शुक्रवार, मार्च 10, 2006

काम है साधू

काठमाँडू का पशुपतिनाथ का मंदिर हिंदू धर्मवासियों के लिए विषेश महत्व रखता है. जिन दिनों में काठमाँडू में था, उन दिनों में शिवरात्री भी थी इसलिए दूर दूर से भक्त मंदिर में दर्शन के लिए पहुँचे थे. सुना कि शिवरात्री की रात को मंदिर में पाँच लाख से अधिक लोग थे और कई लोग घँटों वहाँ फँसे रहे, बाहर नहीं निकल पाये. मैं उस दिन तो काठमाँडू से बाहर औखलढ़ुँगा में था पर दो दिन बाद मंदिर जाने की सोची.

मेरे एक नेपाली मित्र ने सलाह दी कि पशुपतिनाथ के दर्शन के बाद, पशुपति की संगिनी ज्यूएश्वरी (शायद नाम मुझे ठीक याद नहीं) का मंदिर देखना न भूलूँ, जो पशुपतिनाथ के सामने ही बागमति नदी की दूसरी ओर है. कहते हैं कि जब शिव जी मृत पत्नी के शरीर को ले कर भटक रहे थे तो उस जगह पर उसके शरीर का एक हिस्सा गिरा था.

पशुपतिनाथ में अभी भी भीड़ बहुत थी. मंदिर के भीतर तो फोटो खींचना मना है पर बाहर से जब फोटो खींच रहा तो वहाँ बैठे एक साधू जी बोले, "तस्वीर खींच कर उसे अखबार में छपा कर पैसे ले लोगे और हम यहाँ खाली हाथ बैठे रहेंगे." तो मन में आया कि शायद आज साधू बनने का अर्थ जग त्याग नहीं, दान पर जीवन गुज़ारना नहीं, एक तरह का काम ही है जिसकी सही "तनखाह" मिलनी चाहिये ?

थोड़ी दूर आया तो एक अन्य साधू जी ने मेरे माथे पर तिलक लगाया और कहने लगे कि कम से कम सौ रुपये लेंगे. तो फ़िर वही "साधू का काम" की बात मन में आयी.

पशुपतिनाथ के मंदिर के हज़ारों बंदर और बाहर नदी के किनारे पंक्ति मे बने अनेक छोटे शिवलिंग वाले मंदिर मुझे बहुत अच्छे लगे.



पशुपतिनाथ के दर्शन के बाद हम लोग ज्यूएश्वरी गये. जीवन में पहली बार स्त्री शक्ति का मंदिर देखा जिसमें शिवलिंग नहीं योनी पूजा होती है और एक पुजारिन उसकी देखभाल करती है. मंदिर में अधिकाँश मूर्तियाँ भी देवियों की ही हैं.

मंदिर से निकले तो शाम हो रही थी. तब नदी के किनारे एक अनोखा दृष्य देखा. भगवे वस्त्र पहने एक साधू महाराज उठे और अपनी चद्दर, कंबल लपेट कर, भगवे वस्त्र उतार कोट पैंट पहन रहे थे. सच है कि उन दिनों काठमाँडू में शाम को सर्दी हो जाती थी तो उनके कोट पैंट पहनने को दोष नहीं देता पर फ़िर दोबारा वही बात मन में आईः साधू बनना भी काम है, अब काम का समय समाप्त हुआ तो कपड़े बदलो और घर चलो.

इस तस्वीर में वह साधू जी पेड़ के सामने दिखेंगे. मैंने जानबूझ कर दूर की तस्वीर रखी हैं क्योंकि मेरे विचार में उनकी भी अपनी प्राईवेसी है.



मन में एक और शक भी आया था कि शायद वह साधू नहीं कोई शोधकर्ता हों जो साधू का भेस बना कर साधू जीवन पर शोध कर रहे हों ?

5 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया तस्वीरें हैं सुनील जी। :) और हाँ, साधू भी आजकल प्रोफ़ेशनल हो गए हैं और साधूगिरी एक प्रोफ़ेशन। समय के साथ सब कुछ बदलता रहता है। ;)

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  2. सर, आप तो साधु के काम की बात करते हैं. मेरा तो अपराधी किस्म के दो साधुओं से सामना हुआ था, वो भी अपनी दिल्ली में.
    शार्टकट रास्ते से प्रिया सिनेमा जाते समय दो साँपधारी युवा साधु मिले थे. नाग बाबा को द्रव्य चढ़ाने की बात की.
    एक रुपये का सिक्का देने पर बोला कागज़ की कोई मुद्रा दो. मैंने सिक्का भी वापस ले लिया.
    इस पर दोनों ने मुझे साँप से कटाने की धमकी दी. मैंने दोनों की रिपोर्ट पास के वसंत विहार थाने में करने की जवाबी धमकी दी, तब जाकर बात बनी. लेकिन मामला ख़त्म होते-होते भी गुंडे साधुओं ने मेरे घर में साँप भेजने की धमकी दे डाली.

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  3. शोषण के कई प्रकार हैं, उसमें एक धार्मिक भावनाओं का शोषण भी हैं. लोगो के मन में जो धर्म और साधु-संतो के प्रति श्रद्धाभाव (या फिर भय) हैं उसी का इन शोषणकर्ताओं द्वारा फायदा उठाया जाता हैं.

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  4. yeah baat mein bilkul paheli bar sun rahi hoon nepali ho kar bhi. ki guieheswori mein yoni pooja hota hai.
    i will ask about it with my seniours. But i dont think so

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  5. sunil bhai maine poochha mere dada se ki sachchi mein wohan yoni puja hoti hai ki nahin.
    unhone kaha ki shree swasthani kathake anusar jab siv apni mari huyee patniko kandhepe lekar pagalon ke tarah firne lage.
    unki(patni) sarir sadke ek ek karke girne lage. Jaha bhi ek anga gira woha par mandir banake puja suru hui.gueheswori mein unki sarir ki "gueyaha" bhag, patan huwa. woha bhi ek mandir sthapana kiye gaye. yisiliye uska nam gueheswori huwa.
    lekin woha yoni pooja nahin hoti jaise ki specially ling pooja hoti hai. woha just puja hoti hai yonipooja nahin.

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"जो न कह सके" पर आने के लिए एवं आप की टिप्पणी के लिए धन्यवाद.

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