पहली बार मेरा वज़न बढ़ा जब मैं तीस-पैंतिस साल का था। करीब दस किलो बढ़ा फ़िर वहीं पर स्टेबल हो गया। उसके बाद करीब बीस-पच्चीस सालों तक मेरा वज़न एक ही जगह टिका हुआ था, और खून-पिशाब आदि के सब टैस्ट सही चल रहे थे। पाँच साल पहले जब मैं 66-67 साल का हुआ, मेरा वज़न फ़िर से बढ़ने लगा, एक साल में ही दस-बारह किलो और बढ़ गया, सब कपड़े नये लेने पड़े।
चार साल पहले ब्लड टैस्ट कराया तो उसमें सुबह का भूखे पेट वाला ब्लड शुगर बढ़ा हुआ आया। पहले यह मात्रा 90-95 मि.ग्र. से अधिक नहीं आती थी, उस बार 110 आयी।
तब सोचा कि ब्लड शुगर की बेहतर जाँच करने वाला एचबीएवन (HbA1) टैस्ट करवाना चाहिये। वह करवाया तो 6.1 आया, यानि डायबिटीज़ होने का खतरा था। नॉर्मल लोगों में यह टैस्ट 5.5 आता है। जब यह 5.6 से 6.4 तक हो तो इसे प्री-डायबिटीज़ यानि शुगर की बीमारी होने के खतरे का स्तर मानते हैं और खाने पर कन्ट्रोल करने के लिए कहते हैं।। अगर 6.5 या उससे अधिक हो तो डायबिटीज़ की दवा लेनी चाहिये।
इसलिए मैंने तब चीनी और मीठी चीज़ें खाना कम कर दीं। छह महीने बाद यह टैस्ट दोबारा कराया तो घटने के बजाय शुगर बढ़ गयी थी, यह 6.3 आया। मेरी डॉक्टर बोली कि स्थिति तेज़ी से बिगड़ रही है, मुझे दवा लेना शुरु कर देना चाहिये, लेकिन मैंने उन्हें कहा कि छह महीने और प्रतीक्षा कर लेते हैं। इसके बाद मैंने तुरंत वज़न कम करने के नये प्रयास किये।
पिछले ढाई-तीन सालों में मैने बारह किलो वज़न कम किया है और चार महीने पहले जब मैंने टैस्ट कराये तो मेरा ब्लड शुगर 91 और एचबीएवन 5.7 आये। इसके अतिरिक्त जोड़ो के दर्द तथा अन्य तकलीफों में भी राहत मिली है।
आज की इस पोस्ट में मैं अपनी वज़न और ब्लड शुगर घटाने की यात्रा की बात करना चाहता हूँ।
डायबिटीज़ टाईप 1 एवं 2
डायबिटीज़ की बीमारी मुख्यत: दो तरह की होती है। एक कम उम्र में होने वाली डायबीटीज़ होती है जिसमें लोगों की पैनक्रियास ग्रंथी चीनी का पाचन करने वाले हॉरमोन इन्सुलिन (insulin) को बनाना बंद कर देती है। क्योंकि उनके शरीर में यह हॉरमोन होता ही नहीं, तो उनसे चीनी नहीं पचाई जाती और खून में उसकी मात्रा बढ़ जाती है। उन्हें नियमित इन्सुलिन के इन्जैक्शन लगवाने पड़ते हैं (अभी तक गोली की तरह लेने वाली इन्सुलिन नहीं बनी है, उसके इन्जैक्शन ही लगवाने पड़ते हैं)। इसे टाईप 1 की डायबीटीज़ कहते है।
दूसरी तरह की डायबीटीज़, अधिकतर अधेड़ उम्र के बाद होती है, विषेशकर उन लोगों में जिनका वज़न बढ़ा हुआ होता है। उनके शरीर में इन्सुलिन सामान्य या अधिक बनती है लेकिन उसका शरीर पर असर रुक जाता है या कम हो जाता है, जिससे वह हॉरमोन उनके शरीर में ठीक से काम नहीं कर पाता। यह टाईप 2 की डायबीटीज़ है। दुनिया में और विषेशकर भारत में पिछले कुछ दशकों में इस तरह की डायबीटीज़ बहुत अधिक बढ़ी है। इसमें शरीर में इन्सुलिन है लेकिन वह काम नहीं करती, इसलिए वह चीनी नहीं पचा पाते और उसकी खून में मात्रा बढ़ जाती है, जिसके लिए दवा की गोलियाँ मिलती हैं।
जब खून में शुगर बढ़ जाती है तो उससे खून की रगें बंद होने का खतरा होता है जिससे हृदय, गुर्दों, आँखों, पैरों आदि में रगें बंद होने से शरीर के अंग नष्ट हो सकते हैं। इस आलेख में मैं केवल दूसरी तरह की डायबीटीज़ की बात कर रहा हूँ।
ब्लड शुगर तथा एचबीएवन टैस्टों में अंतर
रक्त में चीनी की मात्रा मापने को ब्लड शुगर टैस्ट कहते हैं। यह कई तरीकों से करते हैं, सबसे आम तरीका है सारी रात भूखा रहने के बाद सुबह-सुबह भूखे पेट के समय रक्त की चीनी को मापा जाये। यह 85-95 के आसपास होनी चाहिये। अगर यह 120 से अधिक आये तो इसका मतलब है आप को डायबीटीज़ की बीमारी हो सकती है। जब खून में चीनी की मात्रा अधिक आती है तो अक्सर उन व्यक्तियों के पिशाब में भी शुगर मिलती है।
एचबीएवन (HbA1) टैस्ट रक्त के लाल कोषों में होने वाले हिमोग्लोबिन से जुड़ी हुई चीनी को मापता है। यह टैस्ट उस समय खून में कितनी शुगर है उसे नहीं देखता, बल्कि यह देखता है कि पिछले तीन हफ्तों में खून में चीनी का औसत स्तर कितना रहा और वह मात्रा कितनी बार बढ़ी या घटी। यानि यह टैस्ट केवल एक समय में रक्त में चीनी है को नहीं देखता, बल्कि पिछले तीन हप्तों की रक्त की चीनी किस स्तर पर रही है, उस पर निर्भर करता है। यह डायबीटीज़ का बेहतर टैस्ट माना जाता है। नॉर्मल टैस्ट 5.5 या उससे कम होता है।
मेरे शुरु के प्रयास
जब मुझे पता चला कि मेरा एचबीएवन बढ़ा कर 6.1 हो गया है तो पहले मैंने नियमित वर्ज़िश करना शुरु किया और रात को खाना खा कर एक घंटे की सैर करने लगा। खाने पर भी बहुत कंट्रोल किया, खाने की मात्रा कम की, साथ में चीनी, घी-तेल वाली चीज़ें बिल्कुल कम कर दीं। यह छह महीने किया और वह समय बहुत मुश्किल से कटा। सारा समय मेरा ध्यान खाने पर होता था और मीठी चीज़ें, बिस्कुट, चिप्स वगैरा खाने का बहुत मन करता था। इतनी मेहनत के बाद जब ब्लड टैस्ट कराया तो एचबीएवन 6.3 आया, यानि मेरी शुगर घटने के बजाय बढ़ गई थी।
तब मैंने इसके बारे में कुछ किताबें पढ़ीं। कई विशेषज्ञ इंटरमिटैंट फास्टिन्ग की सलाह दे रहे थे, यानि जितना भी खाना हो उसे दिन में छह-आठ घंटे के समय के भीतर खाईये, उस समय के बाहर कुछ नहीं खाना। मैंने भी यही रास्ता ट्राई करने का फैसला किया।
इंटरमिटैंट फास्टिन्ग या प्रतिदिन कुछ घंटों का व्रत
इंटरमिटैंट फास्टिन्ग के विशेषज्ञ कहते हैं कि हर रोज़ कुछ घंटे का व्रत रखिये। इसके लिए वह चार सुझाव देते हैं:
1. उनका पहला सुझाव है कि रात को जब हम सोते हैं, तो हमारा सात-आठ घंटों का व्रत अपनेआप हो जाता है। वह कहते हैं कि बजाय सुबह-सुबह नाश्ता करने के, हमें उसी व्रत को कुछ घंटे और बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिये। यानि आप सुबह नाश्ता करने की जगह पर दस-ग्यारह बजे नाश्ता कीजिये। उनके अनुसार, केवल इतने व्रत से शरीर की इन्सुलिन बेहतर काम करने लगती है और ब्लड शुगर कम होने लगती है। वह कहते हैं कि अगर आप को सुबह जल्दी चाय-कॉफी की आदत है और उसके बिना नहीं रह सकते तो आप उन्हें बिना चीनी और दूध के पीजिये।
व्रत में पानी, तथा बिना चीनी और दूध की चाय-कॉफ़ी पी सकते हैं, लेकिन और किसी चीज़ का एक छोटा सा दाना भी नहीं खाना चाहिये। कुछ ज़रा सा भी खाओ, चाहे वह नींबू की दो बँदें ही क्यों न हों, हमारा शरीर सोचता है खाना आने वाला है और इन्सुलिन बनाना शुरु कर देता है, जबकि व्रत रखने का उद्देश्य है कि 14-16 घंटो तक हमारे शरीर को इन्सुलिन बिल्कुल भी न बनानी पड़े।
2. अगर हम शुगर के साथ वज़न भी घटाना चाहते हैं तो उनका दूसरा सुझाव है कि एक समय के खाने से अन्न को बिल्कुल निकाल दीजिये या जितना हो सके कम कर दीजिये, उस समय केवल सब्जियाँ और प्रोटीन-प्रधान भोजन (जैसे कि माँस, मछली, अंडे, दाल, राजमाँ, लोभिया, साग, दूध, दही, अखरोट, बादाम, मूँगफली आदि को प्रोटीन प्रधान भोजन मानते हैं) जैसी चीज़ें खाईये। फ़ल खा सकते हैं लेकिन कम और अधिक मीठे फ़ल जैसे कि केले, किवी, संतरे आदि कम या न खायें।
3. शरीर को स्वस्थ करने के लिए हर हफ्ते कम से कम तीस या अधिक तरह की विभिन्न दालें, सब्जियाँ, फल, ड्राई फ्रूट, मसाले आदि खाईये। यानि हर रोज़ खाना बदल-बदल कर खाईये।
4. नियमित व्यायाम कीजिये जैसे कि खाने के बाद सैर करना, वर्जिश करना आदि।
मेरी प्रारम्भ की इंटरमिटैंट फास्टिन्ग
मैंने सोचा कि मैं सुबह नाश्ता करना बिल्कुल बंद कर दूँगा। केवल दोपहर में बारह बजे से शाम के साढ़े सात बजे के बीच में खाऊँगा। लेकिन बिना चाय-कॉफ़ी के सुबह मुश्किल लगती थी, सोचा कि सुबह केवल बिना चीनी और दूध की कॉफ़ी पीयूँगा।
दोपहर के खाने के लिए मैंने केवल कच्ची सब्जियाँ और फ़ल चुने। बारह बजते ही मैं गाजर, मूली, खीरा, शिमला मिर्च, टमाटर, ओलिव, बंद गोभी, शलजम, अवोकादो, सेब, आदि मिला कर मैं पूरी प्लेट भर कर के खाता था, ताकि पेट भर जाये, मुझे यह नहीं लगे कि मैं भूखा हूँ। चूँकि मेरी एचबीएवन बढ़ी हुई थी, मैंने दोपहर को अवोकादो को छोड़ कर अन्य फ़ल कम या बिल्कुल नहीं खाये।
दोपहर में तीन बजे मैं एक मुट्ठी काजू, बादाम आदि के साथ दूध वाली चाय लेता था,और शाम को सात बजे नॉर्मल पूरा खाना खाता था। इटली में वाईन हर जगह मिलती है, मैं रात के खाने के साथ आधा गिलास लाल वाईन का भी लेता था।
साथ ही मैंने केक, मिठाई, बिस्किट, आईसक्रीम आदि बंद कर दिये, उन्हें कभी-कभार, यानि हफ्ते-दस दिन में एक बार सीमित मात्रा में खाता था।
शाम को खाने के बाद सैर तो पहले से कर रहा था, अब स्टैप्पर, वर्जिश वाले इलास्टिक आदि खरीदे और हफ्ते में चार बार, सुबह भूखे पेट व्यायाम भी करने लगा। मेरे एक मित्र जो ओर्थोपीडिक्स के सर्जन हैं, वह अपने व्यक्तिगत अनुभव से कहते हैं कि हर सुबह दस बार सूर्यनमस्कार करना सबसे अच्छा व्यायाम है, लेकिन मुझसे सूर्यनमस्कार पूरा नहीं किया जाता।
इससे मेरा वज़न घटने लगा, हर महीने में एक-डेढ़ किलो कम होने लगा। करीब सात-आठ महीनों में बारह किलो घट गया और शुगर के टैस्ट भी ठीक हो गये।
यह सब करना शुरु में बहुत मुश्किल लगा। दोपहर बारह बजे तक खाने की प्रतीक्षा करना मेरे लिए सबसे कठिन था। कभी खाने में बारह की बजाय साढ़े बारह या एक बज जाते तो मैं चिड़चिड़ा और झगड़ालू हो जाता। रात को सोते समय मुझे खाने के सपने आते थे। पहला महीना सबसे कठिन था, उसके बाद धीरे-धीरे आदत हो गयी।
और आज
एक बार खाने की आदत बदली तो मैं दोबारा अपने पुराने ढर्रे पर नहीं लौटा हूँ। आज भी मैं हर रोज़ कुछ घंटों का व्रत रखता हूँ, आम तौर पर सुबह दस बजे से रात आठ बजे के बीच में खाता हूँ, यानि चौदह घंटे का व्रत होता है। कई बार व्यस्त होता हूँ तो बारह बजे तक भी कुछ नहीं खाता, अब उसमें कुछ कठिनाई नहीं लगती।
दोपहर का खाना अब भी सब्जियों का है, लेकिन अब उनके साथ अधिक फ़ल भी खाता हूँ और साथ में दो अंडे भी। रात को नॉर्मल खाना खाता हूँ।
लेकिन खाने के इस बदलाव ने मेरी इच्छाओं को भी बदल दिया है, अब मुझे बाज़ारी खाना अच्छा नहीं लगता। लेकिन जब पार्टी हो या रैस्टोरैंट जायें तॊ मैं सब कुछ खाता हूँ। बीच में भारत गया था, तब पूरी-भाजी, छोले-भटूरे, नान-चिकन आदि खाये लेकिन उन्हें खाने में पहले जैसा आनंद नहीं आया। सत्तू की बर्फी नियमित खायी, वह मुझे अच्छी भी लगी।
वैसे तो अब मीठा कम ही खाता हूँ लेकिन रात को अक्सर दही में शक्कर, तिल, चिया, आदि मिला कर खाना मुझे अच्छा लगता है। मैंने व्यायाम और सैर भी नहीं छोड़े।
वज़न और शुगर कम होने के साथ मुझे लगता है मेरे जोड़ों के दर्द और सामान्य स्वास्थ्य को भी इस बदलाव से फायदा हुआ है। हालाँकि वज़न कम होने के बाद मैंने खाना बढ़ा दिया है, लेकिन एक बार जो बारह किलो वज़न कम हुआ वह अभी तक नहीं लौटा है।
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