शुरु शुरु में तो थोड़ी मायूसी हुई. फिर सोचा कि भाई आज अगर चिट्ठे से छुट्टी है तो कुछ और काम ही किया जाये. कई काम पिछले दिनों से रुके थे क्योंकि हमें चिट्ठा लिखने से ही फुरसत नहीं थी. कुछ देर काम किया फिर सोचा क्यों न काम पर जाने से पहले, कुत्ते को ही घुमा लाया जाये, इससे पत्नि जिसे कमर का दर्द हो रहा है, उसे कुछ आराम ही मिलेगा. अच्छा ही हुआ कि आज इसने हमें छुट्टी दे दी सोचते हुए हमने कहा बस एक बार और कोशिश कर के देख लेते हैं, शायद सर्वर जी का मिजाज़ अब ठीक हो गया हो. और यूँ ही हुआ.
बस हो गयी मुश्किल. क्या करें हम, आप ही कहिये ? अब हमें अपने कुत्ते के साथ सैर को जाना चाहिये या यहाँ बैठ कर चिट्ठा लिखना चाहिये ? दोनो काम तो हो नहीं सकते क्योंकि काम पर भी तो जाना है.
शाम को बेटे को डाँट रहा था. सारा दिन इस कम्प्यूटर के सामने. कुछ बाहर जाओ, छोड़ो इस मिथ्या दुनिया के मोह को, सच्ची दुनिया में जीना सीखो. बच्चों को उपदेश देना आसान है पर आप क्या सोचते हैं, क्या फैसला किया मैंने ?
आज की तस्वीर, कल रात को निकला चाँद.

ha ha ha ha too good. Yehi samasya main bhi aksar mehsoos karta hun
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