पहाड़ों के बीच में घाटी में बसा सगसाई शहर बहुत सुंदर है. दो नदियाँ बहती हैं टगरन और सगसाई. टगरन में बाढ़ सी आ रही थी और पानी का बहाव बहुत तेज था. एक जगह जीप नदी पार करने के लिए पानी में उतरी तो लगा कि बह ही न जाये. वहाँ रहने वाले अधिकतर लोग कजाक जाति के हैं यानि मुसलमान जबकि मँगोलिया में अधिकतर लोग बुद्ध धर्म के हें और बायान उल्गीई अकेला राज्य है जहाँ अधिक मुसलमान हैं, उनकी भाषा भी भिन्न है. हरि नाम है यहाँ विकलांग कार्यक्रम के अधिकारी का, नाम हिंदु लग सकता है पर धर्म है मुसलमान. बहुत हँसमुख है. कहने लगा कि यहाँ के मुसलमान बातचीत कपड़ों, आदतों में अन्य मँगोलिया वासियों जैसे ही हैं. लड़कियाँ और औरतें पर्दा नहीं करती, पैंट स्कर्ट आदि ही पहनती हैं. लोग वोदका भी बहुत पीते हैं, हाँ सुअर का माँस नहीं खाते. पर वह बता रहा था कि यहाँ के युवकों को साऊदी अरब, तुर्की और पाकिस्तान जैसे देशों से छात्रवृति का लालच दे कर बुला लेते हैं और यह युवक वापस आ कर पुराने ढंग से, इस्लाम का पालन करते हुए रहने की बात करते हें पर इसका अब तक कुछ विषेश असर नहीं पड़ा है.
***
कल रात को ओम्नोगोबी जिले के शहर में पहुँचे. पता चला कि शहर के अकेला होटल में जगह नहीं क्योकि वहाँ राष्ट्रीय चुनाव में खड़े होने वाले क्राँतीकारी दल के उम्मीदवार और उनके साथी ठहरे हैं. चुनाव जून के अंत में होने वाले हैं. आखिर जगह मिली जिला अस्पताल में, जहाँ रात की ड्यूटी करने वाले डाक्टर साहब ने अपना कमरा मुझे दिया और बाकी के साथियों को वार्ड में जगह मिली. यह तो अच्छा हुआ कि अस्पताल में कुछ बिस्तर खाली थे वरना किसी को कार में या बाहर तम्बु लगा कर सोना पड़ता. कल शाम से ही इतनी तेज हवा चल रही है कि बाहर निकलना कठिन है. सारे जानवर, गाय, याक, भेड़ें, आदि झुंड बना कर हवा से लड़ने बैठे हैं, दूर दूर तक सब खुला जो है और छुपने के लिए कोई जगह नहीं.
अस्पताल का कमरा है तो अच्छा पर यहां पानी का नल नहीं और पाखाना अस्पताल के बाहर दूर बना है. बाल्टी में से कड़छी से पानी ले कर मुंह हाथ धोये तो बचपन के दिन याद आ गये. जब से मंगोलिया आया था कब्ज लगी थी पर आज सुबह सुबह पाखाना जाने की जरुरत महसूस हुई. सूरज की रोशनी तो सुबह चार बजे ही शुरु हो जाती है. बाहर वार्ड में निकला तो सब लोग सो रहे थे बस रात की ड्यूटी वाली नर्स जागी हुई थी, चाय पी रही थी. अस्पताल के बाहर निकला तो लगा कि हवा उड़ा कर ले जायेगी. पाखाना घर भी लकड़ी के बने हैं जिनमें बड़े बड़े छेद हैं और उसका दरवाजा भी बंद नहीं हो रहा था, अंदर हर तरफ से तेज हवा घुस रही थी. जब काम करके वापस अस्पताल में आया तो लगा मानो एवरेस्ट की चढ़ाई से लौटा हूँ.
***
दोपहर में वापस उलानगोम पहुँचे तो मालूम हुआ कि भारत से दलाईलामा द्वारा भेजा विषेश प्रतिनिधी लामा आ रहे हैं जो प्रार्थना सभा करेंगे. हालाँकि बारिश आ रही थी और सर्दी लग रही थी फ़िर भी सब वहाँ जाना चाहते थे, क्योंकि मँगोलिया में तिब्बती बुद्ध धर्म को माना जाता है और दलाई लामा जी यहाँ के लिए सबसे बड़े धार्मिक गुरु माने जाते हैं. बुद्ध धर्म मँगोलिया में केवल सोलहवीं सदी में आया पर अब यहाँ की अधिकाँश जनता बुद्ध धर्म में विश्वास करती है हालाँकि साथ साथ प्राकृति पूजा में भी विश्वास करती है. बुद्ध प्रार्थना सभा का आयोजन एक स्टेडियम में किया गया था. बारिश में हरी घास पर बुद्ध लामाओं की लाल पौशाकें बहुत सुंदर लग रही थीं. प्रार्थना के बाद हमें भी दलाई लामा जी के द्वारा भेजा प्रसाद मिला, जो मैंने कुछ इटली में घर ले जाने के लिए संभाल कर रख लिया.
***
मँगोली पुरुष देख कर मन में कई बार "मार्लबोरो मैन" मन में आता है. सिर पर हैट पहने, घोड़े पर बैठे, होठों से लटकती सिगरेट, लगता है कि किसी अमरीकी वेस्टर्न फिल्म से निकल कर आये हों. पर जब नशे में चूर मिलते हैं तो ज़रा सा डर भी लगता है. जितनी बार भी विकलांग लोगों से मुलाकात होती है हर बार कोई न कोई तो पुरुष अवश्य मिलता है जिसके हाथ या उँगलियाँ कटी हुई हों, जो सर्दी में जम जाने की वजह से होता है. हर बार वह लोग कहानी सुनाते हैं कि घोड़े से गिर गया, या फ़िर एक्सीडेंट हो गया या कि डाकू ने हमला कर दिया, पर मुझे लगता है कि वह लोग झूठ कह रहे हैं, अधिक पीने की वजह से रात को कहीं बाहर गिरे पड़े रहे होंगे जब सर्दी से हाथ जम गये और काटने पड़े होंगे!
***
कुछ दिन पहले की मेरी मँगोलिया यात्रा की डायरी को पूरा पढ़ना चाहें तो कल्पना पर पढ़ सकते हैं.