tag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post473786593823033916..comments2024-03-27T06:40:09.006+01:00Comments on जो न कह सके: फ्राक पहनने वाले लड़केSunil Deepakhttp://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.comBlogger19125tag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-13875864186537960202012-09-18T20:40:15.378+02:002012-09-18T20:40:15.378+02:00राजन जी, मानव अधिकार की दृष्टि से और मनोवैज्ञानिक ...राजन जी, मानव अधिकार की दृष्टि से और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से आजकल इसे मानव यौनता की विविधता का हिस्सा माना जाता है न कि मनोरोग का.<br /><br />ऊपर जिस मित्र का मैने ज़िक्र किया है, वह पुरुष से नारी बना, लेकिन उसका अपनी पत्नी से सम्बन्ध नहीं टूटा और दोनो आज भी साथ हैं.<br /><br />मानव विविधता को सहजता से स्वीकार किया जाये तो शायद उनकी कठिनाईयाँ कुछ कम हों, क्योंकि भारत में जिन्हें हिँजड़ा कह कर निकाल दिया जाता है, उनकी कहानियाँ सुनिये तो दर्दनाक होती हैं और विश्वास नहीं होता कि समाज इतना क्रूर हो सकता है. इसी समाज के दिन में गालियाँ देने वाले कुछ लोग रात के अँधेरे में उनकी खोज में उन्हें हमबिस्तर बनाने निकलते हैं.Sunil Deepakhttps://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-59607949549772162822012-09-18T18:40:54.778+02:002012-09-18T18:40:54.778+02:00ऐसे केस में मुझे नहीं लगता की ऐसे पुरुष की पार्टनर...ऐसे केस में मुझे नहीं लगता की ऐसे पुरुष की पार्टनर सहज रह पाती होगी बल्कि ये उसकी मजबूरी है और मुझे लगता है कि ऐसा पुरुष मनोरोगी ही होता है कोई सामान्य पुरुष ऐसी हरकत नहीं करेगा ।और आपने लेख में बताया है कि लड़कियों की तरह व्यवहार करने वाले लड़के कुछ वर्षों बाद सामान्य हो जाते हैं।लेकिन जो लड़के पहले सामान्य होते हैं उनके व्यवहार में भी किसी कारण से ऐसा परिवर्तन आ सकता हैं।एक मामला कुछ समय पहले सामने आया था। गंगानगर राजस्थान में एक व्यक्ति था जो डाँस क्लासेज चलाता था इसमें वह सभी लड़कों से लड़कियों वाले गानों पर नृत्य करवाता था धीरे धीरे इन सभी लड़कों के बात करने हँसने का ढंग यहाँ तक कि उनकी चाल भी बिल्कुल लड़कियों जैसी हो गई जबकि वह व्यक्ति खुद सामान्य था।कुछ लड़कों के अभिभावकों ने तो उस पर केस ही करवा दिया था।राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-50555875636382431582012-09-18T18:03:03.774+02:002012-09-18T18:03:03.774+02:00राजन जी यौन पहचान और यौनिकता से जुड़ी इतनी बातें ह...राजन जी यौन पहचान और यौनिकता से जुड़ी इतनी बातें हैं जिनके लिए यह कह पाना कि वे क्यों होती हैं, आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की जानकारी से यह संभव नहीं.<br /><br />अपने बेडरूम के भीतर दो लोगों के बीच क्या होता है, अगर उन्हें स्वयं इससे परेशानी नहीं तो बाहर वालों को इससे क्या मतलब?<br /><br />बात तो तभी कठिन होती है जब दोनों में एक अपने को इस स्थिति में सहने स्वीकारने के लिए मजबूर पाता है.Sunil Deepakhttps://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-55397435504342075972012-09-18T17:59:10.983+02:002012-09-18T17:59:10.983+02:00घुघूनी बासूति जी, मेरे विचार भी आप से बहुत मिलते ह...घुघूनी बासूति जी, मेरे विचार भी आप से बहुत मिलते हैं. वैचारिक स्तर पर मुझे ठीक लगता है कि बच्चे को अपने व्यक्तित्व के अनुसार बढ़ने पनपने की छूट होनी चाहिये, लेकिन अगर सोचूँ कि मेरा बेटा ऐसा हो तो मन में डर होता है कि उसे दुनिया की बर्बता के कैसे सुरक्षित रख पाऊँगा.<br /><br />इस तरह के जिन लोगों से मैंने बात की वह कहते हें कि सब कष्टों के बाद भी हमें स्वयं पर्दे में रहना स्वीकार नहीं था, पर दुख है कि माता पिता और भाई बहनों ने साथ नहीं दिया. कुछ माता पिता से भी बात की तो उनमें बहुत ग्लानी भाव पाया कि मेरी ही कुछ गलती थी जिससे मेरा बेटा ऐसा हुआ.<br /><br />किसी भी दृष्टि से देखें, बात है तो बहुत कठिन. आलेख लिखते हुए मेरा विचार इस कठिनायी को छुपाना नहीं बल्कि कठिनायी के बावज़ूद इस स्थिति में खुद को पाने वाले परिवारों को सहारा देना है.Sunil Deepakhttps://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-56039098299348701622012-09-18T15:44:53.139+02:002012-09-18T15:44:53.139+02:00सुनील जी, आपका लेख एक ऐसा प्रश्न उठाता है जिसका उत...सुनील जी, आपका लेख एक ऐसा प्रश्न उठाता है जिसका उत्तर हम तब सरलता से दे सकते हैं जब बच्चा हमारा अपना या अपने परिवार का नहीं होता. बिल्कुल, बच्चा स्वतंत्र होना चाहिए अपनी राह चुनने के लिए, अपने मन के खिलौने, कपडे चुनने के लिए. किन्तु यदि यह पुत्र मेरा हो तो? तब मै सोचूँगी की यह बाहर कैसे जी पाएगा? बहुत कठिन जीवन होगा इसका. इसे अपनी ये इच्छाएँ दबाना ही सिखाना होगा आदि.<br />हमारी यह सोच कि जेंडर दो ही हैं या अधिक से अधिक तीन ही शायद गलत है. कौन पुरुष अपने भीतर गर्भाशय लिए घूम रहा है या कौन कितने नर और कितने मादा अंग लिए जी रहे हैं, हम कह नहीं सकते. हार्मोन्स क्या कह रहे हैं और क्रोमोजोम्स क्या कह रहे हैं. ये सब बहुत जटिल प्रश्न पैदा करते हैं. निर्णय लेना बहुत कठिन है.<br />घुघूतीबासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-42194357059817990132012-09-18T08:24:44.880+02:002012-09-18T08:24:44.880+02:00क्या ऐसे लोग यदि एक उम्र के बाद भी यह व्यवहार नहीं...क्या ऐसे लोग यदि एक उम्र के बाद भी यह व्यवहार नहीं छोड़ते हैं तो क्या उनके मानसिक स्वास्थ्य पर कोई विपरीत प्रभाव पड़ता है?या ये लोग हमारी तरह ही सामान्य रहते है।क्या हार्मोन असंतुलन इसका कारण है? एक बार सेक्सोलोजिस्ट प्रकाश कोठारी जी ने कहा था कि कुछ पुरुष पूरे दिन सामान्य रहते हैं लेकिन पत्नी से संबंध बनाते समय महिलाओं के कपड़े पहन लेते हैं,यहाँ तक कि वो पूरा महिलाओं वाला श्रंगार कर लेते हैं और अपनी पत्नी से पुरुष की तरह व्यवहार करने को कहते हैं।क्या यह भी कोई बीमारी नहीं है?या वो ऐसा सिर्फ फंतासी के लिए करते हैं?मैंने जब पहली बार ये पढ़ा तो मुझे विश्वास नहीं हुआ कि ऐसा भी होता हैं।राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-66332589698876730872012-09-18T05:28:19.260+02:002012-09-18T05:28:19.260+02:00:):)Sunil Deepakhttps://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-80585146078293479862012-09-18T05:27:12.065+02:002012-09-18T05:27:12.065+02:00Anupam, I think that trying to think independently...Anupam, I think that trying to think independently and not let us conditioned by dominent thought in western culture is a fine thing. Even in societies that live in jungles, there are male and female social roles. Men who think that they are women and women who think that they are men, are known even in indigenous groups living in jungles.<br />While I agree that many of the concepts about homosexuality are due to western preoccupation with categorizing and simplifying, if you really think that homosexuality is a western invention by bored persons, you need to do a better reading of history. It was criminalized in British India in the eighteenth century, so it did not start yesterday.<br />Finally I think that equating homosexuality with rape is wrong and shows lack of understanding. Homosexuality is about relationship between consenting adults. Rape is about violence. Sunil Deepakhttps://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-82659654237593044062012-09-18T02:16:57.644+02:002012-09-18T02:16:57.644+02:00BEAUTIFUL YOUR BLOG, KISS FROM SPAINBEAUTIFUL YOUR BLOG, KISS FROM SPAINRedecórate con Lola Godoyhttps://www.blogger.com/profile/09061554446439674156noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-62847203827646709382012-09-18T00:26:46.982+02:002012-09-18T00:26:46.982+02:00Suppose if a child is born in a jungle where no do...Suppose if a child is born in a jungle where no dolls, frock or other stereotypes like cooking, reading love stories doing crafts how he will express his feminine inclination. I think all homo discourse is just a result of another stereotype developing in society. Western society hyperexploited sex and becomes bored, need new excitement. Media starts telling stories, research papers are written, an environment is created. This breaks down social taboo and becomes norm. Tomorrow they will say rapist are not criminals but they have slightly different bent of mind. We appreciate beauty and they exploit it. All propaganda will support them and one day society will accept rapist as normal . Anupam Dixithttps://www.blogger.com/profile/07956766821087716544noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-20418283102381284652012-09-17T21:21:10.709+02:002012-09-17T21:21:10.709+02:00धन्यवाद शालिनी जी :)धन्यवाद शालिनी जी :)Sunil Deepakhttps://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-31895879388697466112012-09-17T18:14:09.363+02:002012-09-17T18:14:09.363+02:00धन्यवाद राजेश कुमारी जी :)धन्यवाद राजेश कुमारी जी :)Sunil Deepakhttps://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-47422261409359804252012-09-17T18:13:35.906+02:002012-09-17T18:13:35.906+02:00यह बात तो है प्रवीण की भारत परम्परागत संस्कृति में...यह बात तो है प्रवीण की भारत परम्परागत संस्कृति में शायद कभी कभी लड़की के भेष बनाने और वस्त्र पहनने के लड़कों को मौके मिल जाते हैं जैसे त्यौहारों पर या विवाह से जुड़ी रितीयों में. :)<br /><br />लेकिन जहाँ तक मेरी जानकारी है, भारत में इस तरह के लड़कों को और उनके परिवारों को बहुत कठनाईयाँ सहन करनी पड़ती हैं.Sunil Deepakhttps://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-46165283323493693582012-09-17T17:59:23.171+02:002012-09-17T17:59:23.171+02:00आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १८/...आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १८/९/१२ को चर्चा मंच पर चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका चर्चा मच पर स्वागत है |Rajesh Kumarihttps://www.blogger.com/profile/04052797854888522201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-68023919791880278002012-09-17T17:43:43.815+02:002012-09-17T17:43:43.815+02:00यहाँ तो माँ ही कभी कभी मनोरंजन के लिये बच्चों को फ...यहाँ तो माँ ही कभी कभी मनोरंजन के लिये बच्चों को फ्रॉक पहना देती हैं..प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-15250465165512771502012-09-17T13:43:37.734+02:002012-09-17T13:43:37.734+02:00धन्यवाद शास्त्री जी. संसार परिवर्तनशील है, इसे स्व...धन्यवाद शास्त्री जी. संसार परिवर्तनशील है, इसे स्वीकार करलें कि हमें भी समय के साथ बदलना होगा, तो बहुत सी कठिनाईयाँ अपने आप दूर हो जायें. :)Sunil Deepakhttps://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-8322978753868624032012-09-17T13:42:15.520+02:002012-09-17T13:42:15.520+02:00रमाकाँत जी, आप ने सही कहा. न तो यह सवाल आसान हैं, ...रमाकाँत जी, आप ने सही कहा. न तो यह सवाल आसान हैं, न ही इनके उत्तर. पर शायद कठिन विषयों पर भी बात करना बहुत आवश्यक है. :)Sunil Deepakhttps://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-84484128735155620592012-09-17T13:16:05.573+02:002012-09-17T13:16:05.573+02:00बहुत खूब!
संसार परिवर्तनशील है!बहुत खूब!<br />संसार परिवर्तनशील है!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-32677516766737932732012-09-17T12:30:26.876+02:002012-09-17T12:30:26.876+02:00बहुत कठिन सवाल जवाब भी निश्चित रूप से कुछ हटकर मिल...बहुत कठिन सवाल जवाब भी निश्चित रूप से कुछ हटकर मिलेगा मैं एक बात कहना चाहूँगा समय के साथ सभी मानदंड बनते बिगड़ते रहते हैं ज्यादा कह पाना सरल नहीं Ramakant Singhhttps://www.blogger.com/profile/06645825622839882435noreply@blogger.com