अगर आप से कोई पूछे कि आप मत्यु के बारे में क्या सोचते हैं और फ़िर आप से कहे कि आप की तस्वीर खींच कर उसे कब्रिस्तान में आप के मृत्यु के बारे में विचारों के साथ लगायेंगे तो क्या आप मान जायेंगे?
विरजिनिया ने मुझसे पूछा तो मैं तुरंत मान गया. लेकिन मेरे जान पहचान वाले कुछ लोग थोड़े से चकित हो गये. बोले कि क्या डर नहीं लगता कि अपशगुन हो जाये और तुम सचमुच कब्रिस्तान पहुँच जाओ? वहाँ तो तस्वीरें केवल मरने वालों की लगती हैं, तुम जीते जी वहाँ अपनी तस्वीर लगवाओगे, लोग क्या सोचेंगे?
विरजिनया कलाकार है, तस्वीरें खींचती है, पैंटिग बनाती है, कविता लिखती है.
मई के अंतिम सप्ताह में यूरोप कमिशन की तरफ़ से प्राचीन कब्रिस्तानों के बारे में जानकारी बढ़ाने का निर्णय किया गया है. इसी सिलसिले में पुराने कब्रिस्तानों के बारे में लोगों को जानकारी देने के लिए जब यूरोप कमिशन ने बोलोनिया के सबसे प्राचीन कब्रिस्तान चरतोज़ा को भी चुना, तो विरजिनिया को एक प्रदर्शनी बनाने का विचार आया कि विभिन्न देशों सभ्यताओं में लोग मृत्यु के बारे में क्या सोचते हैं इसके साक्षात्कार तैयार किये जायें. उनका यह विचार यूरोपियन कमिशन को पसंद आया. इसके लिए उन्होंने बारह देशों के लोगों से यह बात करने की सोची जिसमें भारत की ओर से मुझे अपने विचार कहने के लिए कहा गया. इसके अतिरिक्त, घुप अँधेरे में एक टार्च की रोशमी में सब लोगों की विशिष्ठ अंदाज़ में तस्वीरें खींची गयीं जिनसे लगे कि हम अँधेरे कूँएँ से बाहर निकल रहे हैं. इसके अतिरिक्त हर व्यक्ति से कहा गया कि अपने देश की भाषा में वहीं बाते कहे और उन्हें रिकार्ड किया गया.
इन सब तस्वीरों, शब्दों, आवाज़ों, विचारों को मिला कर चरतोज़ा के कब्रिस्तान में एक प्रदर्शनी लगायी जायेगी, जिसका उदघाटन 1 जून को होगा. प्रदर्शनी का नाम है "आत्मा की यात्रा" और प्रदर्शनी के पोस्टर से विरजिनया की ली हुई कागज़ की नाव की तस्वीर प्रस्तुत है.
मैं नहीं मानता कि कब्रिस्तान में तस्वीर लगवाने से या मृत्यु की बात करने से, हम सब 12 लोगों के पीछे कोई भूत प्रेत पड़ जायेगा, या अपशगुनी होगी. बल्कि मैंने सोचा कि कितने लोगों की किस्मत होती है कि कब्रिस्तान में जीते जी अपनी तस्वीर देखें? जब यह मौका मिल रहा है तो उसे छोड़ना नहीं चाहिये. मरना तो सबने है ही एक दिन, इसके डर से हम लोग जीना तो नहीं छोड़ सकते!
चरतोज़ा का कब्रिस्तान मुझे बहुत प्रिय है, सुंदर प्राचीन मूर्तियों से भरा. यहाँ अधिकतर लोग कब्र में दफ़न होना पसंद करते हैं. कोई जो अपने प्रियजन के शरीर को बिजली के क्रेमाटोरियम में जलवा भी ले, उनकी भी राख को मटकी में भर कर, उसकी छोटी सी कब्र बना सकते हैं. लेकिन वहाँ पर एक बहुत सुन्दर खुली जगह भी है, जहाँ जो लोग चाहते हैं उनके परिवार वाले उनकी राख को खुले खेत में मिट्टी में मिला सकते हैं. बहुत सुन्दर जगह है, सामने चीड़ के पेड़ों से भरी पहाड़ी और एक नहर जहाँ छोटे बच्चे अक्सर बतखों को रोटी के टुकड़े खिलाते हैं.
प्रदर्शनी के चित्र तो जब लगेगी, तभी दिखा सकता हूँ. अभी प्रस्तुत हैं चरतोज़ा के कब्रिस्तान की मूर्तियों की कुछ तस्वीरें.
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विरजिनिया ने मुझसे पूछा तो मैं तुरंत मान गया. लेकिन मेरे जान पहचान वाले कुछ लोग थोड़े से चकित हो गये. बोले कि क्या डर नहीं लगता कि अपशगुन हो जाये और तुम सचमुच कब्रिस्तान पहुँच जाओ? वहाँ तो तस्वीरें केवल मरने वालों की लगती हैं, तुम जीते जी वहाँ अपनी तस्वीर लगवाओगे, लोग क्या सोचेंगे?
विरजिनया कलाकार है, तस्वीरें खींचती है, पैंटिग बनाती है, कविता लिखती है.
मई के अंतिम सप्ताह में यूरोप कमिशन की तरफ़ से प्राचीन कब्रिस्तानों के बारे में जानकारी बढ़ाने का निर्णय किया गया है. इसी सिलसिले में पुराने कब्रिस्तानों के बारे में लोगों को जानकारी देने के लिए जब यूरोप कमिशन ने बोलोनिया के सबसे प्राचीन कब्रिस्तान चरतोज़ा को भी चुना, तो विरजिनिया को एक प्रदर्शनी बनाने का विचार आया कि विभिन्न देशों सभ्यताओं में लोग मृत्यु के बारे में क्या सोचते हैं इसके साक्षात्कार तैयार किये जायें. उनका यह विचार यूरोपियन कमिशन को पसंद आया. इसके लिए उन्होंने बारह देशों के लोगों से यह बात करने की सोची जिसमें भारत की ओर से मुझे अपने विचार कहने के लिए कहा गया. इसके अतिरिक्त, घुप अँधेरे में एक टार्च की रोशमी में सब लोगों की विशिष्ठ अंदाज़ में तस्वीरें खींची गयीं जिनसे लगे कि हम अँधेरे कूँएँ से बाहर निकल रहे हैं. इसके अतिरिक्त हर व्यक्ति से कहा गया कि अपने देश की भाषा में वहीं बाते कहे और उन्हें रिकार्ड किया गया.
इन सब तस्वीरों, शब्दों, आवाज़ों, विचारों को मिला कर चरतोज़ा के कब्रिस्तान में एक प्रदर्शनी लगायी जायेगी, जिसका उदघाटन 1 जून को होगा. प्रदर्शनी का नाम है "आत्मा की यात्रा" और प्रदर्शनी के पोस्टर से विरजिनया की ली हुई कागज़ की नाव की तस्वीर प्रस्तुत है.
मैं नहीं मानता कि कब्रिस्तान में तस्वीर लगवाने से या मृत्यु की बात करने से, हम सब 12 लोगों के पीछे कोई भूत प्रेत पड़ जायेगा, या अपशगुनी होगी. बल्कि मैंने सोचा कि कितने लोगों की किस्मत होती है कि कब्रिस्तान में जीते जी अपनी तस्वीर देखें? जब यह मौका मिल रहा है तो उसे छोड़ना नहीं चाहिये. मरना तो सबने है ही एक दिन, इसके डर से हम लोग जीना तो नहीं छोड़ सकते!
चरतोज़ा का कब्रिस्तान मुझे बहुत प्रिय है, सुंदर प्राचीन मूर्तियों से भरा. यहाँ अधिकतर लोग कब्र में दफ़न होना पसंद करते हैं. कोई जो अपने प्रियजन के शरीर को बिजली के क्रेमाटोरियम में जलवा भी ले, उनकी भी राख को मटकी में भर कर, उसकी छोटी सी कब्र बना सकते हैं. लेकिन वहाँ पर एक बहुत सुन्दर खुली जगह भी है, जहाँ जो लोग चाहते हैं उनके परिवार वाले उनकी राख को खुले खेत में मिट्टी में मिला सकते हैं. बहुत सुन्दर जगह है, सामने चीड़ के पेड़ों से भरी पहाड़ी और एक नहर जहाँ छोटे बच्चे अक्सर बतखों को रोटी के टुकड़े खिलाते हैं.
प्रदर्शनी के चित्र तो जब लगेगी, तभी दिखा सकता हूँ. अभी प्रस्तुत हैं चरतोज़ा के कब्रिस्तान की मूर्तियों की कुछ तस्वीरें.
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मुँह बोलते शिल्प.
जवाब देंहटाएंहमारे यहाँ (सम्भवतः जैनों में) कुछ लोग जीते-जी (जीवित रहते) अपने क्रिया-क्रम सम्पन करवा लेते है. मृत्यु-भोज तक. ताकि जो मरने के बाद देखना सम्भव न हो सके वह देख सके. इस क्रिया का खास नाम है जो अभी याद नहीं आ रहा.
मृत्यु के बारे में हमारे विचार सबसे अधिक ईमानदार होते हैं।
जवाब देंहटाएंएकदम नया और अनूठा प्रयास -एक शाश्वत विषय पर .....
जवाब देंहटाएंआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (21.05.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
बहुत सुन्दर और मनोरम पोस्ट!
जवाब देंहटाएंसंजय, प्रवीण, निवेदिता, सत्यम और रूप चन्द्र जी, आप सब को टिप्पणियों के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंसंजय, अपने जीते जागते क्रिया कर्म करवाना शायद कुछ अज़ीब लग सकता है लेकिन पुरानी सभ्यताओं में भी तो कुछ इसी तरह का होता था, जैसे कि मिस्र में वहाँ के राजा अपने जीते जी ही अपने लिए पिरामिड बनवाते थे. :)
जवाब देंहटाएंMratu ke ghar me jeevan...ekdum anoothi rachna padhne ko mili.charcha manch ke madhyam se pahli bar aapke blog par aai hoon.bahut achcha laga.lekh kuch leek se alag hain.sarahniye hain.aapka bhi mere blog par swagat hai.
जवाब देंहटाएंराजेश कुमारी जी, मेरे चिट्ठे पर आने और आप की सराहना के लिए बहुत धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंचरतोज़ा के कब्रिस्तान की मूर्तियों की तस्वीरों ने योरोपीय शिल्प की उन सुन्दर कृतियों दिखाया जो कला में मनुष्य के अमरत्व का साक्ष्य देते हैं.....
जवाब देंहटाएंडा. शरद जी, मैं आप से बिल्कुल सहमत हूँ. कब्रिस्तान की मूर्तियों में मुझे मानव आकाक्षाओं और भावनाओं की झलक दिखती है, जो सदियाँ बीत जाने के बाद भी नहीं बदलीं, चाहे इस बीच दुनिया कितनी ही बदल गयी हो!
जवाब देंहटाएंक्या आप हमारीवाणी के सदस्य हैं? हमारीवाणी भारतीय ब्लॉग्स का संकलक है.
जवाब देंहटाएंअधिक जानकारी के लिए पढ़ें:
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मृत्यु जीवन की सहचरी है , यह जीवन को अमृत बनाती हैं ।
जवाब देंहटाएंएक शाश्वत विषय पर सुन्दर अभिव्यक्ति ...... आभार ।
www.vishwajeetsingh1008.blogspot.com
आपका लेख पढ़कर ईरान के खूबसूरत कब्रिस्तान की याद आ गई जहाँ अपने नाम की ज़मीन खरीदने की इच्छा ज़ाहिर करने पर पता चला कि विदेशियों के लिए काफी मुश्किलें हैं...जीते जी ज़िन्दगी को खूबसूरत बनाने के लिए क्या क्या नहीं करते तो फिर मौत के स्वागत के लिए क्यों न कुछ किया जाए...
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