प्रश्न का उत्तर देने से पहले इस सवाल में दो बातों पर गौर करना ठीक होगा कि इसमें "हम" कौन हैं और दूसरा, कौन सी फिल्में क्यों देखते हैं. एक बार एक इतालियानो की पत्रिका में पढ़ा था कि सिर्फ तीन तरह के लोगों को अपने बारे में बात करते समय पुल्लिंग "हम" प्रयोग करने का अधिकार है. सम्राट शहनशाह, रोम के पोप और वे लोग जिनके पेट में कीड़े हों. चूँकि मैं इन तीनो में से किसी श्रेणीं में नहीं आता इसलिए यहाँ हम का अर्थ है परिवार, यानि हम लोग, मेरी पत्नी और पुत्र मिल कर क्यों फिल्म देखते हैं?
दूसरी बात है कौन सी फिल्मों की बात हो रही है. स्पष्ट है कि हिंदी के चिट्ठे में बात इतालियानो या अंग्रेजी की फिल्मों की नहीं, हिंदी की फिल्मों की बात हो रही है. चूँकि श्रीमति और पुत्र की हिंदी कुछ कमजोर है, कुछ गिने चुने शब्द ही समझ पाते हैं, साथ में बैठ कर हिंदी फिल्म देखने का अर्थ है कि मेरी साथ साथ हिंदी से इतालियानों में अनुवाद की भागती हुई कमेंट्री चलती है. इस बात पर भारत में कुछ बार सिनेमा हाल में फिल्म देखते हुए हमारे अनुभव कुछ अच्छे नहीं थे क्योंकि आसपास बैठे लोग मेरी कमेंट्री की सुंदरता और दक्षता को नहीं समझ पाते थे और लड़ने के लिए तैयार हो जाते थे. तब से हिंदी फिल्में केवल घर पर वीडियो केसेट या डीवीडी से देखी जाती हैं.
पुत्र को अंग्रेजी समझ आती है इसलिये अगर कोई फिल्म अगर श्रीमति को पसंद नहीं आती तो फिल्म को सबटाईटल्स के साथ देखा जाता है और मुझे कमेंट्री से छुटकारा मिलता है.
पत्नी की सबसे प्रिय फिल्म है "राम तेरी गंगा मैली" और दूसरे नम्बर पर "नगीना", यानि वे फिल्मे जो हमने भारत में रहते समय सिनेमा हाल में २० साल पहले देखी थीं. उन्हें "भारतीय मानक" वाली फिल्में अच्छी लगती हैं जिसमें स्त्रियाँ पश्चिमी पौशाकें नहीं पहने और भारतीय शैली में नृत्य करें. हालाँकि उन्होंने सास बहू वाले सीरियल नहीं देखे पर मेरा विचार है कि अगर वे यह देखतीं तो अवश्य पसंद करती.
पुत्र को बचपन में मिस्टर इंडिया और अजूबा बहुत पसंद थीं और आजकल वे भी शाहरुख खान और ऋतिक रोशन को पसंद करते हैं. "हम दिल दे चुके सनम" में उसे नायिका के पिता द्वारा आधे भारतीय आधे इतालवी लड़के को इस बात के लिए ठुकरा देने के दृष्य से बहुत धक्का लगा था. पर "कभी खुशी कभी गम" और "कल हो न हो" जैसी फिल्में देख कर वह आजकल वैसी ही पौशाक पहन कर शादी होने के सपने देख रहे हैं.
रही बात मेरी. बचपन से गंभीर फिल्में पसंद थीं. फिर जब इटली आये तो पहले दस साल तक छोटे से शहर इमोला में रहते थे जहाँ न कोई भारतीय थे न भारत से किसी तरह का कोई संबन्ध. तब हिंदी फिल्में ही भारत से नाता जोड़ती थीं. तभी हर तरह की हिंदी फिल्में देखने लगा. घटिया, बैसिर पैर की फिल्में भी, जाने क्यों लगता कि अगर कोई हिंदी फिल्म अच्छी न लगे तो भारत के साथ गद्दारी होगी. कई बार कुछ फिल्में इतनी बैतुकी होती थीं कि एक बार में पूरी देखी नहीं जाती इसलिए कड़वी दवा की तरह, धीरे धीरे करके किश्तों में देखता. सौभाग्यवश, आज दुनिया बदल गयी है. अंतरजाल के सहारे, भारत से नाता जोड़ने के अन्य कई तरीके बन गये हैं और किसी घटिया हिंदी फिल्म को पूरी न देखना, मुझे भारत से गद्दारी नहीं लगती. आज तो वही फिल्म देखता हूँ जो मन को भाये, जिससे भारत से नाता तो जुड़ा ही रहे पर साथ साथ देख कर भावनाओं और कला की दृष्टि से अच्छा लगे.
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रमण और कालीचरण ने कमबख्त का अर्थ तो बता दिया पर यह नहीं बताया कि बख्त शब्द किस भाषा से आया है?
हिंदी ब्लोगर ने बिहार में बन रहे नये हिंदी+अंग्रेजी शब्दों की बहुत अच्छी टिप्पड़ीं लिखी है. मेरे ख्याल से इस विषय पर उन्हे बहुत विस्तार से लिखना चाहिये.
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आज की तस्वीरों में घर कि खिड़की से दिखते पतझड़ के रंग
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