गुरुवार, जून 22, 2006

एक अधूरा ताजमहल

मेरे हाथ डबलरोटी की तरह फूल गये हैं. क्मप्यूटर के कीबोर्ड पर उँगलियाँ चलाते हुए लगता है मानो जोड़ों के दर्द की बीमारी का पुराना रोगी हूँ. यह सब हाथों की मेहनत का कमाल है.

कई सालों से मन में अपनी छवि सी थी ऐसे मानव की जिससे दिमागी चाहे जितने काम करवा लीजिये पर हाथों से कुछ करने के लिए न कहिए. "अरे भाई तुमसे तो एक कील भी सीधा नहीं लगता", "यह कैसी टेढ़ी लकीर लगाई है श्रीमान जी, बँगाल की खाड़ी का नक्शा लगता है" जैसी बातें सुन सुन कर, मन में पक्का हो गया था कि जो काम ठीक से न करना आये, उसे न करने में ही भला है. सोचता कि दुनिया में कुछ लोग हाथ से मेहनत मजदूरी करते हैं और दूसरे कुछ लोग दिमाग से वह मेहनत करते है, और मैं उन दूसरों मे से हूँ.

इसलिए जब भी कभी कुछ "सचमुच" का काम करने की बात आती है, मैं अक्सर चुप ही रहता हूँ या फ़िर करीब खड़े हो कर सलाह देने की जिम्मेदारी निभाता हूँ.

जब अचानक क्मप्यूटर वाली मेज की एक टाँग को हिलते हुए महसूस किया तो तुरंत श्रीमति जी को आवाज लगाई. उन्होंने सलाह दी कि मेज खतरनाक हालत में था और उसे जल्दी से जल्दी बदलना ही बेहतर होगा. किसी लकड़ी के काम वाले को बुला कर मेज की टाँग करवाने का तो यहाँ सवाल ही नहीं उठता, उतने में तो दो मेज नये खरीद ले सकते हैं. तो श्रीमति के साथ हम मशहूर सुपरमार्किट इकेआ (IKEA) गये जहाँ स्वीडन में बना फर्नीचर बिकता है. "यह लाल रंग की मेज अच्छी रहेगी, उपर अलमारी भी है, उसमें कुछ किताबें भी आ जायेंगी", हमने कहा.

सुपरमार्किट वाली ने बताया कि वह मेज खुले टुकड़ों में मिलती है, जिन्हे जोड़ कर, नट, बोल्ट, कील लगा कर तैयार करना पड़ेगा. साथ में यह भी कहा कि अगर हम यह मेज स्वयं ही तैयार करना चाहें तो तुरंत मिल सकती है पर अगर यह चाहे कि सुपरमार्किट वाला आदमी घर आ कर उसे बनाये तो करीब दस दिन प्रतीक्षा करनी पड़ेगी. उसके लिए 20 प्रतिशत अलग देना पड़ेगा, यानि 340 यूरो की मेज पर 80 यूरो बनवाई और पूरा खर्च हुआ 420 यूरो का.

श्रीमति जी बोलीं कि दस दिन इंतज़ार करने में ही भलाई थी, क्योंकि उनके पास तो और बहुत से काम थे, और मेज देखने में सरल नहीं लगता था. ताव आ गया हमें. अरे एक मेज ही तो जोड़ कर बनाना है, सब टुकड़े तो बने ही हैं, उनमें सब छेद बने हैं, छोटी सी किताब में सब समझाया हुआ है कि कौन सा नट, बोल्ट और कील कहाँ लगेगा, इतना कठिन नहीं होगा, मैं स्वयं ही कर लूँगा.

परसों सुबह से जो लगे मेज बनाने, रात के साढ़े दस बज गये. भरतनाट्यम देखने जाना था, वह भी रह गया. हाथों का बुरा हाल था और मेज थी कि ठीक से जम कर ही नहीं देती. उसकी टाँगे टेढ़ी सी लगती थीं. कल रात को काम से लौट कर मेज पूरी कर रहा था कि आखिरकार श्रीमति जो मुझ पर तरस आ गया, बोलीं, "अभी रहने दो ऐसे ही, कल शाम को घर लौटोगे तो तुम्हारे साथ मिल कर इसे पूरा करने की कोशिश करेंगे."

एक बात तो है कि मेहनत के बाद नींद बहुत अच्छी आती है. साथ ही यह समझ भी आ गया कि शारीरिक मेहनत करने वाले के लिए लिखना पढ़ना आसान नहीं, जब सारा शरीर थकान और दर्द से भरा हो तो किताब हाथ में लेते ही, आँखें बंद सी होने लगती हैं.

खैर मेरी स्टडी में खड़ा यह अधूरा मेज लगता है कि यह मेज न हो, एक ताजमहल हो. पसीने के साथ साथ, रक्त की कुछ बूँदें भी इसके लाल रंग में मिली हैं. जब तक यह मेज रहेगी, दोबारा मेहनत का काम ढूढने से पहले, सौ बार सोचूँगा.

5 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ ऐसा ही हाल उस बेचारे का होता होगा जो शारीरिक महेनत करता हो और एक दिन दिमागी महेनत करने बैठ जाये. कहते हैं 'जिसका काम उसी को साजे'.

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  2. सुख के गीतों का आलाप
    दुख की आहों का प्रलाप
    जीव्हा पर सरस्वती का वास
    मन में भावों का एहसास ।

    आपकी हर पोस्ट जानकारी ,ईमानदारी,सादगी एवं विचारों की व्यापकता से ओत-प्रोत होती है । बधाीई स्वीकार करें । भारतीए संस्कृति का पुरातन स्वरूप आपको इलाहाबाद में आयोजित माघ या कुम्भ मेले में देखने को मिलेगा ।

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  3. अगर मैं बोलेनियावासी होता या आप फिलाडेल्फिया में होते तो आपके हाथों का यह हाल न होता। वैसे इकेआ (IKEA) यहाँ भी है, हम इसे आईकिया कहते हैं। हमारे बाँके बिहारी इसके किड्स सेक्शन के मुरीद है जहाँ उन्हें हमारी करीदारी के दौरान छोड़ दिया जाता है धमाचौकड़ी की खुल्लमखुल्ला छूट के साथ। और मुझे अब आईकिया के फर्निचर को जोड़ने में महारत हो चुकी है। अब अनूप भाई ने सुना तो यही कहेंगे कि अमेरिका में कंप्यूटर इंजीनियर बढ़ई बन जाते हैं।

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  4. सुनील जी,

    मेरी सहानुभूति आपके साथ है। हाथ का काम करने में मेरा भी यही हाल है। श्रीमती जी मुझसे कहीं बहुत ज्यादा निपुण हैं।

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  5. कुछ कुछ ऐसा ही हाल अपना भी है, लेकिन कभी कभी अंदर का छिपा हुआ इंजीनियर (अभियंता) जाग उठता है, और फिर आगे..... कभी बताने लायक, कभी ना बताने लायक हाल होता है।

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"जो न कह सके" पर आने के लिए एवं आप की टिप्पणी के लिए धन्यवाद.

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