tag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post807593206128874071..comments2024-03-27T06:40:09.006+01:00Comments on जो न कह सके: बेचारे आलोचकSunil Deepakhttp://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-26646666066119831752005-11-28T10:37:16.350+01:002005-11-28T10:37:16.350+01:00मुझे आपके लेख बहुत अच्छे लगते हैं. उनमें एक अपना प...मुझे आपके लेख बहुत अच्छे लगते हैं. उनमें एक अपना प्रवाह गति और समय दिखता है, जो खींच कर ले जाता है आपकी दुनिया में.<br>लिखते रहिये हमेशा ऐसे ही.<br><br>प्रत्यक्षाPratyakshahttp://www.blogger.com/profile/10828701891865287201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-41919768717890343412005-11-28T11:40:01.310+01:002005-11-28T11:40:01.310+01:00आपकी लिखने की शैली बहुत अच्छी है। कृपया निराधार आ...आपकी लिखने की शैली बहुत अच्छी है। कृपया निराधार आलोचना पर ध्यान न दें और यूं ही लिखते रहें।Pratik Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/05916809002207296203noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-54848931699563013952005-11-28T11:53:47.476+01:002005-11-28T11:53:47.476+01:00सुनील भाई, आप तो बहुत परिपक्व,प्रेक्टीकल और अनुभवी...सुनील भाई, <br>आप तो बहुत परिपक्व,प्रेक्टीकल और अनुभवी इसलिये आप तो जानते ही होंगे कि तारीफ़ और आलोचना दोनो ही एक लेखक के लिये जरुरी हैं। यदि हम तारीफ़ की आकांक्षा रखते है तो हमे आलोचना को झेलने की भी क्षमता होनी चाहिये, लेकिन क्या करें हम लेखक(ब्लॉगर) होने के साथ साथ एक इन्सान भी तो है, इसलिये कभी कभी आलोचना बुरी भी लगती है। <br><br>आजकल मै आपके ब्लॉग नियमित रुप से नही पढ पा रहा हूँ, थोड़ा व्यस्त हूँ,इसलिये टिप्पणी नही कर पा रहा,अगले महीने एक साथ पढूंगा, तब तक के लिये टिप्पणी उधार रही।Jitendra Chaudharyhttp://www.blogger.com/profile/07082527004066336464noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-9495666061412978232005-11-28T17:12:00.106+01:002005-11-28T17:12:00.106+01:00आलोचना के बारे में बचपन में पढ़ा एक चुटकुला याद आ ...आलोचना के बारे में बचपन में पढ़ा एक चुटकुला याद आ रहा है। एक समीक्षक ने एक फ़िल्म का बहुत ही खराब रिव्यू लिखा, तो फ़िल्मकार ने समीक्षक को फोन किया, "तुम ने कभी खुद फिल्म बना कर देखी है, जो मेरी इतनी मेहनत से बनाई फिल्म की आलोचना कर रहे हो?" समीक्षक बोला, "प्रोड्यूसर साहब, मैं ने कभी अंडा भी नहीं दिया, पर आमलेट बनाना खूब जानता हूँ।"<br>खैर मज़ाक को परे रख कर, मैं आप के चिट्ठे की दोबारा तारीफ करना चाहता हूँ। आजकल के हिन्दी के सभी चिट्ठों में आप का चिट्ठा ऊपर की चन्द पायदानों पर आता है - ऐसे ही लिखते रहिए। यदि मुझे आप के चिट्ठे के बारे में कुछ बदलने को कहा जाए तो मैं उसकी पृष्ठभूमि का रंग बदलूँ। मेरे विचार में हल्की पृष्ठभूमि बढ़िया रहती है, पर सब का अपना अपना दृष्टिकोण होता है। दफ्तर में काम से चोरी करते हुए चिट्ठा पढ़ना हो तो भी हल्की पृष्ठभूमि बेहतर रहती है :-)। आप के चिट्ठे की हिन्दी भी सुलझी हुई होती है, पर "टिप्पणी" के स्थान पर "टिप्पड़ी" लिखा हुआ मैं ने केवल आप के चिट्ठे पर देखा है। क्या यह शब्द सही है?Kaulhttp://www.blogger.com/profile/13721926003530360579noreply@blogger.com