मिस्र के पिरामिडों को देख कर करीब दो हज़ार साल पहले के एक रोमन बादशाह, जिसका नाम था काइयो चेस्तियो (Caio Cestio), उसको रोम में पिरामिड बनवाने की सूझी. सदिया बीतीं और रोम से दक्षिण की ओर जाने वाली सड़क विया ओस्तिएन्से (Via Ostiense) पर बना यह पिरामिड समय के धुँधले में खो गया. जिस रास्ते पर राजसी रथ चलते थे, वहाँ घास उग आयी और ग्वाले वहाँ जानवर चराने लगे.
फ़िर करीब दो सौ साल पहले, इसी पिरामिड के साथ साथ एक नया प्रोटेस्टैंट ईसाईयों का कब्रिस्तान बनाया गया जहाँ गैरकेथोलिक ईसाईयों को दफ़न किया जाता था. इटली में रोम में वेटीकेन में केथोलिक धर्म का विश्व केन्द्र बन गया था. उस समय गैरकेथोलिक ईसाईयों के प्रति वेटीकेन का रुख बहुत कड़ा था, उन्हें धर्मभ्रष्ठ मानते थे. इसलिए उस कब्रिस्तान में शरीर केवल रात के अँधेरे में दफ़न किये जा सकते थे. कब्रिस्तान की कोई दीवार नहीं थी और लोग जब मन में आता वहाँ आ कर कब्रों पर तोड़फोड़ करते. किसी भी कब्र पर यह लिखना भी मना था कि "मृतक की आत्मा को भगवान शाँती दें", क्योंकि केथोलिक न होने की वजह से वेटीकेन में कहते थे कि उन्हें भगवान से कुछ भी नहीं मिल सकता था.
खैर इतिहास बदला और दुनिया बदली, विभिन्न धर्मों के साथ साथ रहने की नियम भी बदल गये. आज रोम का यह कब्रिस्तान जिसे उस रोमन बादशाह के पिरामिड के नाम पर काम्पो चेस्तियो (Campo Cestio) कहते हैं, अँग्रेजी पर्यटकों के लिए तीर्थ स्थल जैसा है क्योंकि यहाँ उनके दो प्रसिद्ध कवि, कीटस (Keats) और शैली (Shelley) की कब्रें हैं.
अँग्रेजी के कवि जोह्न कीटस (John Keats) का नाम रोमानी कविताओं के लिए प्रसिद्ध है. उनकी कविताओं में जीवन की क्षणभँगुरता और स्वपनों की अखँडता का मिला जुला दर्द भरा रोमानीपन मिलता है. वे 1820 में रोम आये जब यक्ष्मा से उनका शरीर कमजोर हो चुका था. उस समय यक्ष्मा का कोई इलाज नहीं था. तब लोग कहते कि बारिश वाले ईंग्लैंड में रहने से यक्ष्मा और बिगड़ जाता था जबकि अधिक धूप होने से रोम के मौसम को यक्ष्मा ठीक करने के लिए बेहतर माना जाता था.
उस समय कीटस् केवल 24 वर्ष के थे. उनके साथ थे उनके मित्र सेवेर्न. फरवरी 1821 में उनका रोम में देहाँत हुआ. कुछ ही सालों के लिए उन्होंने कविताएँ लिखीं थीं जिनकी वजह से आज भी उनकी कब्र पर फ़ूल चढ़ाने उनके प्रशँसक आते रहते हैं.
कीटस की कब्र पर लिखा है, "यह वह बदनसीब कवि है जिसका नाम पानी पर लिखा था". कहते हैं कि यह वाक्य स्वयं कीटस ने चाहा था कि उनकी कब्र पर लिखा जाये. उनकी कब्र के सामने ही उनके प्रशँसकों ने एक संगमरमर का पत्थर लगवाया है जिस पर लिखा है, "कीटस अगर तुम्हारा नाम पानी पर लिखा है, तो वह पानी तुम्हारे चाहनेवालों की आँखों से गिरा है."
नीचे तस्वीरों में (1) कीटस और उनके मित्र सेवेर्न की कब्रों के सामने अँग्रेजी पर्यटक, (2) कीटस के प्रशँसकों द्वारा लगवाया संगमरमर का पत्थर, (3) दूसरे कवि, यानि शैली की कब्र और (4) कब्रिस्तान के साथ काईयो चेस्तियो का पिरामिड
फ़िर करीब दो सौ साल पहले, इसी पिरामिड के साथ साथ एक नया प्रोटेस्टैंट ईसाईयों का कब्रिस्तान बनाया गया जहाँ गैरकेथोलिक ईसाईयों को दफ़न किया जाता था. इटली में रोम में वेटीकेन में केथोलिक धर्म का विश्व केन्द्र बन गया था. उस समय गैरकेथोलिक ईसाईयों के प्रति वेटीकेन का रुख बहुत कड़ा था, उन्हें धर्मभ्रष्ठ मानते थे. इसलिए उस कब्रिस्तान में शरीर केवल रात के अँधेरे में दफ़न किये जा सकते थे. कब्रिस्तान की कोई दीवार नहीं थी और लोग जब मन में आता वहाँ आ कर कब्रों पर तोड़फोड़ करते. किसी भी कब्र पर यह लिखना भी मना था कि "मृतक की आत्मा को भगवान शाँती दें", क्योंकि केथोलिक न होने की वजह से वेटीकेन में कहते थे कि उन्हें भगवान से कुछ भी नहीं मिल सकता था.
खैर इतिहास बदला और दुनिया बदली, विभिन्न धर्मों के साथ साथ रहने की नियम भी बदल गये. आज रोम का यह कब्रिस्तान जिसे उस रोमन बादशाह के पिरामिड के नाम पर काम्पो चेस्तियो (Campo Cestio) कहते हैं, अँग्रेजी पर्यटकों के लिए तीर्थ स्थल जैसा है क्योंकि यहाँ उनके दो प्रसिद्ध कवि, कीटस (Keats) और शैली (Shelley) की कब्रें हैं.
अँग्रेजी के कवि जोह्न कीटस (John Keats) का नाम रोमानी कविताओं के लिए प्रसिद्ध है. उनकी कविताओं में जीवन की क्षणभँगुरता और स्वपनों की अखँडता का मिला जुला दर्द भरा रोमानीपन मिलता है. वे 1820 में रोम आये जब यक्ष्मा से उनका शरीर कमजोर हो चुका था. उस समय यक्ष्मा का कोई इलाज नहीं था. तब लोग कहते कि बारिश वाले ईंग्लैंड में रहने से यक्ष्मा और बिगड़ जाता था जबकि अधिक धूप होने से रोम के मौसम को यक्ष्मा ठीक करने के लिए बेहतर माना जाता था.
उस समय कीटस् केवल 24 वर्ष के थे. उनके साथ थे उनके मित्र सेवेर्न. फरवरी 1821 में उनका रोम में देहाँत हुआ. कुछ ही सालों के लिए उन्होंने कविताएँ लिखीं थीं जिनकी वजह से आज भी उनकी कब्र पर फ़ूल चढ़ाने उनके प्रशँसक आते रहते हैं.
कीटस की कब्र पर लिखा है, "यह वह बदनसीब कवि है जिसका नाम पानी पर लिखा था". कहते हैं कि यह वाक्य स्वयं कीटस ने चाहा था कि उनकी कब्र पर लिखा जाये. उनकी कब्र के सामने ही उनके प्रशँसकों ने एक संगमरमर का पत्थर लगवाया है जिस पर लिखा है, "कीटस अगर तुम्हारा नाम पानी पर लिखा है, तो वह पानी तुम्हारे चाहनेवालों की आँखों से गिरा है."
नीचे तस्वीरों में (1) कीटस और उनके मित्र सेवेर्न की कब्रों के सामने अँग्रेजी पर्यटक, (2) कीटस के प्रशँसकों द्वारा लगवाया संगमरमर का पत्थर, (3) दूसरे कवि, यानि शैली की कब्र और (4) कब्रिस्तान के साथ काईयो चेस्तियो का पिरामिड
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कीटस की कब्र पर लिखे शब्द पढ़े तो मन में बचपन में सुने एक तुकबंदी वाले शेर की याद आ गयीः
कीटस की कब्र पर लिखे शब्द पढ़े तो मन में बचपन में सुने एक तुकबंदी वाले शेर की याद आ गयीः
हमने उनकी याद में रो रो कर आँसुओं से टब भर दियाशायद यह तुकबंदी कीटस की रुमानी कविताओं का अपमान करने वाली बात हो गयी, पर यही तो खूबी है मानव कल्पना की, अच्छा बुरा नहीं देखती, जहाँ दिल चाहे उस तरफ़ घूम जाती है.
वे आये और उसमें नहा कर चले गये!
आपके ब्लॉग टेंप्लेट की तारीफ करने की सोच ही रहा था कि आपने खाका ही बदल दिया। पिछला वाला लोगो ज्यादा बढ़िया लग रहा था।
जवाब देंहटाएंशैली और कीटस मेरे प्रिय कवि थे. उनकी अन्तिम आरामगाह देख कर अच्छा लगा। फोटो शेयर करने के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंएक भारतीय होने के कारण ऐसा सोच सकता हूँ की क्या किसीकी कब्र खास कर साहित्कार की कब्र इतनी अच्छी हालत में रह सकती है?
जवाब देंहटाएंआपके साथ दुनियाँ जानने का अच्छा मौका मिलता है.
कल 06/03/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
धन्यवाद यश :)
हटाएंमानव कल्पना का कोई अंत नहीं ..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया जानकारी ....आभार
धन्यवाद कविता जी कि आप को यह पुराना लिखा आलेख पसंद आया. :)
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