tag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post3260660905368480038..comments2024-03-27T06:40:09.006+01:00Comments on जो न कह सके: किटाणु रहित दुनियाSunil Deepakhttp://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-70474446498374619012005-09-13T13:48:35.563+02:002005-09-13T13:48:35.563+02:00ये विज्ञापनों की दुनिया है.कल को यह भी हो सकता है ...ये विज्ञापनों की दुनिया है.कल को यह भी हो सकता है कि आदमी को आदमी से खतरा बताया जाये.बच्चों के माध्यम से भावनात्मक शोषण किया जाता है.Anup Shuklahttp://www.blogger.com/profile/16845023265668027070noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-46493307885516692092005-09-13T17:54:16.610+02:002005-09-13T17:54:16.610+02:00मैने एक कहानी पढी थी,कहानी तथा लेखक का नाम याद नही...मैने एक कहानी पढी थी,कहानी तथा लेखक का नाम याद नही आ रहा है. <br>दो बचपन के दोस्तो की कहानी थी जो बाद मे अलग अलग रास्तो मे चले जाते है.<br>एक दोस्त शहर मे आकर टॊर्च बेचना शुरू कर देता है, टोर्च बेचने के लिये वह भरी दोपहरी मे लोगो को अंधेरे का डर, सांप बिच्छु का भय दिखा कर टॊर्च बेचा करता था.<br><br>विज्ञापन कुछ ऐसे ही होते है, पहले लोगो को डराओ, फिर अपना उत्पाद बेचो.<br><br>कहानी मे आगे वह राजनीती मे आ जाता है. यहां भी वह लोगो को डराना शुरू कर वोट बटोरना शुरू कर देता है. अंतर सिर्फ इतना होता है कि पहले वो अंधेरे का भय दिखाता था, अब धर्म जाति का डर दिखाता था.Ashish Shrivastavahttp://www.blogger.com/profile/02400609284791502799noreply@blogger.com