टेक्नोराती के डेविड सिफरिंगस् ने अप्रैल में अपने चिट्ठे "चिट्ठाजगत का हाल" (State of the Live Web) शीर्षक से लेख लिखा जिसमें विश्व में चिट्ठाजगत के फ़ैलाव की विवेचना है. . इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में करीब 7 करोड़ चिट्ठे हैं और प्रतिदिन एक लाख बीस हजार नये चिट्ठे जुड़ रहे हैं. साथ साथ स्पैम यानि झूठे चिट्ठे भी बढ़ रहे हें और हर रोज तीन से सात हजार तक स्पैम चिट्ठे बनते हैं. एक तरफ चिट्ठों की संख्या में तेज़ी से बढ़ोतरी हो रही है, दूसरी ओर चिट्ठों में लिखना कुछ कम हो रहा है और हर रोज़ करीब 15 लाख लोग अपने चिट्ठों में लिखते हैं. 6 महीने पहले, अक्टूबर 2006 में कुल चिट्ठों की संख्या थी 3.5 करोड़ और हर रोज़ 13 लाख चिट्ठे लिखे जा रहे थे. अंतर्जाल पर सबसे लोकप्रिय 100 पन्नों में 22 चिट्ठे भी हैं.
चिट्ठों की सबसे लोकप्रिय भाषा है जापानी जिसमें 37 प्रतिशत चिट्ठे लिखे गये. चिट्ठों की प्रमुख भाषाओं में अन्य भाषाएँ हैं अँग्रेजी 36%, चीनी 8%, इतालवी 3%, स्पेनिश 3%, रूसी 2%, फ्रँसिसी 2%, पोर्तगीस 2%, जर्मन 1%, फारसी 1% तथा अन्य 5%. जबकि अँग्रेजी और स्पेनिश में लिखने वाले सारे विश्व में फ़ैले हैं और दिन भर उनके नये चिट्ठे बनते हैं, जापानी, इतालवी और फारसी जैसी भाषाओं वाले लोगों का लिखना अपने भूगोल से जुड़ा है और उनके चिट्ठे सारा दिन नहीं लिखे जाते बल्कि दिन में विषेश समयों पर छपते हैं.
इस रिपोर्ट को पढ़ कर मन में बहुत से प्रश्न उठे. हर रोज़ एक लाख बीस हजार नये चिट्ठे जुड़ रहे हैं चिट्ठाजगत में, यह सोच कर हैरानी भी होती है, थोड़ा सा डर भी लगता है मानो नये डायनोसोर का जन्म हो रहा हो. शायद इस डर के पीछे यह भाव भी है कि सब लोगों से भिन्न कुछ नया करें, और अगर सब लोग अगर चिट्ठा लिखने लगेंगे तो उसमें भिन्नता या नयापन कहाँ से रहेगा? पर इस डर से अधिक रोमाँच सा होता है कि इस क्राँती से दुनिया के संचार जगत में क्या फर्क आयेगा? हमारे सोचने विचारने, मित्र बनाने, लिखने पढ़ने में क्या फर्क आयेगा?
स्पैम चिट्ठों का सोचूँ तो सबसे पहले तो अपने अज्ञान को स्वीकार करना पड़ेगा. यह नहीं समझ पाता कि कोई स्पैम के चिटठे क्यों बनाता है? एक वजह तो यह हो सकती है कि किसी जाने पहचाने चिट्ठाकार से मिलता जुलता स्पैम चिट्ठा बनाया जाये, और वहाँ पर विज्ञापन से कमाई हो. पर इस तरह के स्पैम चिट्ठे में लिखने के लिए कहाँ से आयेगा? क्या उसकी चोरी करनी पड़ेगी? एक अन्य वजह हो सकती है स्पैम चिट्ठे बनाने की जिसमें किसी कम्पनी वाला उपभोक्ता होने का नाटक करे और अपनी कम्पनी की बनायी वस्तुओं की प्रशँसा करे ताकि लोग उसे खरीदें, पर मेरे विचार में यह बात केवल नयी क्मपनियों पर ही लागू हो सकती है. यानि कि मेरी जानकारी स्पैम चिट्ठों के बारे में शून्य है और यह सब अटकलें हैं.
अंतर्जाल में कौन सी भाषा का प्रयोग होता है और क्यों होता है, इस विषय पर "ओसो मोरेनो अबोगादो" नाम के चिट्ठे में यही विवेचना है कि फारसी जैसी भाषा का चिट्ठों में प्रमुख स्थान पाना अँग्रेजी के सामने गुम होती हुई भाषाओं के भविष्य के लिए अच्छा संकेत है. वह लिखते हैं, "भाषा वह गोंद है जो संस्कृति को जोड़ कर रखती है. जब कोई भाषा खो जाती है तो वह संस्कृती भी बिखर जाती है. जैसे कि बिना जर्मन भाषा के, क्या जर्मन संस्कृति हो सकती है? जब भाषा खोती है, जो उस भाषा के सारे मूल मिथक, कथाएँ, साहित्य खो जाते हैं जिनसे उस संस्कृति की नैतिकता और मूल्य बने हैं...भाषा से हमारे रिश्ते बनते हैं, अपने पूर्वजों से हमारा नाता बनता है. अगर हम अपने पूर्वजों की भाषा नहीं बोल पाते तो हमारा उनसा नाता टूट जाता है."
अगर फारसी में चिट्ठा लिखने वाले इतने लोग हैं कि वह अपनी भाषा को चिट्ठा जगत की प्रमुख भाषा बना दें तो एक दिन भारत की सभी भाषाएँ भी अंतर्जाल पर अपनी महता दिखायेंगी, यह मेरी आशा और कामना है. केवल प्रमुख भाषाएँ ही नहीं, बल्कि वह सब भाषाएँ भी जिन्हें आज भारत में छोटी भाषाएँ माना जाता है जैसे कि मैथिली, भोजपुरी, अवधी आदि, इन सब भाषाओं को अंतर्जाल पर लिखने वाले लोग मिलें!
*****
मैं सोचता हूँ कि सब बच्चों को प्राथमिक शिक्षा अपनी मातृभाषा में मिलनी चाहिये जिससे उनके व्यक्तित्व का सही विकास हो सके. इसका यह अर्थ नहीं कि प्राथमिक शिक्षा में अँग्रेजी न पढ़ाई जाये, पर प्राथमिक शिक्षा अँग्रेजी माध्यम से देना मेरे विचार में गलती है. वैसे भी भारतीय शिक्षा परिणाली समझ, मौलिक सोच और सृजनता की बजाय रट्टा लगाने, याद करने पर अधिक जोर देती है. प्राथमिक शक्षा को अँग्रेजी माध्यम में देने से इसी रट्टा लगाओ प्रवृति को ही बल मिलता है.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
इस वर्ष के लोकप्रिय आलेख
-
पिछले कुछ दिनों में फेसबुक पर साहित्यकारों से जुड़ी यौन दुराचरण की एक बहस चल रही है। मैं फेसबुक पर कम ही जाता हूँ और कोशिश करता हूँ कि नकारात...
-
हिन्दू जगत के देवी देवता दुनिया की हर बात की खबर रखते हैं, दुनिया में कुछ भी ऐसा नहीं जो उनकी दृष्टि से छुप सके। मुझे तलाश है उस देवी या द...
-
कुछ दिन पहले भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने टीवी के प्रोग्राम वाले श्री समय रैना और अन्य विदूषकों को आदेश दिया कि वे अपने कार्यक्रम में विकलां...
-
केवल एक सप्ताह के लिए मनीला आया था और सारे दिन कोन्फ्रैंस की भाग-दौड़ में ही गुज़र गये थे. उस पर से यूरोप से सात घँटे के समय के अंतर की वज...
-
पाराम्परिक भारतीय सोच के अनुसार अक्सर बच्चों को क्या पढ़ना चाहिये और क्या काम करना चाहिये से ले कर किससे शादी करनी चाहिये, सब बातों के लिए मा...
-
भारत की शायद सबसे प्रसिद्ध महिला चित्रकार अमृता शेरगिल, भारत से बाहर कला विशेषज्ञों में उतनी पसिद्ध नहीं हैं, पर भारतीय कला क्षेत्र में उनका...
-
एक दो दिन पहले टीवी के सीरियल तथा फ़िल्में बाने वाली एकता कपूर का एक साक्षात्कार पढ़ा जिसमें उनसे पूछा गया कि क्या आप को अपने बीते दिनों ...
-
पिछली सदी में दुनिया में स्वास्थ्य सम्बंधी तकनीकों के विकास के साथ, बीमारियों के बारे में हमारी समझ बढ़ी है जितनी मानव इतिहास में पहले कभी नह...
-
आज सुबह चाय बना रहा था तो अचानक मन में बचपन की एक याद कौंधी। यह बात १९६३-६४ की है। मैं और मेरी छोटी बहन, हम दोनों अपनी छोटी बुआ के पास मेरठ...
-
कुछ दिन पहले "जूलियट की चिठ्ठियाँ" (Letters to Juliet, 2010) नाम की फ़िल्म देखी जिसमें एक वृद्ध अंग्रेज़ी महिला (वेनेसा रेडग्रेव...
बहुत सटीक. हिन्दी औए अन्य भाषायें अंतर्जाल पर आयें - आ रही हैं. अगर हिन्दी में तथाकथित स्पैम चिठ्ठे भी आयें तो उनका स्वागत करना चाहिये. हिन्दी प्रयोग/प्रसार इस लायक तो बने कि स्पैमर को भी रास आने लगे यह भाषा!
जवाब देंहटाएंसुन्दर, सभी भाषाओं का प्रगति होनी चाहिये। चाहे जैसे भी हो, इससे मै सहमत नही हूँ क्योकि गन्दगी से अच्छाई की अपेक्षा नही की जा सकती है।
जवाब देंहटाएंआपने मेरे दिल की बात कह दी है -- शास्त्री जे सी फिलिप
जवाब देंहटाएंThis comment is not for publishing.
जवाब देंहटाएंWe are also Hindi feed aggregator. For some reasons we are not able to get your feed. We will be obliged in case you can supply it through feed burner. Our email is here.
I sure wish I understood Hindi.
जवाब देंहटाएंयह नहीं समझ पाता कि कोई स्पैम के चिटठे क्यों बनाता है? एक वजह तो यह हो सकती है कि किसी जाने पहचाने चिट्ठाकार से मिलता जुलता स्पैम चिट्ठा बनाया जाये, और वहाँ पर विज्ञापन से कमाई हो.
जवाब देंहटाएंजी हाँ, इसी कारण से ही स्पैम चिट्ठे बनते हैं. और हिन्दी के भी बन चुके हैं. मेरे चिट्ठों को पूरा का पूरा चुराकर हिन्दी का स्पैम चिट्ठा बनाया गया था. परंतु वह सब स्वचालित बॉट द्वारा होता है - कोई फ़ितूरी कुछ स्वचालित स्क्रिप्ट लिख देता है और रेंडम चिट्ठे प्रतिमिनट की दस के दर या उससे भी ज्यादा से बनते हैं.
पर, ऐसे चिट्ठों का कोई भविष्य नहीं होता
Deepakji,
जवाब देंहटाएंaapne tho bilkul sahi kaha lekin jabtak desi bhaasha mein ahsaani se likhne padne ka tool nahi mila, tab tak aapki aasha or kaamna haqeeqat nahi ho sakegi.