tag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post6277787009705818395..comments2024-03-27T06:40:09.006+01:00Comments on जो न कह सके: परदे के पीछे औरतSunil Deepakhttp://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-42265688138111734672007-03-17T06:50:00.398+01:002007-03-17T06:50:00.398+01:00बहुत ही सुन्दर लेख.यह अच्छा इसलिए भी है की आपने इस...बहुत ही सुन्दर लेख.<br><br>यह अच्छा इसलिए भी है की आपने इसे लिखा है, कोई मुस्लिम द्वेष का आरोप भी नहीं लगा पाएगा और आपके लेख को सही भावार्थ में भी लेगा.संजय बेंगाणीwww.tarakash.com/joglikhinoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-62521446784989687272007-03-17T08:12:17.099+01:002007-03-17T08:12:17.099+01:00अच्छा है सरअच्छा है सरयोगेश समदर्शीhttp://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-86524676895892077072007-03-17T11:35:20.048+01:002007-03-17T11:35:20.048+01:00लेख बहूत अच्छा है और सोचने के लिये एक platform भी ...लेख बहूत अच्छा है और सोचने के लिये एक platform भी दे रहा है।<br><br>लेकिन एक बात मेरे दिमाग मे कभी कभी घूमती है कि क्या आधूनिक कपडे पहनी हूई महिलायें दमन का शिकार नहीं हैं?<br>मेरे पास कई ऐसी महिलायें आती हैं, जिन्हे देख मै अपनी किस्मत पर तरस खा जाऊँ पर ऐसा नहीं है, जिस तडक भडक मे वो दिखती हैं वैसा नही होता।<br><br>बहूत आश्चर्य होता है ये सब देखकर, आज जब यह कहा जाने लगा है कि महिलायें पुरूष के कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं, पर मुझे तो कोई फर्क नही दिख रहा है।<br><br>मुस्लिम समुदाय की महिलाओं को तो इतना डर है कि वो अपना नाम तक नहीं लिखवाती बूर्के से ढँकी छ्द्म नाम के साथ आती है, आखिर ऐसा क्युँ क्या महिला होना इतना बडा गुनाह बन जाता है कि जीने का अधिकार भी नही मिलता।<br><br>और भी कितने ही सवाल उथ रहें है, बस इतना ही कहना चाहुँगी कि विचारणीय लेख है<br><br>शुक्रिया<br>गरिमागरिमाhttp://www.blogger.com/profile/12713507798975161901noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-31019732068547634862007-03-17T12:40:39.350+01:002007-03-17T12:40:39.350+01:00यह एक यकीनन जटिल मुद्दा है, सिर्फ उन महलाओं के ही ...यह एक यकीनन जटिल मुद्दा है, सिर्फ उन महलाओं के ही लिए नहीं जो इस द्वंद्व से गुजरती हैं कि वे मुक्ति का कौन सा प्रतिमान चुनें वरन मुझ आप जैसे लोगों के लिए भी चुनौतिपूर्ण है कि इस वेश विन्यास का डिकंस्ट्रक्ट्शन कैसे किया जाए।<br>मेरी बहुत सी छात्राए मुस्लिम हैं और उनमें से कई बुर्का पहनती हैं, ये उनका दावा है कि ऐसा वे खुद की इच्छा से करती हैं। <br><br>वैसे किसी को जबरन 'आजाद' करने की कोशिश उसे कैद लग सकती है। <br>शरारती स्वर में कह सकता हूँ कि जैसे हमारे नकाब छीनकर लोग हमें आजाद नहीं कर रहे थे वैसे ही..... ;)मसिजीवीhttp://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-40526302191340472162007-03-18T07:13:24.453+01:002007-03-18T07:13:24.453+01:00एक बार फिर सोचने पर मजबूर किया....!!एक बार फिर सोचने पर मजबूर किया....!!Bejihttp://www.blogger.com/profile/16964389992273176028noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-8741242347234048952007-03-18T08:33:14.543+01:002007-03-18T08:33:14.543+01:00अच्छा लेख है। स्वतंत्रता, समानता आदि बातें हर समाज...अच्छा लेख है। स्वतंत्रता, समानता आदि बातें हर समाज, धर्म के अनुसार लोग मानते हैं। हो सकता है कि किसी धर्म में कोई बात स्वतंत्रता मानी जाये वही दूसरे समाज में बेहूदगी समझी जाये।अनूप शुक्लhttp://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.com