tag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post8107869064625680861..comments2024-03-27T06:40:09.006+01:00Comments on जो न कह सके: हीरामन का क्या ?Sunil Deepakhttp://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-76143077474642138102008-09-08T08:55:00.000+02:002008-09-08T08:55:00.000+02:00समय बदल रहा है मगर नई छवि वाला किसान शायद बुद्धिजी...समय बदल रहा है मगर नई छवि वाला किसान शायद बुद्धिजीवियों के गले नहीं उतर रहा.संजय बेंगाणीhttp://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-12695848004836638502008-09-08T19:55:00.000+02:002008-09-08T19:55:00.000+02:00भारत में आज के समय में अपने को प्रगतिशील और बुद्धि...भारत में आज के समय में अपने को प्रगतिशील और बुद्धिजीवी कहनेवाले लोग किसानों के मामले में यथास्थितिवादी साबित हो रहे हैं। उनका विलाप अपनी इमेज चमकाने के लिए होता है, किसानों व गांवों का भला करने के लिए नहीं। भारत में गांव के किसान की बेहतरी के दो ही रास्ते हो सकते हैं। या तो उसकी जुबान में राजकाज हो, या फिर राजकाज की भाषा को ही वह अपनी जुबान बना ले।Ashok Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/14682867703262882429noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9115561631155571591.post-21573050153237572562008-09-08T19:56:00.000+02:002008-09-08T19:56:00.000+02:00इस बात से सहमत हूँ कि गाँव पर लिखने वाले लेखक कम ह...इस बात से सहमत हूँ कि गाँव पर लिखने वाले लेखक कम होते जा रहे हैं....लेकिन यह भी सच है कि गाँव के बारे में जरा अच्छे ढंग से रोचकता से लिखा जाय तो पढने वाले भी खूब हैं क्य़ोंकि सभी के भीतर एक गाँव की छवि बसी होती है और उससे वह बडी जल्दी अपने आपको जोड लेता है।सतीश पंचमhttp://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.com