नेपाल में अंग्रेज़ी का प्रचलन, भारत के मुकाबले बहुत कम है. शहर में, गाँवों में बोली जानी वाली नेपाली भाषा, मुझे बहुत अच्छी लगी.
भारत जाता हूँ तो शहर में सब लोग हिंदी और अंग्रेज़ी की खिचड़ी बोलते हैं, मैं स्वयं भी हर वाक्य में कुछ न कुछ अंग्रेज़ी शब्द मिलाये नहीं बोल पाता. यह भी लगता है कि हमारी भाषा हिंदी कम और हिंदुस्तानी अधिक है, बहुत से शब्द जो संस्कृत से आते हैं वह केवल दूरदर्शन के समाचार बुलेटिन में सुनाई देते हैं, जबकि सामान्य बातचीत की नेपाली में संस्कृत का असर अधिक दिखता है.
मेरे कहने का यह अर्थ नहीं कि हमें हिंदी को बदलना चाहिये या उसमें अधिक संस्कृत से आये शब्दों का प्रयोग करना चाहिये, मैं तो केवल भाषा की विविधता की सुंदरता की बात कर रहा हूँ. यह दुनिया सुंदर है क्योकि विविध है, अलग भाषाएँ, अलग संस्कृतियाँ, अलग वेष भूषा, अलग धर्म, अलग रीति रिवाज़ों से बनी है.
ऐसे में भूमंडलीकरण दुनिया को एक जैसा बना रहा है, और हमारी विभिन्नताएँ धीरे धीरे गुम हो रही हैं.
पर जैसे हिंदी अंग्रेज़ी से प्रभावित हो रही है और भारत में अंग्रेज़ी का बोलबाला पढ़ रहा है, वैसे ही नेपाल में खतरा है नेपाली के हिंदीकरण का. दूर छोटी जगहों पर भी, शाम को जहाँ टेलीविज़न होते हैं वहाँ लोग स्टार, ज़ी और सोनी के हिंदी के सास बहू वाले सीरियल देखते हैं. देख कर यही डर लगा कि क्या किसी दिन हमारी हिंदी और अंग्रेज़ी की खिचड़ी नेपाली पर हावी तो नहीं हो जायेगी ?
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Would love to leave a msg in Hindi! Tell me how! Aapke messages mein ek bahut sundar si khanak hai...thank you for being there !
जवाब देंहटाएंसुनील जी,
जवाब देंहटाएंमै आपसे पूरी तरह सहमत हूँ। असल में, नेपाली में हिंदी के प्रभाव की बात कर रहे हैं, उसको मैने बहुत नज़दीक से देखा है।
हमारे पूर्वज करीब डेढ़ सौ वर्ष पहले नेपाल से भारत आए और असम में जा बसे। हम अभी भी घर में हम नेपाली ही बोलते हैं।स्वभाविक था कि, हमने जो नेपाली सीखी, असमिया मिली हुई, नेपाली थी। पिताजी फौज में थे, मै असम के बाहर ही बड़ा हुआ, भारत के हर कोने में रहा।
आजकल मै जब भी घर जाता हूँ, अपने चचेरे, ममेरे भाई बहनों से मिलता हूँ, तो उनकी नेपाली मे असमिया का बहुत भारी प्रभाव दिखाई देता है। पिछले पच्चीस वर्षों मे प्रभाव और गहरा हो गया है। मै दूर रहा, शायद मेरी नेपाली में हिंदी का प्रभाव अधिक है।
यही हश्र मुझे अपनी हिंदी का होता हुआ दिखाई दिया। जब से विश्वविद्यालय गये, लिखित हिंदी से नाता टूट सा गया, और अंग्रेज़ी सुधारने के चक्कर में, हिंदी के शब्द भूलते चले गए। अब हाल यह है कि, किसी अंग्रेज़ी शब्द का प्रयोग किये बिना, हिंदी मे एक वाक्य पूरा बनाने में कठिनाई होती है। हिंदी पढ़ना भी छूट ही गया था।
हाल ही में फिर से पढ़ना शुरु किया है। आपका ब्लॉग इसी तलाश के दौरान मिला ।
~ रिपल