हुई है. इसलिए साथ रह रहे विवाह के बाद निभा नहीं पाते.संजय बेंगाणीhttp://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-55345177060428206102009-07-17T09:40:54.191+02:002009-07-17T09:40:54.191+02:00इसे कहते है असल ब्लोगिंग...आपने इतना कुछ कह दिया ह...इसे कहते है असल ब्लोगिंग...आपने इतना कुछ कह दिया है इतने सरल तरीके से .....की ओर पढने की इच्छा हो रही है..वैसे भी विवाह को जैसी मान्यता ओर जिम्मेवारी से भारत ओर दूसरे एशियायीय देशो में स्वीकार किया जाता है .दूसरे देशो में ऐसा नहीं....लिविंग का इडा दरअसल जिम्मेवारियों से भागना ही है ...दूर की बात जाने दीजिये हमने सूरत शहर में आज से दस साल पहले लड़कियों की जो आज़ादी देखी थी वो उत्तर प्रदेश में नहीं थी....उस वक़्त वहां भी छेड़ छाड़ ओर यौन अपराध कम थे ....कमोबेश स्थान भी कभी कभी मानसिकता तय करते है...डॉ .अनुरागhttp://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-53778637292552054742009-07-21T16:02:43.051+02:002009-07-21T16:02:43.051+02:00रिश्ते मुठ्ठी मे रेत की तरह होते है; मुठ्ठी जितना ...रिश्ते मुठ्ठी मे रेत की तरह होते है; मुठ्ठी जितना कस कर पकड़ेंगे रेत उतना हाथो से फिसलते जायेंगी; मुठ्ठी जितनी ढिली रहेगी रेत उतनी सहजता से मुठ्ठी मे रहेगी।<br>रिश्तो समाज मे जितना खुलापन होगा उतनी सहजता होती है। विवाह शायद एक बंधन सा हो जाता है!Ashish Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/02400609284791502799noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-45597732481462609022009-08-06T04:28:56.809+02:002009-08-06T04:28:56.809+02:00सुन्दर पोस्ट!सुन्दर पोस्ट!अनूप शुक्लhttp://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-48607160884845680462009-08-22T10:10:52.196+02:002009-08-22T10:10:52.196+02:00पहले ब्लागिंग से ज्यादा साबका नहीं था। इधर बीच कुछ...पहले ब्लागिंग से ज्यादा साबका नहीं था। इधर बीच कुछ आंतरिक दबावों के कारण कुछ ज्यादा ही लिख दिया। आप संभवतः मोहल्लालाइवडाटकाम पर चल रही बहसों से परीचित होंगे। उन्हीं बहसों के संदर्भ में किसी ने हिन्दी के भविष्य के बारे में कुछ असुविधाजनक बातें कह दीं। उन्होंने हिन्दी प्रेम को तमाम ऊल-जलूल चीजों से जोड़ा। उत्तेजना में मैंने कहा कि भाड़ जाए दुनिया। मैं आर्थिक नहीं अस्तित्ववादी कारणों से हिन्दी से प्रेम करता हूं। मैंने कहा कि देश में लोग तो आप के बताए कारणों से हिन्दी से प्रेम करते हैं लेकिन विदेश में ?<br>मेरा अनुमान जो भी हों.....मैं चाहता हूँ कि गर आप को असुविधा न हो तो आप एक पोस्ट इस विषय पर लिखें कि आप हिन्दी में क्यों लिखते हैं....आप के लिखे पोस्ट पढ़ने के बाद मुझे यकीन है कि आप इस प्रश्न को डील कर सकते हैं......अतः समय हो तो इस पर ध्यान देंRangnath Singhhttp://www.blogger.com/profile/01610478806395347189noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-18704261905822196382009-08-22T10:30:30.567+02:002009-08-22T10:30:30.567+02:00आप ने विवाह के बारे में जो इशारे किए हैं वो बहुत ह...आप ने विवाह के बारे में जो इशारे किए हैं वो बहुत ही अस्पष्ट हैं। जिसका लोग मनचाहा पाठ कर सकते हैं। मुझे यह नहीं समझ नहीं आया कि एक साथ रह रहे थे और विवाह में क्या फर्क है। मुझे इस अपारदर्शी कहानी से यही शिक्षा मिली कि कई बार विवाह सहज संबधों को खा जाता है। विवाह,पति,पत्नि के रूढ़ छवियों को ढोने में स़्त्री-पुरूष का साहचर्य लड़खड़ा जाता है। मैं स्थाई संबधों का पैरोकार हूं। आमतौर पर लंपट लोगों को पशुओं का उदाहरण देकर पशु बनने का लाइसेंस लेने की कोशिश करते देखता हूं। ऐसे लोग विवाह के बड़े विरोधी होते हैं। मैं उनसे नाइत्तेफाकी रखता हूं। लेकिन आपने जो उदाहरण दिया उसमे मुझे विवाह संस्था का ज्यादा दोष दिखता है बनिस्बत की उस जोड़े का। सात साल प्यार से रह रहे थे तो फिर विवाह के दो साल बाद ही.....और गर इस तलाक का विवाह होने या न होने से कोई संबंध नहीं है तो फिर आपकी पोस्ट के मानी ही खत्म होते दिखते हैं। एक दूसरी बात यह है कि गर इन लोगों ने विवाह से पहले ही अलग होने का सोचा होता तो निश्चय ही उनका तलाक नहीं होता। बस वो अलग हो जाते !!<br>फिर आप की क्या राय होती....दो स़्त्री पुरूष क्यों अलग हो गए ?<br><br>शेष आप के जवाब के बाद.....Rangnath Singhhttp://www.blogger.com/profile/01610478806395347189noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-53303022924443085842009-09-23T15:57:23.063+02:002009-09-23T15:57:23.063+02:00आप कौन हैं ? यह प्रश्न करना पता नहीं आपको अच्छा लग...आप कौन हैं ? यह प्रश्न करना पता नहीं आपको अच्छा लगेगा या बुरा -मगर परदेस में इतनी दूर और इतने लम्बे समय से रह रहे किसी भारतीय के मन में इतना गहरा प्यार अपनी भाषा के प्रति देखकर बहुत अच्छा लगा. यकीन मानिए मन में सबसे पहला प्रश्न यही उठा कि आप कौन हैं? आप जो भी हैं आपको प्रणाम.<br>अजय मलिकअजय मलिकhttp://www.blogger.com/profile/12813633876030406070noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-86324794543415154222009-09-23T18:38:29.621+02:002009-09-23T18:38:29.621+02:00मैं कौन हूँ, मैं तो मैं ही हूँ, इसमें बुरा लगने की...मैं कौन हूँ, मैं तो मैं ही हूँ, इसमें बुरा लगने की क्या बात हो सकती है? :-)<br><br>पर आप की बात थोड़ा सा दुख हुआ. इस बात का दुख कि आप को अचरज हो कि बाहर रह कर भी मैं अपनी भाषा क्यों नहीं भूला, और इसके लिए आप मुझे नमणीय मानें. यह भारत का ही दुर्भाग्य है कि उसके लाखों पुत्र पुत्रियाँ अपनी भाषा को नीचा समझते हैं, उसमें बोलने, लिखने में स्वयं को हीन महसूस करते हैं. इटली वाले, जर्मनी वाले, फ्राँस वाले सारा जीवन बाहर बिता देते हैं पर मुझे नहीं लगता कि कोई उनसे कहता होगा कि अरे आप अपनी भाषा को नहीं भूले!<br><br>विदेश में पले बड़े बच्चों की बात और है पर जिस भाषा में पैदा होने से बड़ा होने तक सोचा, समझा हो, सपने देखे हों, उसे सचमुच कौन भुला सकता है?Sunil Deepakhttp://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-35994823010546185372009-10-28T13:08:17.087+01:002009-10-28T13:08:17.087+01:00abhi net ke liye naya hoon.blog jaise tecnical sha...abhi net ke liye naya hoon.blog jaise tecnical shabd se bol-chal ya peper aadi se hi parichit hua hoon.amitabh bacchan ka blog ek saal pehle padha tha kisi dost ke yahan.aaj apka post dekha aur dekhta gaya sath me kuch tippdiyan bhi dekha.<br> jo na kah saka heading atyant aakarshak laga.<br>rishte,aankhon hi aankhon men bhi padha.wang jinzhi ki panktiyan ko aapke dwara padhna bahut hi achha laga.<br>adhura chod raha hoon!choti si beti hai bula rahi hai.wada to nahi koshish karoonga phir se aap tak pahunchu. namaste.Roophttp://www.blogger.com/profile/09931358910438581152noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-61851966921673080642009-10-28T13:15:42.379+01:002009-10-28T13:15:42.379+01:00रूप जी, इतनी मीठी बातों के लिए धन्यवाद और छोटी बेट...रूप जी, इतनी मीठी बातों के लिए धन्यवाद और छोटी बेटी के लिए शुभकामनाँएSunil Deepakhttp://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.com