तोराजा की सबसे पहली विषेश चीज़ जो आप को दिखेगी, वह है उनके नाव जैसी छतों वाले लकड़ी के मकान. लगता है किसी ने बड़ी बड़ी नाँवें ऊँचे डंडों पर टका कर, उन पर रंगदार नक्काशी की है. इन भव्य छतों के नीचे छोटे छोटे घर हैं, जिनमें रहना खास आरामदायक नहीं होगा. घरों के बाहर लम्बे डंडों पर जानवरों के सींग और अन्य हिस्से टँगे हुए होते हैं जिनका सम्बंध मृत पूर्वजों से जुड़े रीति रिवाजों से हैं. कहते हैं कि तोराजा तीन हजार साल पहले कहीं और से नाँवों में सुलावेजी में आये थे और यह घर उस यात्रा की यादगार हैं. पर तीन हजार साल तक कोई इतनी मेहनत करे घर बनाने के लिए, वह भी केवल दिखावे के लिये क्योंकि रहने की जगह तो छोटी ही रहती है, कुछ अटपटा सा लगता है.
इन घरों की तुलना भारत में बेटी के दहेज से की जा सकती है, यानि बड़ी छत वाला घर बनवाने से परिवार की इज्जत जुड़ी होती है और तोराजा इनको बनवाने के लिए बड़ा कर्ज तक उठा लेते हैं. तोराजा के समाजिक नियम भी बहुत विषेश हैं, जिसमें विभिन्न रिश्तों के साथ लेने देने के कड़े नियम हैं. किसी की मृत्यु पर इतनी रस्में हैं और खर्चे हैं कि भारत की हिंदु रस्में उनके सामने सरल लगती हैं. मरने वालों के शरीर पहाड़ों की गुफाओं में रख दिये जाते हैं और गुफा के मुख पर मरने वाले की लकड़ी की मूर्ती रखी जाती है जिसे ताउ ताउ कहते हैं. जहाँ यह कब्रिस्तान वाली गुफाँए हैं, नीचे वादी में खड़े हो कर वहाँ चारों और धुँध में से दिखती ताउ ताउ की मूर्तियाँ देख कर लगता है मानो पर्वत पर लोग खड़े नीचे देख रहे हैं. ताउ ताउ का काम है कि अपने परिवार की और अपने गाँव की रक्षा करें.
आज की तस्वीरों में (१) तोराजा घर (२) ताउ ताउ बनाने वाला एक कलाकार अपनी मूर्ती के साथ और (३) तोराजा कलाकार द्वारा लकड़ी से बनाये गये भैंस के सिर जिन्हें घर से सामने डँडों पर टाँगा जाता है.



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