गुरुवार, मार्च 09, 2006

नेपाल: पर्वतों के बीच हाँफते

२२ फरवरी को काठमाँडू पहुँचा तो मन में कुछ डर सा था. जिस महिला संगठन के साथ काम के लिए गया था, उन्होंने पहले ही सूचना दे दी थी कि आजकल किसी को काठमाँडू हवाई अड्डे पर लेने आना आसान नहीं और कहा था कि मुझे बाहर आ कर अपने होटल की गाड़ी को खोज कर अपने सब काम स्वयं ही करने होंगे.

खैर नेपाल की अंदरुनी स्थिति का एक फायदा तो हुआ, विदेशी पर्यटकों की संख्या बहुत कम हो गयी है, इसलिए हवाई अड्डे पर पासपोर्ट की जाँच कराने में देर नहीं लगी. बाहर निकला तो सब तरफ पुलिस या मिल्टरी दिखाई दी. होटल काँतीपथ पर था जहाँ से दरबार चौक दूर नहीं इसलिए होटल पहुँच कर तुरंत बाहर घूमने निकल पड़ा. लोगों की भीड़ देख कर मन की चिता दूर हुई. लगा कि चाहे विदेशी पर्यटक कम थे पर देश की राजनीतिक परेशानियों ने काठमाँडू के साधारण जीवन पर बहुत अधिक असर नहीं डाला था.



माओवादियों से झगड़ा तो बहुत सालों से चल रहा था, नेपाल के राजा फरवरी २००५ द्वारा पार्लियामेंट को भंग करके, संविधान बदलने और सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को जेल में डालने से स्थिति बहुत बिगड़ गयी है. पिछले दिनों में राजनीतिक दलों ने माओवादियों से मिल कर एग्रीमेंट बनाया था पर अमरीकी सरकार इसके विरुद्ध है क्योंकि उनका कहना है कि माओवादी सशस्त्र क्राँती की बात करते हैं और रोज कहीं न कहीं बम फोड़ते हैं, उनसे समझोता नहीं किया जा सकता.

पिछले दिनों माओवादियों के नेता प्रचन्नदा बीबीसी पर एक साक्षात्कार भी दिया जिसमें उन्होने हिंसा का मार्ग छोड़ने की बात भी की पर यह भी सच है कि देश के विभिन्न भागों में माओवादियों को वह हिंसा के कामों से नहीं रोक पाते हैं.

१३ मार्च से माओवादियों ने एक सप्ताह के लिए काठमाँडू बंद की चेतावानी दी है और अगर राजा ने देश की राजनीतिक स्थिति को नहीं सुधारा तो ४ अप्रेल को बड़ा आक्रमण करने की धमकी दी है.

जब मुझे किसी ने कहा कि मेरी सूरत माओवादी नेता प्रचन्न दा से मिलती है तो मुझे बहुत चिता हुई. मेरा विचार देश के विभिन्न भागों में जा कर गाँवों में महिलाओं की स्थिति को देखना और समझना था, वहाँ कोई मिल्ट्री वाला मुझे माओवादी नेता समझ कर पकड़ लेगा या मार देगा तो क्या होगा ?

इस चित्र में दरबार चौक पर एक सिपाही.


२३ फरवरी को मैं अपनी यात्रा पर निकल पड़ा. पहले काठमाँडू के उत्तर पूर्व में ओखलढ़ुंगा जिले में गये जहाँ पाँच दिनो तक विभिन्न गाँवों में घूमे. फिर काठमाँडू से ३५ किमी दूर छाईमल्ले के गाँवों में घूमा. तराई में रुपनदेही और कपिलवस्तु जिलों में जाने का कार्यक्रम सुरक्षा स्थिति की वजह से नहीं हो पाया, पर वहाँ मैं पहले कई बार जा चुका था.

पहाड़ों पर चलने की आदत नहीं थी, इसलिए हाँफ हाँफ कर बुरा हाल हो गया. दिन भर एक गाँव से दूसरे गाँव घूमना, पिछड़ी जनजातियों जैसे शेरपा, मगर, राई इत्यादि के परिवारों और महिला समूहों से बात करना, सादा दाल भात खाना और रात को जहाँ जगह मिले वहाँ सो जाना, प्रतिदिन यही होता था. खुशी की बात यह हुई कि कुछ किलो वज़न कम हो गया.

जहाँ मैं कदम कदम पर दमें के मरीज़ की तरह हाँफ रहा होता था वहीं इन पहाड़ों में रहने वाले भारी सामान उठाये घँटों चलते थे. सच यहाँ का जीवन बहुत कठिन है.


महिला समूहों की सभाओं में गरीब औरतें दूर दूर से आतीं, अपनी परेशानियाँ सुनाने और अपने काम के बारे में बताने. पुरुष निर्देशित समाज में गरीब महिलाओं की समस्याएँ नहीं बदलती - शराब, मारपीट, दूसरा विवाह, खाना पानी का जुगाड़, बच्चों की शिक्षा. इस चित्र में ओखलढ़ुंगा जिले के दाँडागाँव में एक महिला सभा.

नेपाल की इस यात्रा को भुलाना आसान नहीं. चित्रमय प्राकृतिक सुंदरता, पहाड़ों में रहने वाले लोगों का सादा कठिन जीवन और साथ ही सभी कठिनाओं से लड़ कर अपना जीवन सुधारने की लड़ाई, उनकी सरल मुस्कान और अतिथि के लिए स्वागत, कैसे भुला पाऊँगा ? पर लोगों की इन सुखद यादों के साथ देश की स्थिति पर चिंता भी होती है. गरीबी और पिछड़ेपन से निकलने के लिए नेपाल को लड़ाई नहीं विकास की आवश्यकता है.

काठमाँडू की बागमति नदी, नदी कम नाला अधिक लगती है. काठमाँडू से बाहर निकलिये तो पहाड़ों के बीच बहती यही बागमति अपनी सुंदरता से सचमुच की नदी बन जाती है. पर पास जा कर देखा तो पहाड़ों में भी बहते बागमति के पानी पर भी रसायनिक झाग दिखता है. नेपाल स्वर्ग सा देश है पर लगा कि स्वर्ग में जहर फैल रहा है और इस जहर को नेपालवासी जितनी जल्दी रोक पायेंगे उतना ही अच्छा होगा.

5 टिप्‍पणियां:

  1. Tum English se zyaada Hindi ka blog likhna pasand karte ho na?Padhna achcha lagta hai.Likhte raho!!

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  2. राजा ज्ञानेन्द्र की निजी महत्वकान्क्षा देश को बरबाद कर रही है. पर ये माओवादी और अन्य राजनितिज्ञ भी दूध के धुले नही है. अगर कोई पीस रहा है तो नेपाल का आम आदमी.

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  3. सुनील भाई,
    नेपाल से आपकी सकुशल वापसी के लिये बधाई। वैलकम बैक। हमे आपकी कमी बहुत खल रही थी। लेख काफी जानकारीपूर्ण है और चित्र हमेशा की तरह बहुत सुन्दर हैं।

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  4. Hello i am from nepal.
    Thank you for writing about nepal and saying in "swarg". You have done a really great job.

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  5. Sunil;Namakar!!

    Aapne bahut Achhi lekh lekha hai. Hamne padhaliya. Bahut Achha laga, tasbire bhi achhe hai. Apaka ya lekha bahut prachar huwa. Ye lekha padhakar hame aabhi mahasus hawa ki Aap to dare hayathe. Aapane kabhi batayanahi, ki aap darahuyathe.

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"जो न कह सके" पर आने के लिए एवं आप की टिप्पणी के लिए धन्यवाद.

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