मेरे बेटे की एक मित्र लंदन गयी है कुछ दिन पहले, उसे उसकी चिंता हो रही थी. मेरे एक अन्य मित्र का बेटा टेविस्टोक प्लेस में रहता है, जहाँ बस में विस्फौट हुआ तो उनका परिवार भी परेशान था. मोबाइल टेलीफोन काम नहीं कर रहे थे. फिर शाम होते होते सब के समाचार मिल गये. सब ठीक ठाक हैं, किसी को कुछ नहीं हुआ, तो जान में जान आयी.
लंदन वालों का खयाल आता है मन में. क्या इस घटना से उनके रहने, घूमने में कोई अंतर आयेगा ? अगर दिल्ली के १९८५-८६ के दिनों के बारे में सोचूँ तो लगता है कि नहीं, कुछ दिन सब लोग घबराएँगे, फ़िर सब कुछ पहले जैसा हो जायेगा. बस जिन लोगों की जान गयी है या जो लोग घायल हुए हैं और कुछ हद तक, जो लोग विस्फौट के समय उन गाड़ियों में थे, उनके जीवन बदल जायेंगे. एक दहशत सी रह जायेगी और उनके परिवार यह दिन कभी नहीं भुला पायेंगे.
ऐसा ही कुछ लगा था ११ सितंबर २००१ में, जब मैं लेबानान जाने के लिये हवाई अड्डे पर अपनी उड़ान का इंतजार कर रहा था और टेलीविजन पर दिखायी जा रही तस्वीरों ने ऐसी ही दहशत फैलायी थी. उस दिन माँ अमरीका जा रहीं थीं और उनका जहाजं वाशिंग्टन के बदले केनाडा में कहीं उतरा था. करीब एक सप्ताह तक उन्हें खोजते खोजते हम भी परेशान हो गये थे. वह दिन आज एक दुस्वप्न से लगते हैं पर उनके घाव अभी भी मन में बैठे हैं और कुछ नया होता है तो फ़िर से उभर आते हैं.
एक तस्वीर, लंदन के पुलिसवालों की

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