जब जीवन यात्राओं से भरा हो तो, किस यात्रा में क्या हुआ, किस शहर में कौन सी चीज देखी, कहाँ किससे मिला, आदि बातें याद रखना आसान नहीं. पर फिर भी कुछ यात्राएं ऐसी होती हैं जो साल बीतने के बाद भी पूरी याद रहती हैं. किमबाऊ की यात्रा ऐसी ही थी.
किमबाऊ एक छोटी सी तहसील है, दक्षिण पश्चिमी कोंगो में, अंगोला की सीमा के करीब. देश की राजधानी किनशासा से ३८० किलोमीटर दूर. कोंगो की सड़कों को सड़क नहीं बड़े या छोटे खड्डों की अंतहीन कतार है, जहाँ गाड़ी अधिकतर सड़क के बाहर या उसके किनारे पर अधिक चलती है. फिर भी, १९९० में जब यह यात्रा मैंने पहली बार की थी, सड़क की स्थिति आज के मुकाबले अधिक अच्छी थी. तब इस यात्रा में करीब १४ या १६ घंटे लगते थे. आज इसके लिए कम से कम दो दिन चाहिये, और अगर रास्ते में सिपाहियों के चंगुल से बच के बिना कुछ खोये निकल आते हैं तो मंदिर में जाकर प्रसाद चढ़ाना चाहिये. आज अगर यह यात्रा आप करें तो बहुत रोमांचक लगेगी, यानि कि डर से आप की जान सूखी रहेगी पर मैं बात बताना चाहता हूँ १९९० की जब खड्डों के इलावा, सड़क पर डरने डराने वाली कोई चीज नहीं थी.
हम लोग किमबाऊ एक अस्पताल देखने गये थे. बेल्जियन शासकों द्वारा बनाया अस्पताल, देश के आजाद होने के समय से खाली पड़ा था, थोड़े से भाग में काम होता था जहाँ स्पेन से आयी कुछ केथोलिक ननस् काम करती थीं. काम समाप्त होने पर हमें दो ननस् साथ ले कर वापस चलीं. उनकी गाड़ी में आगे तीन लोगों के बैठने की जगह थी, पीछे खुला पिकअप था जिसमें वे लोग किनशासा समान ले कर जा रहीं थीं. आगे बैठने की जगह पर ड्राइवर के साथ दो ननस् बैठीं. पीछे की जगह नारियल और केलों से भरी थी जिस पर मेरे साथ बैठे थे मेरे इटालियन साथी एन्ज़ो, गाँव की एक गर्भवती स्त्री, उसका एक पाँच साल का बच्चा और एक और स्त्री.
उस यात्रा में सब कुछ हुआ. तेज धूप, मूसलाधार बारिश, मेरी चीनी छतरी जो तेज हवा के साथ उड़ गयी, छोटा बच्चा जो या रोता था या उल्टी कर रहा था, गर्भवती स्त्री जिन्हें प्रसव की पीड़ा शुरु हो गयी. इन सब बातों के दौरान, खड्डों पर से झटके देती गाड़ी और सख्त नारियलों पर बैठे हम लोग, कुछ घंटों की पीड़ा के बाद लगा कि शरीर का निचला भाग सुन्न हो गया हो. जब होटल पहुँचे तो उठ कर गाड़ी से उतरने में ही समझ आ गया कि मामला कुछ गम्भीर था. कई दिनों तक बैठते उठते, नितम्बों पर पड़े छाले जब ठीक नहीं हुए, दर्द के मारे आई आई करते रहे.
आज की तस्वीरें कोंगो से (बाद की एक यात्रा से, १९९० की यात्रा से नहीं क्योंकि तब मुझे फोटो खींचने का उतना शौक नहीं था).
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
इस वर्ष के लोकप्रिय आलेख
-
हिन्दू जगत के देवी देवता दुनिया की हर बात की खबर रखते हैं, दुनिया में कुछ भी ऐसा नहीं जो उनकी दृष्टि से छुप सके। मुझे तलाश है उस देवी या द...
-
अगर लोकगीतों की बात करें तो अक्सर लोग सोचते हैं कि हम मनोरंजन तथा संस्कृति की बात कर रहे हैं। लेकिन भारतीय समाज में लोकगीतों का ऐतिहासिक दृष...
-
अँग्रेज़ी की पत्रिका आऊटलुक में बँगलादेशी मूल की लेखिका सुश्री तस्लीमा नसरीन का नया लेख निकला है जिसमें तस्लीमा कुरान में दिये गये स्त्री के...
-
पिछले तीन-चार सौ वर्षों को " लिखाई की दुनिया " कहा जा सकता है, क्योंकि इस समय में मानव इतिहास में पहली बार लिखने-पढ़ने की क्षमता ...
-
पत्नी कल कुछ दिनों के लिए बेटे के पास गई थी और मैं घर पर अकेला था, तभी इस लघु-कथा का प्लॉट दिमाग में आया। ***** सुबह नींद खुली तो बाहर अभी ...
-
सुबह साइकल पर जा रहा था. कुछ देर पहले ही बारिश रुकी थी. आसपास के पत्ते, घास सबकी धुली हुई हरयाली अधिक हरी लग रही थी. अचानक मन में गाना आया &...
-
हमारे घर में एक छोटा सा बाग है, मैं उसे रुमाली बाग कहता हूँ, क्योंकि वो छोटे से रुमाल जैसा है। उसमें एक झूला है, बाहर की सड़क की ओर पीठ किये,...
-
हमारे एक पड़ोसी का परिवार बहुत अनोखा है. यह परिवार है माउरा और उसके पति अंतोनियो का. माउरा के दो बच्चे हैं, जूलिया उसके पहले पति के साथ हुई ...
-
२५ मार्च १९७५ को भी होली का दिन था। उस दिन सुबह पापा (ओमप्रकाश दीपक) को ढाका जाना था, लेकिन रात में उन्हें हार्ट अटैक हुआ था। उन दिनों वह एं...
-
गृत्समद आश्रम के प्रमुख ऋषि विद्यार्थियों को पढ़ा रहे थे, जब उन्हें समाचार मिला कि उनसे मिलने उनके बचपन के मित्र विश्वामित्र आश्रम के ऋषि ग...
When I open your blog site - at least 3 Casino Ad windows open with it!
जवाब देंहटाएं