कियारा मेरी पुरानी मित्र है. वह एक इतालवी गायनाकोलोजिस्ट यानि स्त्री रोग की डाक्टर हैं. 1991 में जब हम पहली बार मिले थे तो वह दक्षिण अमरीकी देश निकारागुआ से लौटी थीं, जहाँ शासन से लड़ने वाले गोरिला दलों के बीच में रह कर उन्होंने आठ साल गाँवों में काम किया था. उन्होंने एक पत्रिका में मेरा अफ्रीकी देश कोंगो के एक अस्पताल के बारे में मेरा लेख पढ़ा था और तब उन्होंने निश्चय किया था कि वह उस अस्पताल में ही जा कर काम करेंगी और इसी सिलसिले में हम लोग पहली बार मिले थे.
पिछले सत्रह सालों में कियारा ने कोंगो में रह कर जीवन की कई कठिनाईयों का सामना किया है. एक सड़क दुर्घटना में अपनी दायीं बाजु खोयी है, युद्ध में अपने कई साथियों को मरते देखा है, आकाल के समय में गरीबों के बीच गरीबी में कीड़े मकोड़े खा कर रही हैं, पर इस सब के बावजूद उस अस्पताल में काम करने का अपना इरादा नहीं बदला. यह अस्पताल वहाँ का कैथोलिक चर्च चलाता है और आसपास करीब अस्सी किलोमीटर तक कोई अन्य अस्पताल नहीं इसलिए लोग मीलों चल कर वहाँ आते हैं. अपनी कृत्रिम बाजू की कमी को कियारा ने साथ काम करने वाली नर्सों को शिक्षा दे कर की है.
जब भी कियारा बोलोनिया आतीं हैं तो हमारे यहाँ ही ठहरती है और हम दोनो बहुत बातें करते हें, बहुत बहस करते हैं, रात को देर देर तक. पिछले दो दिनों से कियारा हमारे यहाँ थी और आज सुबह सुबह ही वापस रोम गयी है. कल रात को हमारी बहस शुरु हुई तो बहुत देर तक चली. अधिकतर बातों में मेरे विचार कियारा से मिलते हैं, मैं उसकी लड़ाईयों को समझता हूँ और उनसे सहमत भी हूँ पर कल रात को उससे कुछ असहमती थी इसलिए बहस अच्छी हुई. आज कियारा को रोम में एक मीटिंग में जाना है जहाँ रंगभेद की बात की जायेगी.
कियारा का कहना था कि कोंगो में लोगों में त्वचा का रंग गोरा करने का फैशन चल पड़ा है जिसमें स्वास्थ्य को नुकसान करने वाले पदार्थो, क्रीमों और साबुनों का प्रयोग किया जाता है जैसे कि पारे वाले साबुन या क्विनोंलोन वाली क्रीमें जिनसे केंसर तक हो सकता है, और त्वचा खराब हो जाती है. उसका यह भी कहना था कि अक्सर यह क्रीमें साबुन आदि वहाँ भारतीय कम्पनियाँ बेचती हैं. साथ ही वह कह रही थी कि हमारी त्वचा का रंग कुछ भी हो हमें उस पर गर्व होना चाहिये, हर रंग सुंदर होता है यह मानना चाहिये और स्वयं को अधिक गोरा करने की कोशिश करना गलत है.
मेरा कहना था कि अगर गोरा करने वाली क्रीम या साबुन में स्वास्थ्य को नुकसान देने वाले पदार्थ हैं तो इसके बारे में जानकारी देना सही है और कोशिश करनी चाहिये कि इन कम्पनियों के बेचे जाने वाले सामान के बारे में जन चेतना जगायी जाये और इन क्रीमों साबुनो के बेचने पर रोक लगनी चाहिये. लेकिन जहाँ तक शरीर को गोरा करने की कोशिश करने की बात है, यह तो समाज में बसे श्याम रंग के प्रति भेदभाव का नतीज़ा है, जब तक उस भेदभाव को नहीं बदला जायेगा, लोगों को यह कहना कि आप इस तरह की कोशिश न करिये शायद कुछ बेतुकी बात है.
मैं यह मानता हूँ कि हम सबको अपने आप पर गर्व होना चाहिये, चाहे हम जैसे भी हों, चाहे हमारी त्वचा का रंग कुछ भी हो, चाहे हम पुरुष हों या स्त्री, चाहे हमारी यौन पसंद कुछ भी हो, चाहे हमारा कोई भी धर्म या जाति हो, चाहे हम जवान हों या वृद्ध. पर यह गर्व कोई अन्य हमें नहीं दे सकता है यह तो हम अपनी समझ से ही खुद में विकसित कर सकते हैं.
हमें समाज की सोच को बदलने की भी कोशिश करनी चाहिये ताकि समाज में भेदभाव न हो. पर अगर कोई भेदभाव से बचने के लिए, शादी होने के लिए, नौकरी पाने के लिए, या किसी अन्य कारण से अपना रंग गोरा करना चाहता है या झुर्रियाँ कम करना चाहता है या पतला होना चाहता है या विषेश वस्त्र पहनता है, तो इसमें उसे दोषी मानना या उसे नासमझ कहना गलत है. समाज की गलतियों से लड़ाई का निर्णय हम स्वयं ले सकते हें, दूसरे हमें यह निर्णय लेने के लिए जबरदस्ती नहीं कर सकते.
साथ ही मेरा कहना था कि काला होना भी गर्व की बात है, काले वर्ण में भी उतनी ही सुंदरता है यह बात काले वर्ण के लोग कहें तो बेहतर होगा. अगर गोरे लोग जिंन्होंने स्वयं भेदभाव को नहीं सहा, उनके लिए यह कहना आसान है पर साथ ही ढोंग भी हो सकता है.
चाहे भारत हो, चाहे अफ्रीकी देश, योरोपीय देश या ब्राजील, अमरीका जैसे देश, कहीं भी देखिये, पत्रिकाओं में, टेलीविज़न में, फ़िल्मों में कितने गहरे काले रंग वाले लोग दिखते हैं? अगर श्याम वर्ण के लोग हों भी तो वैसे कि रंग साँवला हो, गहरा काला नहीं. भारत में तो यह रंगभेद इतना गहरा है कि विवाह के विज्ञापन में बेशर्मी से साफ़ लिखा जाता है कि गोरे वर्ण की कन्या को खोज रहे हैं.
सुबह कियारा को रेलवे स्टेशन छोड़ने गया तो बोली कि वह मेरी बातों पर रात भर सोचती रही थी और अपनी मीटिंग में मेरी बात को भी रखेगी.
आप बताईये, अगर आप से पूछा जाये कि गोरा करने वाली क्रीमों के बैन कर देना चाहिये तो आप क्या कहेंगे?
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'बैन' शायद मैं अतिवादी हो रहा हूँ पर मुझे तो इस शब्द से ही कुछ चिढ़ होती जा रही है, शायद बैन शब्द को ही बैन कर देना चाहिए :))
जवाब देंहटाएंदूसरी ओर यदि पसंद की आजादी समाज के स्टीरियोटाईप्स को पुनर्बलित (रीइन्फोर्स) करते हों तो इनके खिलाफ बोलना कहना बिल्कुल जायज है। कक्षा में भक्तिकाल पढ़ाते हुए इसे मैं अपनी जिम्मेदारी मानता हूँ कि विद्यार्थियों का ध्यान इस ओर आकर्षित करूं कि देखिए भक्तिकाल में राम-कृष्ण के काले होने को लेकर गर्व का भाव है जा अंगेजों के साथ साथ नस्लवाद के पहुँचने के फलस्वरूप ऐसा लुप्त होता है कि राम-कृष्ण पर बने सीरियलों में ये गोरे हो जाते हैं।
किसी को विकल्प खोजने से रोकना गलत है, अतः बेन बेकार की बात है. स्वास्थय से खिलवाड हो तो कम्पनियों को दण्डित किया जाना चाहिए.
जवाब देंहटाएंरंग भी व्यक्तिगत पसन्द का मामला है. मुझे हल्के श्यामवर्ण की महिलाएं आकर्षित करती है तो यह मेरा अपना मामला है. किसी को गोरा पसन्द हो सकता है.
कोई भी रंग हेय नहीं हो सकता.
Fantastic Post! Regards!
जवाब देंहटाएंसभी को अपने मनुष्य होने पर गर्व होना चाहिये, रंग, भाषा, धर्म, जाति पर नहीं। बाजार व्यवस्था को बदलने या किसी विशेष सामान को प्रतिबंधित करना हल नहीं है, एक सामान को बंद करेंगे तो कम्पनियां नया कुछ ले आयेंगी । सोच बदलने की जरुरत है!!
जवाब देंहटाएंदीपक जी, आपके पुराने पोस्ट भी पढ़े और ये भी...। बहुत मन से लिखते हैं आप...गहराई के साथ...खूबसूरती के साथ। ईटली में रहते हुए भी भारत की माटी से सराबोर...बहुत-बहुत बधाई...मैं यहाँ (आपके पास) आता रहूँगा। अगर आपकी इच्छा हो तो आप भी पधारें। -सचिन
जवाब देंहटाएं"भारत में तो यह रंगभेद इतना गहरा है कि विवाह के विज्ञापन में बेशर्मी से साफ़ लिखा जाता है कि गोरे वर्ण की कन्या को खोज रहे हैं."
जवाब देंहटाएंबहुत ही गहरी बात है. और ये इतनी अन्दर तक घर बना चुकी है, कि हम इसे रंग भेद समझते ही नहीं है. बहुत उत्तम लेख.
aap kya chate hai such batana jo chate hai milta hai
जवाब देंहटाएंaur bhi accha likh sakte hai aap
kuch aur pathna chatte hai
aaiyee
http://batkahi-kap.blogspot.com par