हिन्दू जगत के देवी देवता दुनिया की हर बात की खबर रखते हैं, दुनिया में कुछ भी ऐसा नहीं जो उनकी दृष्टि से छुप सके. मुझे तलाश है उस देवी देवता की जिनका काम है अंकों की देखभाल करना. व्यापारी लोग लाभ नुकसान का ध्यान रखते हैं तो क्या व्यापारियों की आराध्य लक्ष्मी को ही अंको की देवी माना जाये? या फ़िर ज्ञान की देवी सरस्वती जो छात्रों की आराध्य हैं, उनकी छत्रछाया में रहते हैं अंक? जब तक लक्ष्मी जी और सरस्वती माँ के बीच अंकों की ज़िम्मेदारी का फैसला नहीं हो, शायद हम गणपति बप्पा से कह सकते हैं कि वे ही अंकों की ज़िम्मेदारी का भार सम्भालें?
"क्या हुआ, क्यों इतने परेशान हो?" आप पूछेंगे, चुटकी लेते हुए, "क्या कोई अंक खो गया है, उसे खोजने की आरती का आयोजन करना है?"
नहीं मेरा कोई अंक नहीं खोया. मुझे एक अन्य बात पूछनी है. बात यह कि बाकी दुनिया ने हिन्दी और संस्कृत को पिछड़ा मान कर छोड़ दिया और अंग्रेज़ी को गले लगाया तो हमने मान लिया कि आज के आधुनिक युग में पैसा तरक्की कमाई ही सब कुछ है, अपनी भाषा की बात करना पिछड़ापन है. लेकिन उन्होंने देवी देवता हो कर क्यों उसी थाली में छेद किया जिसका खाते हैं? बिना हिन्दी संस्कृत के उनकी पूजा कौन करेगा? क्यों उन्होंने अपने ही पैरों पर कु्ल्हाड़ी मारी?
"भैया बात का हुई, ठीक से बताओ", आप मन ही मन में हँसते हुए, ऊपर ऊपर से नकली सुहानूभूति वाला चेहरा बना कर कहोगे. आप मन में सोच रहे हो कि साला सठिया गया, भला लक्ष्मी या सरस्वती ने कब कहा कि कान्वैंट में पढ़ो या अंग्रेज़ी में आरती करो?
पर बात सचमुच गम्भीर है. बात यह है कि उन्होंने सभी अंक अंग्रेज़ी की वर्णमाला के अक्षरों के नाम कर दिये बेचारी हिन्दी और संस्कृत की वर्णमाला के नाम कुछ नहीं छोड़ा. अब नाम को शुभ करके खाने का पैसा सब न्यूमरोलोजिस्ट खा रहे हैं जब कि अंकज्ञान पँडित भूखे मर रहे हैं. अगर एकता कपूर ने अपनी कम्पनी का नाम बालाजी पर रखा हैं, क्यों वह "K" पर सीरयल बना कर उन न्यूमरोलोजिस्टों को पैसा चढ़ाती है, "क" पर क्यों नहीं बना सकती थीं?
"अरे भाई बस इतनी सी बात?" आप मुझे साँत्वना देते हुए कहेंगे, "आप उन सब को "K" के बदले "क" के सीरीयल समझ लीजिये. आप की बात भी रह गयी, उसमें देवी देवताओं को घसीटने की क्या बात है?"
आप समझते नहीं हैं. अगर यह जानना हो कि कोई नाम शुभ है या अशुभ, तो इसे केवल अंग्रेज़ी में जाँचा जा सकता है, हिन्दी या संस्कृत में नहीं. ऐसा पक्षपात अंग्रेज़ी के साथ क्यों? तभी तो जब फ़िल्म नहीं चलती तो विवेक Vivek से Viveik बन जाते हैं, अजय देवगन Devgan से Devgn बन जाते हैं, जिम्मी शेरगिल Shergill से Sheirgill बन जाते हैं, ऋतेष देशमुख Ritesh से Riteish बन जाते हैं, सुनील शेट्टी Sunil से Suneil बन जाते हैं?
इसका अर्थ तो यही हुआ कि भगवान भी अब लोगों के नाम केवल अंग्रेज़ी में सुनते हैं, हिन्दी में नहीं सुनते!
आप भी कुछ सोच में पड़ जाते हैं, और कुछ देर बाद कहते हैं, "नहीं भाई यह बात नहीं. भगवान ने कहा कि अंग्रेज़ी भाषा ऐसी है कि तोड़ मरोड़ लो, अक्षर जोड़ो या घटाओ, नाम वही सुनायी देता है. यानि माता पिता के दिये नाम की इज़्ज़त भी रह गयी, और मन को तसल्ली भी मिल गयी कि बुरे दिन बदलने के लिए हमने कोशिश भी कर ली. क्या जाने इसी से किस्मत बदल जाये!"
बात तो ठीक ही लगती है आप की.
"असल बात यह है", आप फुसफुसा कर कहते हैं मानो कोई रहस्य की बात बता रहे हों, "जब लक्ष्मी देवी बोर हो रही होती हैं तो वे स्टार डस्ट या सोसाईटी जैसी पत्रिका पढ़ कर टाईमपास करती हैं. तभी उन की दृष्टि बेचारे विवेक ओबराय या अजय देवगन की इस प्रार्थना पर पड़ती है कि वह भक्त उनसे कुछ माँग रहे हैं. इसमें उनकी गलती नहीं. बात यह है कि देवी देवताओं के लिए कोई स्तर की हिन्दी की फ़िल्मी पत्रिका जो नहीं है!"
अब समझा. अगर हिन्दी में स्तर की फ़िल्मी पत्रिका होती तो लक्ष्मी जी अवश्य उसे ही पढ़तीं और चूँकि हिन्दी में आप नाम में उसकी ध्वनि बदले बिना नया अक्षर नहीं जोड़ सकते, तो यह न्यूमोरोलोजी वालों का धँधा ही ठप पड़ जाता. तब बेचारे अभिनेताओं को हर दिन सचमुच की प्रार्थना करने के लिए बाला जी या सबरीमाला या सिद्धविनायक के मन्दिर में जाना पड़ता और मुम्बई के यातायात में यह काम उतना आसान नहीं.
धन्यवाद गुरुजी, मेरी बुद्धि खोलने का. अब आप की बात मेरी अक्ल में भी आयी.
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