शनिवार, जून 18, 2005

ब्रान्दो के साथ सैर

समुद्री पाइन के पेड़ों की छत से ढ़का रास्ता


आज शनिवार है ‌ अभी सुबह जब ब्रान्दो के साथ सैर को निकला तो विभिन्न घरों के सामने लोगों के झुंड खड़े थे, अपना अपना सामान लिये हुये, अपनी बस का इन्तजार में. कुछ दूर पर एक अजैंसी के बाहर एक बस से उतर कर लोग अपने अपने घर की अलाटमैंट की इन्तजार कर रहे थे. इटली के आस पास के देश जैसे जर्मनी, पोलैंड, चेक आदि से सब टूरिस्ट शुक्रवार की रात को चलते हैं और यहाँ शनिवार को सुबह पहुचते हैं और फिर पिछले हफ्ते के आये टूरिस्टों को ले कर बसें वापस लौट जानीं हैं.

पहले एक देश होता था चेकोस्लोवाकिया और आज दो देश हैं चेक और स्लोवाकिया. यहाँ इन दोनो देशों को अलग होने मे कोई खून खराबा नहीं हुआ, क्यों? आज के यूरोप मे क्यों छोटे छोटे देश बनाने का क्या फायदा जब की दूसरी ओर से कोशिश हो रही है कि संयुक्त्त राष्टृ यूरोप का निर्माण करने का ?

जैसे आज यूरोप मे एक देश से दूसरे देश जाने मे न तो वीसा चाहिये और न ही वहाँ काम ढ़ूढ़ंने के लिये कोई परमिशन, अगर भारत, बांगलादेश, श्रीलंका, नेपाल आदि देशों मे यूँ होने लगे तो कैसा होगा ? शायद इन सब देशों से बहुत से लोग भारत की तरफ आ जायेंगे क्यों कि भारत में कमाने के अधिक मौके मिल सकते हैं, पर इसी तरह भारतीय व्यापारी भी तो इन नये देशों मे व्यापार बढ़ाने के नये माध्यम खोज सकते हैं ‌ क्या एक दिन वैसा हो सकेगा ?

शुक्रवार, जून 17, 2005

लाईट हाऊस

बोलोनिया की "पेर तोत" यानि, ग्रीष्म ऋतु के स्वागत फैस्टिवल में तैयार होता एक कलाकार

सुबह ६ बजे नींद खुली, नाश्ता किया और ब्रान्दो के साथ सैर को निकल गया, लाईट हाऊस की तरफ. रास्ते में पाइन के पेड़ों की और उनके पीछे दिख रहे समुद्र की बहुत सारी तस्वीरें खींचीं. लाईट हाऊस पहुँच कर पाया कि वहाँ एक इतालवी टी. वी. फिल्म की [फिल्म का नाम था "समुद्र के सामने ज़ुर्म"] शूटिगं चल रही थी इस लिये वह सब रास्ता बंद कर दिया गया था.
पर वहाँ कोई भीड़ भड़्क्का नहीं था शूटिंग देखने के लिये ‌ शायद इसलिये भी कि बिब्योने के टूरिस्ट भिन्न भिन्न यूरोपी देशों से आये हैं और शायद उन्हें इतालवी फिल्मी सितारों में कोई दिलचस्पी ही नहीं है?

ब्रान्दो के साथ सैर पर जाने का यह फायदा होता है कि रास्ते में मिलने वाले सभी कुत्ता स्वामियों से सलाम या कम से कम थोड़ी मुस्कुराहट तो हो ही जाती है. जब भी कोई कुत्ता दिखता है मेरा पहला सवाल होता है "मास्कियो ओ फैम्मिना?" यानी पुरुष कुत्ता या स्त्री कुत्ता?
पुरुष कुत्तों से ब्रान्दो की बिल्कुल नहीं बनती इस लिये रुकने का सवाल ही नहीं होता. स्त्री कुत्तों के स्वामियों से अवश्य कुछ बात हो जाती है. आज इस पुरुष और स्त्री जाँच मे भाषा की बाधा बार बार आ रही थी क्योंकि कोई पोलिश बोलने वाला तो कोई जर्मन या हन्गेरियन या अन्य पूर्वी यूरोप भाषी.
ढ़ाई घँटे के बाद घर वापस लौटे तो मेरी और ब्रान्दो दोनो की हालत खस्ता हो रही थी.

सोमवार, जून 13, 2005

बिब्योने की छुट्टियँ।

मारको और ब्रान्दो

आज से यह ब्लोग शुशा फौंट में नहीं बल्कि युनीकोड में रघु फौंट मे लिखा जायेगा. हिन्दी वेबरिंग के
देबआशिष ने इस ब्लोग को ठीक करने की कुछ कोशिश की तो उसी से युनीकोड के बारे में मालूम हुआ पहले तो सोचा कि कौन सीखेगा इस नये कीबोर्ड को पर कुछ कोशिश कर के देखा तो लगा कि इसमे लिखना खास कठिन नहीं है.


रघु में लिखना शुशा के मुकाबले मे अधिक आसान है बस अभी कुछ वोकलस् लिखना समझ नहीं आया
आज हम लोग बिब्योने मे जो उत्तरी इटली मे वेनिस के करीब है, वहाँ छुट्टियों मे आये हैं. आज ही यहाँ पहुँचे हैं, अब अगले दिनों मे हिन्दी लिखने का अभ्यास करने का समय मिलेगा.

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