केवल एक सप्ताह के लिए मनीला आया था और सारे दिन कोन्फ्रैंस की भाग-दौड़ में ही गुज़र गये थे. उस पर से यूरोप से सात घँटे के समय के अंतर की वजह से शाम होते होते नींद के मारे पलकें खुली रखना असम्भव सा लगता था, बस एक दिन रात को थोड़ी देर के लिए बाहर सैर करने को बाहर गया था, तो करीब के एक बाग में रंग बिरंगी रोशनी वाले संगीतमय फुव्वारे देखे थे, जिसमें संगीत की ताल पर पानी की धाराएँ इधर उधर डोलती हुई नृत्य करती हुई लगती थीं.
आखिर जिस दिन वहाँ से वापस आना था, उसी दिन सुबह जल्दी उठने का कार्यक्रम बनाया कि कम से कम मनीला छोड़ने से पहले, एक घँटे में कुछ आसपास घूम कर देखूँ. हमारा होटल शहर के मध्य में यूनाईटिट नेशन के मैट्रो स्टेशन के पास था. नक्शे में देखा कि जहाँ मैंने संगीतमय फुव्वारे देखे थे उसके करीब ही कुछ संग्रहालय और अन्य देखने वाली जगहें थी.
सुबह साढ़े पाँच बजे का अलार्म लगाया था. जब अलार्म बजा तो एक पल के लिए मन में आया कि करीब 24 घँटे की यात्रा की थकान का सामना करना था, कुछ और सोना ही बेहतर होगा. लेकिन फ़िर सोचा कि जाने कब दोबारा मनीला आने का मौका मिले, इसे खोना नहीं चाहिये. यही सोच कर मन कड़ा करके उठा और जल्दी से नहाया और सामान तैयार किया. जाने की सब तैयारी करके छः बजे होटल से सैर को निकला.
फिलीपीन्स देश करीब सात हज़ार द्वीपों से बना है जिसमें सबसे बड़े द्वीप हैं लूज़ोन, विसायास और मिन्डानाव. देश की राजधानी मनीला लूज़ोन द्वीप के दक्षिण में सागरतट पर है. इस देश का इतिहास स्पेनी साम्राज्यवाद से जुड़ा है. स्पेनी साम्राज्यवाद का प्रारम्भ हुआ 1565 में और स्पेनी शासकों ने ही इसे अपने राजा फिलिप द्वितीय के नाम से फिलिपीन्स का नाम दिया. स्पेनी शासन से पहले यह द्वीप अनेक राज्यों में बँटे थे जहाँ विभिन्न दातू, राजा और सुल्तान शासन करते थे. स्पेनी साम्राज्यवादियों के आने से पहले इन द्वीपों की सभ्यता पर हिन्दू, बुद्ध तथा इस्लाम धर्मों का प्रभाव था जबकि स्पेनी शासन में यहाँ के अधिकाँश लोगों ने ईसाई कैथोलिक धर्म को अपना लिया. स्पेनी साम्राज्य 1898 तक चला जब फिलिपीन्स गणतंत्र की स्थापना हुई. लेकिन स्पेनी शासकों ने फिलीपीन्स देश को अमरीका को बेच दिया और अमरीकी फिलीपीनो युद्ध के बाद, अमरीका ने इस देश पर कब्ज़ा कर लिया. द्वितीय महायुद्ध में जापानी फौज ने फिलीपीन्स पर कब्ज़ा किया और देश के बहुत से हिस्से इस युद्ध में बमबारी से नष्ट हो गये. द्वितीय महायुद्ध में करीब दस लाख फिलीपीन निवासियों की मृत्यु हुई. अंत में 1946 में फिलीपिन्स स्वतंत्र हुआ.
होटल से निकला तो बाहर मैट्रो स्टेशन पर काम पर जाने आने वालों की भीड़ दिखी. अभी सूरज नहीं निकला था इसलिए हवा में कुछ ठँडक थी. सड़क के किनारे खाने पीने का सामान बेचने वालों के खेमचे, सड़क पर झाड़ू लगाते सफ़ाई कर्मचारी, बैंचों और रिक्शे में सोये लोग आदि देख कर लगा मानो भारत में हों. यहाँ के रिक्शे भारत से भिन्न हैं. रिक्शा खींचने वाली साईकल रिक्शे के आगे नहीं बल्कि बाजु में लगी होती है और किसी किसी रिक्शे में साईकल के बदले मोटर साईकल भी लगी होती है. यहाँ पर अधिकतर लोग अंग्रेज़ी बोलते हैं. एक रिक्शे वाले ने बताया कि रिक्शा चलाने का लायसैंस लेना पड़ता है जिससे उस रिक्शे को केवल शहर के एक हिस्से में चलाने की अनुमति मिलती है और वह शहर के बाकी हिस्सों में नहीं जा सकते. मुझे लगा कि उनका अधिकतर काम मैट्रो से आने जाने वाले लोगों को आसपास की जगहों पर ले जाना होता है.
सबसे पहले तो मैं लापू लापू स्वतंत्रता सैनानी स्मारक पर रुका. श्री लापू लापू ने स्पेनी शासन के विरुद्ध लड़ायी की थी. इस स्मारक की विशालकाय मूर्ति देख कर मुझे भारत के विभिन्न शहरों में लगी विशालकाय देवी देवताओं की मूर्तियों की याद आ गयी. स्मारक के पास बाग में रात भर काम करके, मुँह हाथ धो कर मेकअप उतारते हुए कुछ युवक दिखे. मुझे देख कर मुस्कुरा कर "गुड मार्निंग" करके अभिवादन किया. फिलीपीन्स में समलैंगिक और अंतरलैंगिक लोगों के लिए कानूनी स्वतंत्रता भी है और सामाजिक मान्यता भी. दो दिन पहले हमारी कौन्फ्रैन्स में भी देश के राष्ट्रपति के सामने, टीवी पर काम करने वाले एक प्रसिद्ध फिलीपीनी अभिनेता ने सहजता से अपने समलैंगिक होने की बात को कहा था. मैंने उनके अभिवादन का मुस्करा कर उत्तर दिया और पूछा कि क्या मैं उनकी तस्वीर ले सकता हूँ. लिपस्टिक और मेकअप लगाये एक युवक ने सिर हिला कर नहीं कहा, लेकिन उसके दो अन्य साथी जो हाथ मुँह धो कर वस्त्र बदल चुके थे, तुरंत मान गये.
युवकों से विदा ले कर मैं ओर्किड फ़ूलों के बाग को देखने गया. हालाँकि अभी उस बाग के खुलने का समय नहीं हुआ था फ़िर भी जब मैंने बताया कि मेरे पास समय कम था और मुझे थोड़ी देर में हवाई अड्डा जाना था तो बाहर बैठे सिपाही ने मुझे बिना टिकट ही अन्दर जाने दिया. बाग में ओर्किड के फ़ूल कुछ विषेश नहीं दिखे लेकिन जगह सुन्दर लगी.
इसी बाग के बाहर दक्षिण कोरिया और फिलीपीनी सैनिकों की जापानी सैना से लड़ाई से जुड़े कुछ स्मारक बने हैं.
बाग से थोड़ी दूर एक कृत्रिम झील में संगीतमय फुव्वारों का कार्यक्रम चल रहा था, जिसमें रात की रंगबिरंगी बत्तियाँ आदि नहीं थीं लेकिन सुन्दर लग रहा था. झील के किनारे स्पेनी साम्राज्य के विरुद्ध लड़ने वाली स्वतंत्रता सैनानियों की मूर्तियों की कतार लगी थी.
झील के पास संगीतमय फुव्वारे के संगीत की ताल पर चीनी ताई छी व्यायाम करने वाले लोग दिखे. ताई छी की धीमी धीमी बदलती मुद्रायें नृत्य जैसी लगती हैं. अन्य लोगों के साथ मिल कर सुबह सुबह ताई छी का व्यायाम करना चीन में भी बहुत शहरों में देखा था.
तब तक सूरज निकला आया था और गर्मी भी बढ़ने लगी थी. मैंने घड़ी देखी सात बज चुके थे. मैं वापस होटल की ओर मुड़ा. झील के किनारे बने जापानी और चीनी बागों को देखने का मेरे पास समय नहीं था, लेकिन होटल वापस आते समय मैं केवल एक अन्य छोटे से कृत्रिम तालाब में बने फिलीपीन्स के नक्शे को देखने के लिए रुका.
वापस होटल पहुँचा तो बस जल्दी से नाशता करके सामान उठाने का समय बचा था. हवाई अड्डा जाने की प्रतीक्षा में कुछ साथी तैयार खड़े थे. थोड़ी देर को ही सही, कम से कम मनीला शहर के एक छोटे से भाग को देखने में सफ़ल हुआ था.
***
सुंदर दृश्य ...महत्त्वपूर्ण जानकारी ...रिक्शे बहुत बढ़िया लग रहे हैं ...!!
जवाब देंहटाएंnice post.
Sunder lekh achhe chitron sahit.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सैम जी
जवाब देंहटाएंयहाँ के रिक्शा पसन्द आये।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संदीप जी, मुझे उनके रिक्शे कुछ छोटे से लगे. लगा कि बैठो तो शायद दो व्यक्तियों को साथ बैठने में दिक्कत होगी, विषेशकर अगर वे मुझ जैसे तंदरुस्त लोग होगें! :)
जवाब देंहटाएंइस छोटी सी यात्रा में भी आप ने इतने सारे सुंदर चित्र लिए और हमें उस से परिचित कराया।
जवाब देंहटाएंमनीला की सैर वह भी सुंदर चित्रों के साथ आभार
जवाब देंहटाएंसुंदर चित्रों से सजी पोस्ट के लिए आभार
जवाब देंहटाएंकम समय में ही आपने समय का सदुपयोग कर लिया।
आपके माध्यम से हमने भी मनीला घूम लिया। मजेदार लगा। वर्तमान काल में हैल्थ कांशियसनैस भारत की बनिस्बत दूसरे मुल्कों में ज्यादा ही दिखती है।
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!
आप सबको इस सराहना के लिए धन्यवाद. :)
जवाब देंहटाएं@दिनेश जी, तस्वीर खींचने की जो लत पड़ी है, वहाँ कुछ भी हो सबसे पहला विचार होता है कि तस्वीर खींचों!
@संजय जी, वैसे भारत के बागों में सुबह सैर और जोगिंग करने वालों की भीड़ भी बहुत होती है, कई जगह पर लोग योगाभ्यास करते हैं, कहीं हँसने वाले क्लब दिखते हैं, इस दृष्टि से भारत में स्वास्थ्य चेतना कम नहीं.
चित्र के द्वारा व्यक्त पूरी जानकारी।
जवाब देंहटाएं'छोटे से कृत्रिम तालाब में बने फिलीपीन्स का नक्शा' …वाकई बढिया लगा।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद चन्दन और प्रवीण जी
जवाब देंहटाएंसुनील जी,
जवाब देंहटाएंआपको बिना टिकट सिपाही ने पार्क में जाने दिया...आपने हमें फिलीपींस का टिकट लिए बिना इतने कम वक्त में इतनी बढ़िया सैर करा दी...
आपकी फोटो मैं जब भी कहीं देखता हूं, चेहरे से गज़ब की सच्चाई और रूहानियत नज़र आती है...और जहां तक मेरा तज़ुर्बा है, मैं चेहरे पढ़ने में बहुत कम ही गलत ठहरा हूं...
जय हिंद...
बहुत अच्छा लगा इस यात्रा के विवरण पढ़कर! फोटो बहुत सुन्दर हैं!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनूप.
जवाब देंहटाएंखुशदीप जी, मेरे चेहरे और भीतर के मानस को पहचानने के लिए धन्यवाद! मेरे विचार में मानव स्वयं जैसा होता है, दूसरों में वैसा ही देख पाता है :)
Doctor, traveller, writer, photographer, blogger, इन बहुमुखी प्रतिभाओं के स्वामि हैं आप...
जवाब देंहटाएंआपकी प्रशंसा करना, छोटी मुँह बड़ी बात होगी...
आपका आभार...
मनभावन दर्शन.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अदा तथा राहुल जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद चन्द्रभूषण जी
जवाब देंहटाएंसर बहुत आनंद आया आपकी इस पोस्ट को पढ़ कर।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत रोचक जानकारी .आभार !
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