शनिवार, मार्च 17, 2012

अंकों के देवी देवता


हिन्दू जगत के देवी देवता दुनिया की हर बात की खबर रखते हैं, दुनिया में कुछ भी ऐसा नहीं जो उनकी दृष्टि से छुप सके। मुझे तलाश है उस देवी या देवता की जिनका काम है अंकों की देखभाल करना। व्यापारी लोग लाभ-नुकसान का ध्यान रखते हैं तो क्या व्यापारियों की आराध्य लक्ष्मी को ही अंको की देवी माना जाये? या फ़िर ज्ञान की देवी सरस्वती जो छात्रों की आराध्य हैं, अंक उनकी छत्रछाया में रहते हैं? जब तक लक्ष्मी जी और सरस्वती माँ के बीच अंकों की ज़िम्मेदारी का फैसला नहीं हो जाये, शायद हम गणपति बप्पा से कह सकते हैं कि वे ही अंकों की ज़िम्मेदारी का भार सम्भालें?

"क्या हुआ, क्यों इतने परेशान हो?" आप चुटकी लेते हुए पूछेंगे, "क्या कोई अंक खो गया है, और उसे खोजने की आरती का आयोजन करना है?"

नहीं, ऐसी बात नहीं, मेरा कोई अंक नहीं खोया। मुझे एक अन्य बात पूछनी है। बात यह है कि बाकी दुनिया ने हिन्दी और संस्कृत को पिछड़ा मान कर छोड़ दिया और अंग्रेज़ी को गले लगा लिया तो हमने मान लिया कि आज के आधुनिक युग में पैसा, तरक्की और कमाई ही सब कुछ है, अपनी भाषा की बात करना पिछड़ापन है। लेकिन उन्होंने देवी-देवता हो कर, क्यों उसी थाली में छेद किया जिसका खाते हैं? बिना हिन्दी और संस्कृत के उनकी पूजा कौन करेगा? क्यों उन्होंने अपने ही पैरों पर कु्ल्हाड़ी मारी?

"भैया बात का हुई, ठीक से बताओ", आप मन ही मन में हँसते हुए, ऊपर-ऊपर से नकली सुहानूभूति वाला चेहरा बना कर कहोगे। या फ़िर आप मन में सोच रहे हो कि यह साला तो सठिया गया, भला लक्ष्मी या सरस्वती ने कब कहा कि कान्वैंट में पढ़ो या अंग्रेज़ी में आरती करो?

पर बात सचमुच गम्भीर है। बात यह है कि उन्होंने सभी अंक अंग्रेज़ी की वर्णमाला के अक्षरों के नाम कर दिये हैं और बेचारी हिन्दी और संस्कृत की वर्णमाला के नाम कुछ नहीं छोड़ा। अब अपने नाम को शुभ कराके खाने का पैसा सब न्यूमरोलोजिस्ट खा रहे हैं, जब कि अंक-ज्ञान के पँडित भूखे मर रहे हैं। अगर एकता कपूर ने अपनी कम्पनी का नाम बालाजी पर रखा हैं, क्यों वह "K" पर सीरयल  बना कर, उन न्यूमरोलोजिस्टों को पैसा चढ़ाती है, वह उन्हें "क" पर क्यों नहीं  बना सकती थीं?

"अरे भाई, बस इतनी सी बात?" आप मुझे साँत्वना देते हुए कहेंगे, "आप उन सब को "K" के बदले "क" के सीरीयल समझ लीजिये। आप की बात भी रह गयी, और एकता कपूर की भी, उसमें देवी-देवताओं को घसीटने की क्या बात है?"

आप समझते नहीं हैं। अगर यह जानना हो कि कोई नाम शुभ है या अशुभ, तो इसे केवल अंग्रेज़ी में जाँचा जा सकता है, हिन्दी या संस्कृत में नहीं। ऐसा पक्षपात अंग्रेज़ी के साथ क्यों? तभी तो जब फ़िल्म नहीं चलती, तो विवेक Vivek से Viveik बन जाते हैं, अजय देवगन Devgan से Devgn बन जाते हैं, जिम्मी शेरगिल Shergill से Sheirgill बन जाते हैं, ऋतेष देशमुख Ritesh से Riteish बन जाते हैं, और सुनील शेट्टी Sunil से Suneil बन जाते हैं?

God of numerology - graphic by S. Deepak, 2012

इसका अर्थ तो यही हुआ कि भगवान भी अब लोगों के नाम केवल अंग्रेज़ी में सुनते हैं, हिन्दी में नहीं सुनते!

आप भी कुछ सोच में पड़ जाते हैं, और कुछ देर बाद कहते हैं, "नहीं भाई यह बात नहीं है। भगवान ने कहा कि अंग्रेज़ी भाषा ऐसी है कि उसे तोड़-मरोड़ लो, उसमें अक्षर जोड़ो या घटाओ, नाम वही सुनायी देता है। यानि माता-पिता के दिये हुए नाम की इज़्ज़त भी रह जाती है, और मन को तसल्ली भी मिल जाती है कि अपने बुरे दिन बदलने के लिए हमने न्यूमोरोलोजिस्ट वाली कोशिश भी कर ली। क्या जाने इसी से किस्मत बदल जाये!"

बात तो ठीक ही लगती है आप की।

"असल बात यह है", आप फुसफुसा कर कहते हैं मानो कोई रहस्य की बात बता रहे हों, "जब लक्ष्मी देवी बोर हो रही होती हैं तो वे भी स्टार डस्ट या सोसाईटी जैसी अंग्रेज़ी पत्रिका पढ़ कर अपना टाईम-पास करती हैं। तभी उनकी दृष्टि बेचारे विवेक ओबराय या अजय देवगन की इस प्रार्थना पर पड़ती है कि वह भक्त उनसे कुछ माँग रहे हैं। इसमें उनकी गलती नहीं, बात यह है कि देवी देवताओं के लिए कोई स्तर की हिन्दी की फ़िल्मी पत्रिका जो नहीं है!"

अब समझा। अगर हिन्दी में कोई स्तर की फ़िल्मी-पत्रिका होती तो लक्ष्मी जी अवश्य उसे ही पढ़तीं और चूँकि हिन्दी में आप नाम में उसकी ध्वनि बदले बिना नया अक्षर नहीं जोड़ सकते, तो यह न्यूमोरोलोजी वालों का धँधा ही ठप्प पड़ जाता। तब बेचारे अभिनेताओं को प्रति दिन, सचमुच की प्रार्थना करने के लिए बाला जी या सबरीमाला या सिद्धविनायक के मन्दिर में जाना पड़ता और मुम्बई के यातायात में यह काम उतना आसान नहीं है।

धन्यवाद गुरुजी, मेरी बुद्धि खोलने का। अब आप की बात मेरी अक्ल में भी आयी।

***

25 टिप्‍पणियां:

  1. Zabardast anveshan kiya hai aapne hamare beech saans leti hui darpok mansikta ka jo jevan mein parishram se jayada pakhand ko mahatv deti hai.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद नीरज. सच में बात तो पाखँड की है या फ़िर मन को दिलासा देने की, कि शायद क्या जाने, इसी से कुछ हो जाये!

      हटाएं
  2. Very interesting post Doc! Thanks...Aammiitt(Ah! there you go!):D

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. Dear doc please drop the 'जी' as advises numerolo'gy' :D

      हटाएं
    2. अब न्यूमोरोलोजी की बात कर रहे हैं तो फ़िर तो मानना ही पड़ेगा :)

      हटाएं
  3. हाँ जी, यह तो सोचने वाली बात है। अंक ज्योतिष में भी अंग्रेजी का बोलबाला या विदेशी देव/देवी का आयात !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. वाह, यह बात तो सोची ही नहीं थी कि न्यूमोरोलोजी के भगवान भी शायद आयातित हों! :)

      हटाएं
  4. अनहोनी जैसे कर्म-विधान से मनुष्य बौखला जाता है, ऐसे में तिनके ढ़ूंढ़ता फिरता है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बिल्कुल ठीक, सभी अँध विश्वास का यही कारण है शायद, सहारे के तिनके खोजना

      हटाएं
  5. जिधर से पैसा आ रहा है आजकल उधर की ही सुनी जा रही है ... अंकों का खेल जो है ....
    बहुत बढ़िया विचारनीय प्रस्तुति ..

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जो यह काम करते हैं उनके लिए सब पैसे की ही माया है, और जो इस भ्रमजाल में फँस जाते हैं, उनको भी पैसे प्रसिद्ध का ही लालच है :)
      धन्यवाद कविता जी

      हटाएं
  6. उत्तर
    1. किसके लिए? यह धँधा करने वालों के लिए? धँधे में अपने दुर्भाग्य का ईलाज़ खोजने वालों के लिए? या फ़िर हम ब्लागियों के लिए? ;)

      हटाएं
  7. बात तो गहरी है, देवताओं ने अंग्रेजी सीख ली होगी।

    जवाब देंहटाएं
  8. उत्तर
    1. वैसे ही दीन दुखियों को कोई नहीं पूछता, अगर प्रभु भी मुख मोड़ लेंगे तो वे कहाँ जायेंगे, किसी अंग्रेज़ी वाले से चिट्ठी लिखवाने?
      धन्यवाद मुकेश जी

      हटाएं
  9. बहुत अच्छी प्रस्तुति! excellent ....

    जवाब देंहटाएं
  10. बाबागिरी की भाषा भी अलग है और गणित भी - होराशास्त्र में वह बात कहाँ जो हॉरोस्कोप में है। वैसे ही कलेंडर मॉडर्न है कालगणना पिछड़ी हुई। बाय द वे, आपका लकी नम्बर क्या है? :)

    जवाब देंहटाएं
  11. Sorry i don't know how to type in Hindi though my Hindi is very good-please don't mind...BTW even foreigners admit that Sanskrit is most suitable for computers..such a compact language it is.Maybe it is the British rule which is responsible for our inferiority complex.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इन्दू जी, धन्यवाद. :)

      जब अपने भारत वाले ही संस्कृत को मृत भाषा कहते हैं तो विश्व में उसे कैसे साख मिलेगी? जिस भाषा को बोलते हैं, उसको उसका स्थान हमें ही पहले देना होगा, तभी बाकी की दुनिया भी देगी

      हटाएं

"जो न कह सके" पर आने के लिए एवं आप की टिप्पणी के लिए धन्यवाद.

इस वर्ष के लोकप्रिय आलेख