लूका का ईमेल आया कि वह भाषाओं पर शौध कर रहा है और मुझ से हिन्दी के बारे में बात करना चाहेगा, और साथ में कहा कि मेरा नाम उसे बोलोनिया विश्वविद्यालय में काम करने वाली मेरी एक पुरानी मित्र से मिला था, तो मैंने अधिक सोचा नहीं, हाँ कर दी.
आज सुबह उसके साथ चार घँटे गुज़ारे तो समझ में आया कि हम जिस भाषा को अपनी सोचते और कहते हैं, उसके कई पक्षों को ठीक से नहीं समझते और जानते. लूका हालैंड के उट्रेख्ट विश्वविद्यालय में शौध कर रहा है जहाँ दुनिया भर की भाषाओं को परखा जा रहा है. इस शौध में लूका को कुछ भारतीय भाषाओं के बारे में जानकारी जमा करने की ज़िम्मेदारी मिली है, जिनमें हिन्दी, पँजाबी, बँगला, तमिल, तेलगू और मलयालम भी हैं.
पहले ही वाक्य का हिन्दी अनुवाद करते हुए मैं रुक गया. "I wash" का क्या अनुवाद करता? मैंने पूछा कि यह तो बताना पड़ेगा कि क्या धोना है, हाथ, मुँह या कपड़े, इसको जाने बिना इस वाक्य का हिन्दी अनुवाद नहीं हो सकता. लूका बोला, धोना नहीं, अंग्रेज़ी में तो इसका अर्थ हुआ कि मैंने नहाया. मैंने कहा कि शायद लंदन में पानी की कमी नहीं, उनके लिए नहाने और धोने में फ़र्क न हो, पर भारत में तो हम इसका अर्थ हाथ मुँह धोने के लिए करेंगे, या फ़िर कपड़े या प्लेट धोने के लिए करेंगे, जबकि अगर नहाना हो तो उसे "I take bath" कहना चाहिये!
"उसे" और "उससे" में क्या अंतर है, क्या आप ने कभी सोचा है? "मैंने उसे कहा" और "मैंने उससे कहा" में कौन सा वाक्य सही है? मेरा कहना था कि "उससे" अधिक ठीक है, पर लूका की हिन्दी व्याकरण की किताब में "उसे" और "उससे" का अंतर नहीं समझाया गया था. मैं यह तो माना कि इस वाक्य में उसे या उससे कुछ भी प्रयोग किया जा सकता है, लेकिन उसके बाद, एक और प्रश्न पर मैं फ़िर अटक गया.
मैं बोला कि "मैंने उसे किताब दी" में तो केवल "उसे" का ही प्रयोग हो सकता है, और "मैंने उससे प्रश्न पूछा" में केवल "उससे" का ही प्रयोग होना चाहिये. तो लूका ने पूछा कि इसका नियम समझाओ, किस स्थिति में उसे का प्रयोग होना चाहिये, और किस स्थिति में उससे का? जितना अलग अलग वाक्यों के बारे में सोचता, उतना ही नियम स्पष्ट समझ नहीं आते. थोड़ी देर में लगने लगा कि उसके शौध में सहायता के लिए हाँ कह कर मैंने बेमतलब ही परेशानी अपने सिर पर ले ली थी.
अगले हिस्से के अनुवाद में तो और भी झँझट हुई. जिस वाक्य का अनुवाद करना था, वह था, "This woman (Mary) told that she (Mary) will win the race". मैंने अनुवाद किया, "इस औरत ने बताया कि वह दौड़ जीतेगी." लूका का कहना था कि जब "इस" की बात हो रही है तो इस वाक्य के दूसरे हिस्से में, "वह" की जगह "यह" का प्रयोग होना चाहिये. इस तरह के कितने ही वाक्यों पर बार बार अटकते रहे. मैं कुछ कहता और वह कहता कि यह बात अन्य भाषाओं से मेल नहीं खाती, अवश्य कुछ गलती होगी.
"This woman is in danger. She needs help." इसका मेरा अनुवाद था, "यह औरत खतरे में है. इसे मदद चाहिये." तो लूका बोला कि जब तुम पहले वाक्य में "वह" का प्रयोग करते हो, तो इस वाक्य में, "इसे" की जगह, "उसे" होना चाहिये. आखिर तंग आ कर मैं बोला कि मुझे बोलना आता है, हर बात के नियम और ऐसा क्यों होता है और वैसा क्यों नहीं होता, इसके उत्तर मैं नहीं दे सकता.
जो मैं कह रहा था, उसे लिखा कैसे जाये इस पर भी बहस हुई. जब "लड़की" लिखना था तो मैंने कहा कि "ladki" लिखो या "larki", क्योंकि अंग्रेज़ी में "ड़" की ध्वनि नहीं होती, तो वह बोला, पर हिन्दी को रोमन वर्णमाला में लिखने का नियम क्या है? मैंने कहा कि कोई नियम नहीं, जिसके जो मन में आये वह लिख लो. वह बोला कि जब तुम लोग ईमेल या एसएमएस में एक दूसरे को रोमन वर्णों में लिखते हो, तो बिना नियम के कैसे लिखते हो, और जिन हिन्दी शब्दों की ध्वनि अंग्रेज़ी में नहीं होती उसके लिखने के लिए जिससे किसी को कोई कन्फ़यूजन न हो, भारत सरकार ने कोई नियम क्यों बनाये, तो मुझे समझ नहीं आया कि क्या कहूँ. भारत सरकार को हिन्दी के शब्दों को अंग्रेज़ी में कैसे लिखा जाये इससे अधिक अन्य महत्वपूर्ण काम करने होते होगे, मुझे नहीं लगता कि कोई इस पर नियम बना सकता है.
खैर जब काम समाप्त हुआ तो लगा मानो किसी चक्रव्यूह से निकल कर आया हूँ. पर बाद में सोच रहा था कि विभिन्न भाषाओं के बीच में काम करना कितना कठिन है. जब हम नयी भाषा सीखते हैं तो छोटे छोटे नियमों को सीखना तो आ जाता है, लेकिन जो भाषा बोलने से बनती है, जिसमें किस तरह कहा जाये यह नियम से अधिक आदत पर निर्भर होता है, तो वह किताबों से नहीं मिलता. सबसे अधिक बात जो मन को चु।भ रही थी वह थी कि जिसे मातृभाषा कहते हैं, उसके बारे में कितना कुछ नहीं जानते!
***
आज सुबह उसके साथ चार घँटे गुज़ारे तो समझ में आया कि हम जिस भाषा को अपनी सोचते और कहते हैं, उसके कई पक्षों को ठीक से नहीं समझते और जानते. लूका हालैंड के उट्रेख्ट विश्वविद्यालय में शौध कर रहा है जहाँ दुनिया भर की भाषाओं को परखा जा रहा है. इस शौध में लूका को कुछ भारतीय भाषाओं के बारे में जानकारी जमा करने की ज़िम्मेदारी मिली है, जिनमें हिन्दी, पँजाबी, बँगला, तमिल, तेलगू और मलयालम भी हैं.
पहले ही वाक्य का हिन्दी अनुवाद करते हुए मैं रुक गया. "I wash" का क्या अनुवाद करता? मैंने पूछा कि यह तो बताना पड़ेगा कि क्या धोना है, हाथ, मुँह या कपड़े, इसको जाने बिना इस वाक्य का हिन्दी अनुवाद नहीं हो सकता. लूका बोला, धोना नहीं, अंग्रेज़ी में तो इसका अर्थ हुआ कि मैंने नहाया. मैंने कहा कि शायद लंदन में पानी की कमी नहीं, उनके लिए नहाने और धोने में फ़र्क न हो, पर भारत में तो हम इसका अर्थ हाथ मुँह धोने के लिए करेंगे, या फ़िर कपड़े या प्लेट धोने के लिए करेंगे, जबकि अगर नहाना हो तो उसे "I take bath" कहना चाहिये!
"उसे" और "उससे" में क्या अंतर है, क्या आप ने कभी सोचा है? "मैंने उसे कहा" और "मैंने उससे कहा" में कौन सा वाक्य सही है? मेरा कहना था कि "उससे" अधिक ठीक है, पर लूका की हिन्दी व्याकरण की किताब में "उसे" और "उससे" का अंतर नहीं समझाया गया था. मैं यह तो माना कि इस वाक्य में उसे या उससे कुछ भी प्रयोग किया जा सकता है, लेकिन उसके बाद, एक और प्रश्न पर मैं फ़िर अटक गया.
मैं बोला कि "मैंने उसे किताब दी" में तो केवल "उसे" का ही प्रयोग हो सकता है, और "मैंने उससे प्रश्न पूछा" में केवल "उससे" का ही प्रयोग होना चाहिये. तो लूका ने पूछा कि इसका नियम समझाओ, किस स्थिति में उसे का प्रयोग होना चाहिये, और किस स्थिति में उससे का? जितना अलग अलग वाक्यों के बारे में सोचता, उतना ही नियम स्पष्ट समझ नहीं आते. थोड़ी देर में लगने लगा कि उसके शौध में सहायता के लिए हाँ कह कर मैंने बेमतलब ही परेशानी अपने सिर पर ले ली थी.
अगले हिस्से के अनुवाद में तो और भी झँझट हुई. जिस वाक्य का अनुवाद करना था, वह था, "This woman (Mary) told that she (Mary) will win the race". मैंने अनुवाद किया, "इस औरत ने बताया कि वह दौड़ जीतेगी." लूका का कहना था कि जब "इस" की बात हो रही है तो इस वाक्य के दूसरे हिस्से में, "वह" की जगह "यह" का प्रयोग होना चाहिये. इस तरह के कितने ही वाक्यों पर बार बार अटकते रहे. मैं कुछ कहता और वह कहता कि यह बात अन्य भाषाओं से मेल नहीं खाती, अवश्य कुछ गलती होगी.
"This woman is in danger. She needs help." इसका मेरा अनुवाद था, "यह औरत खतरे में है. इसे मदद चाहिये." तो लूका बोला कि जब तुम पहले वाक्य में "वह" का प्रयोग करते हो, तो इस वाक्य में, "इसे" की जगह, "उसे" होना चाहिये. आखिर तंग आ कर मैं बोला कि मुझे बोलना आता है, हर बात के नियम और ऐसा क्यों होता है और वैसा क्यों नहीं होता, इसके उत्तर मैं नहीं दे सकता.
जो मैं कह रहा था, उसे लिखा कैसे जाये इस पर भी बहस हुई. जब "लड़की" लिखना था तो मैंने कहा कि "ladki" लिखो या "larki", क्योंकि अंग्रेज़ी में "ड़" की ध्वनि नहीं होती, तो वह बोला, पर हिन्दी को रोमन वर्णमाला में लिखने का नियम क्या है? मैंने कहा कि कोई नियम नहीं, जिसके जो मन में आये वह लिख लो. वह बोला कि जब तुम लोग ईमेल या एसएमएस में एक दूसरे को रोमन वर्णों में लिखते हो, तो बिना नियम के कैसे लिखते हो, और जिन हिन्दी शब्दों की ध्वनि अंग्रेज़ी में नहीं होती उसके लिखने के लिए जिससे किसी को कोई कन्फ़यूजन न हो, भारत सरकार ने कोई नियम क्यों बनाये, तो मुझे समझ नहीं आया कि क्या कहूँ. भारत सरकार को हिन्दी के शब्दों को अंग्रेज़ी में कैसे लिखा जाये इससे अधिक अन्य महत्वपूर्ण काम करने होते होगे, मुझे नहीं लगता कि कोई इस पर नियम बना सकता है.
खैर जब काम समाप्त हुआ तो लगा मानो किसी चक्रव्यूह से निकल कर आया हूँ. पर बाद में सोच रहा था कि विभिन्न भाषाओं के बीच में काम करना कितना कठिन है. जब हम नयी भाषा सीखते हैं तो छोटे छोटे नियमों को सीखना तो आ जाता है, लेकिन जो भाषा बोलने से बनती है, जिसमें किस तरह कहा जाये यह नियम से अधिक आदत पर निर्भर होता है, तो वह किताबों से नहीं मिलता. सबसे अधिक बात जो मन को चु।भ रही थी वह थी कि जिसे मातृभाषा कहते हैं, उसके बारे में कितना कुछ नहीं जानते!
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हिन्दी लिखने के लिये तो वही लिपी चाहिये जिसमे हिन्दी के सभी वर्णो को लिखा जा सके। यह काम देवनागरी ही कर सकती है रोमन नही ! ऐसे मे हिन्दी को अंग्रेजी (रोमन) मे लिखने की जहमत क्यों उठाये ! हिन्दी के साथ देवनागरी सीखना जरूरी है।
जवाब देंहटाएंइसे पढ़कर मुझे मेरी चीनी मित्र से हुई बातचीत याद आ गयी. उसने जर्मन में स्नातक किया था और हाईदलबर्ग विश्वविद्यालय में वह इन्डोलौजी पढ़ रही थी. उसे अपने पांच सालों के सत्र में संस्कृत, उर्दू, पंजाबी, तमिल, मराठी और बँगला का ज्ञान भी प्राप्त करना था. उसके साथ बात करना बड़ी माथापच्ची थी.
जवाब देंहटाएंलेकिन उसकी हिंदी की लिखावट टाइपिंग जैसी लगती थी.
जहाँ तक लिपि की बात है मुझे हिंदी और उर्दू के सम्बन्ध में देवनागरी और अरबी लिपि की मुसीबतों से दो-चार होना पड़ता है. हिंदी और उर्दू का व्याकरण भिन्न नहीं है पर लिखते समय उर्दू में बड़ी झंझट हैं. उसमें 'ज़' के लिए चार अल्फाबेट हैं और 'स' के लिए तीन लेकिन हिंदी की कुछ ध्वनियाँ उसमें हैं ही नहीं. उर्दू को अटकल से भी पढना पड़ता है और उसमें मात्राएँ भी नगण्य हैं. मेरे नाम 'निशांत' को उर्दूदां 'निशानत' भी पढ़ सकते हैं और 'नशानत' भी. लेकिन देवनागरी जाननेवाला उसे निशांत ही पढ़ेगा. इसी तरह केवल रोमन जाननेवाले व्यक्ति मेरे नाम को 'निशैंट' या 'निशौंट' भी पढ़ सकते हैं.
फ्रेंच सीखने के दौरान मुझे बड़ी दिक्कतें गयीं. उसका कालविभाजन हमारे लिए सुविधाजनक नहीं है. क्रियाओं के उसमें दस, बीस, या पच्चीस रूप भी हैं जिनके लिए सीखनेवाले को टेबलों का सहारा लेना पड़ता है.
झक मारकर हमें यही कहना पड़ता है के 'हमारी' लिपि और 'हमारी' भाषा ही सर्वश्रेष्ठ है और इसे में सबसे स्वयं को व्यक्त करने के सबसे अधिक सहूलियतें हैं.
मैंने आपका फ्लिकर पेज देखा पर उसमें तो बहुत कम चित्र हैं. शायद आपने उसे लम्बे समय से अपडेट नहीं किया है.
निशाँत इस लम्बी और दिलचस्प टिप्पणी के लिए बहुत धन्यवाद. अवश्य ही इस विषय पर कितने सारे उदाहरण जमा किये जा सकते हैं. आज के भूमण्डलिकरण के जीवन में शायद ऐसे प्रश्न अक्सर उठते हैं और भाषाओं का कुछ ध्वनियों को खोना भी अन्य भाषाओं में भी अवश्य होता होगा.
जवाब देंहटाएंफ्लिक्र की बात ठीक याद दिलायी, मुझे अपने उस पन्ने को देखे भी कई साल हो गये शायद! काम के अतिरि्कत भी जीवन में करने वाली इतनी सारी बातें दिलचस्प है, सबके लिए समय नहीं निकल पाता. खैर फ्लिक्र पर कुछ नयी तस्वीरें डालने की अवश्य जल्दी ही कोशिश करुँगा.
बड़े मौलिक प्रश्न थे, उत्तर तो मिलने ही चाहिये।
जवाब देंहटाएंरोचक चर्चा के लिये धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंदेवनागरी को 'पूर्णतः शुद्ध' तरीके से रोमन में बदलने के लिये कई पद्धतियाँ हैं औरुनका प्रयोग किया जाता है। इसके लिये भारतीय मानक भी है।
iTrans, हार्वर्ड-क्योटो सहित कई पद्धतियाँ हैं। विस्तृत जानकारी यहाँ है-
Devanagari transliteration
http://en.wikipedia.org/wiki/Devanagari_transliteration
अनुनाद, देवनागरी को रोमन में बदलने के भारतीय मानक भी हैं, पर शायद भाषा पढ़ने लिखने वालों के लिए? आम लोग एसएमएस में क्या लिखते हैं, कौन सी ध्वनियाँ भूल रहे हैं, भाषा कैसे बदल रहे हैं, क्या इस पर भी भारतीय सरकार की कोई नीति है या ऐसा कुछ कि बच्चों को स्कूल में पढ़ाया जाये?
जवाब देंहटाएंवाह, निशान्त जी ने तो अच्छा बताया। भाषा का व्याकरण जानना और उसे बोलना अलग बात है।
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