गुयाना का इतिहास भी अनोखा है. दो सौ साल पहले तक यह देश घने जँगलों से भरा था जिसमें यहाँ के आदिम लोग रहते थे, जिन्हें आजकल अमेरंडियन (american Indians) कहते हैं, कोलोम्बस की याद में जो दक्षिण अमरीका की तरफ़ भारत को खोजते आये थे. फ़िर यूरोप की उपनिवेशी ताकतों ने यहाँ अपना सम्राज्य बनाने की लड़ाईयाँ शुरु कर दीं, कभी फ्राँस वाले जीतते, कभी होलैंड वाले तो कभी अंग्रेज़. होलैंड वालों का यहाँ बहुत दिन तक राज रहा जिसके निशान आज भी यहाँ के लकड़ी के मकानों में, नहरों के जाल में, समुद्री दीवारों और शहरों के नामों में मिलते हैं. होलैंड की तरह ही यहाँ की भूमि का स्तर समुद्र के स्तर से नीचा है इसलिए वे लोग अपने देश की सभी तकनीकों को यहाँ पर लागू कर सके. खैर लड़ाईयों से बचने का उपनिवेशी ताकतों ने फैसला किया और देश को तीन हिस्सों में बाँट दिया, एक बना फ्राँससी गुयाना जो आज भी फ्राँस का हिस्सा माना जाता है, दूसरा बना डच गुयाना जिसे आज सूरीनाम के नाम से जानते हैं तीसरा बना अँग्रेज़ी गुयाना जहाँ मैं इन दिनों में आया हूँ.
यहाँ काम करने के लिए उपनिवेशी ताकतें पहले तो अफ्रीका से गुलाम ले कर आयीं, पर धीरे धीरे अफ्रीका से आये लोगों ने विद्रोह करना शुरु कर दिया और आदेश मानने से इन्कार करने लगे. तब गन्ने के खेतों में काम करने के लिए यहाँ भारत से लोग लाये गये. वैसे तो यहाँ भारत के उत्तर और दक्षिण दोनों ही हिस्सों के विभिन्न प्राँतों से लोग लाये गये पर उनमें पश्चिमी उत्तरप्रदेश और दक्षिणी बिहार के भोजपुरी बोलने वाले लोग सबसे अधिक थे. उन्हें पाँच साल के लिए लाया जाता था और कहा जाता था कि पाँच साल बाद उन्हें वापस भारत ले जाया जायेगा, कुछ वैसा ही था जैसा आज कल गल्फ के देशों में लोगों को काम के लिए ले जाया जाता है. यहाँ आने वाले अधिकतर लोग पुरुष थे जबकि महिलाओं को अधिक नहीं लाया गया था क्योकि उनसे खेतों में उतना काम नहीं ले सकते थे. 1838 में यहाँ भारत से पहला जहाज़ आया, और उसके बाद तो जहाजों की कड़ी ही लग गयी जो बीसवीं शताब्दी के पहले भाग तक चलता रहा. करीब दो लाख चालिस हजार भारतीय यहाँ लाये गये.
कहते हैं कि गुयाना शब्द किसी अमेरिंडियन भाषा से है और इसका अर्थ है नदियों का देश. सच में देश नदियों के जाल से घिरा है, पर उत्तर में अटलाँटिक महासागर की ओर आते आते उन छोटी नदियों से तीन प्रमुख नदियाँ बनती हैं - बरबीस, डेमेरारा और एसेकीबो. नदियों के इलावा सारे उत्तरी भाग में नहरों के जाल बिछा है जिनसे गन्ने के खेतों की ओर पानी ले जाया जाता था. बहुत सुंदर और मनोरम लगती हैं यह नहरें पर अगर सोचिये कि किन हालातों में अफ्रीकी और भारतीय गुलामों ने अपने खून पसीने से, बिना किसी मशीनों के धरती का सीना चीर कर इन्हें बनाया होगा तो मन कड़वा हो जाता है.
(गुयाना यात्रा की डायरी से - चाहें तो पूरी डायरी कल्पना पर पढ़ सकते हैं.)
रोचक जानकारी. विकि में डालने योग्य.
जवाब देंहटाएंगुयाना में इतने भारतीयों को लेजाया गया था, तो सम्भव हैं भारत की भाषाएं भी वहाँ साँसे ले रही होगी.
कोई भारतीय नहीं दिखा क्या आपको वहाँ, एक-तस्वीरें उनकी भी लगा दे. :)
नीचे वाली छवि से बिटिया का कुत्ता कहाँ गया?
पहली तस्वीर में बाँयी ओर खड़ी सुश्री पूर्णवति और निचली तस्वीर वाली लड़की दोनों भारतीय मूल की ही हैं, पर क्या देखने से पता नहीं चलता?
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जनाब बहुत अच्छी और मेरे लिए नई जानकारी है - किसी भी विषय को खूबसूरत शब्दों से संवारना हुत बडी कला है जो आप मे है।
जवाब देंहटाएंआपके माध्यम से तमाम जानकारी मिलती रहती है.
जवाब देंहटाएंक्षमा करें सुनिलजी, पर तस्वीर को आँखे गड़ा कर देखने से ही पता चलता है, वरना नहीं.
जवाब देंहटाएंमेरे बाकी के सवालो के जवाब आपकी डायरी से मिल गए है.