इल्या याने द्वीप. मोजाम्बीक के पूर्वी तट से कुछ दूर, छोटा सा द्वीप है जहाँ पोर्तगीस लोगों का पहला शहर बना था और जहाँ उन्होंने इस देश की पहली राजधानी बनाई थी. अफ्रीकी गुलामों के व्यापार में इल्या ने प्रमुख भाग निभाया था.
इल्या दो मोजाम्बीक का द्वीप धरती से एक लम्बे पुल से जुड़ा है. सागर, नाव, मछुआरे, समुद्रतट पर घूमते पर्यटक देख कर छुट्टियों और मजे करने का विचार मन में आता है हालाँकि हम लोग यहाँ काम से आये हैं.
द्वीप पुराने रंग बिरंगे घरों से भरा है जिनमे से बहुत सारे आज खँडहर जैसे हो रहे हैं, जिनकी भव्य दीवारों के बीच घासफूस उगी है या फिर पेड़ उग आये हैं. मछुआरों के घर फूस की झोपड़ियाँ हैं.
द्वीप के उत्तरी कोने पर पोर्तगीस का पुराना किला है जहाँ गवर्नर रहते थे, उनकी फौज रहती थी और जहाँ यूरोप और अमरीका की तरफ जाने वाले गुलाम बंद किये जाते थे.
अस्पताल में काम समाप्त करके, रात को छोटे से होटल "कासा बरान्का" में ठहरे. सुबह यहाँ के हिंदू मंदिर भी गया जहाँ के पंडित जी भारत से आये हैं. उन्होंने बताया कि १९६० से पहले इल्या में करीब ५०० भारतीय रहते थे पर स्वतंत्रता की लड़ाई के बाद पोर्तगीस के साथ वे भी यहाँ से चले गये. आज इल्या में कुछ भारतीय मूल के हिंदू लोगों के व्यापार हैं और उन्होंने ही पंडित जो को भारत से बुलवाया है पर वह स्वयं वहाँ नहीं रहते, नमपूला में रहते हैं.
इल्या के सम्बंध भारत से गोवा की वजह से भी थे. इल्या के एक पोर्तगीस गवर्नर गोवा से आये थे, उनके घर का बहुत सा सामान भी गोवा का ही है.
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कल दोपहर को नमपूला शहर का एक नाटक ग्रुप जो स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ काम करता है और गाँवों में स्वास्थ्य संबंधी संदेश नाटक के द्वारा ले जाता है, मुझे एक नाटक दिखाने आया. ९ युवा लोग है इस नाटक समूह में. नाटक एक कुष्ठ रोगी के बारे में था जिसकी पत्नी उसे छोड़ कर चली जाती है जब उसे मालूम चलता है कि उसके पति को कुष्ठ रोग है. तब उसका पति अस्पताल से अपना इलाज कराता है, ठीक हो जाता है और अपनी पुरानी प्रेमिका से विवाह कर लेता है और जब उसकी पहली पत्नी क्षमा मांग कर घर वापस आना चाहती है, वह उसे धक्के मार कर बाहर निकाल देता है. यह सारी बात मुझे उनके सामाजिक वातावरण से प्रभावित लगी जहाँ पुरुष अक्सर पत्नी को छोड़ कर दूसरी शादी कर लेते हैं या प्रेमिकाएँ रखते हैं जबकि स्त्री इस तरह का व्यवहार करे, यानि, पति को छोड़ कर दूसरा मर्द कर ले, उसको समाज नहीं मानता. पर क्या नाटककार होकर हमें समाज में हो रही गलत बातों को मान लेना चाहिये, उसको बदलने केलिए कोशिश नहीं करनी चाहिए, इस पर मेरी उनसे नाटक के बाद खूब बहस हुई. उनका कहना था कि अगर वे समाजिक चलन के विपरीत बात करेंगे तो लोग नाटक देखने नहीं आयेंगे.
आज की तस्वीरों में इल्या और कल का नाटक समूह.



सुनील जी, क्या किले वगैरह की तस्वीरें नहीं लीं? वे भी तो दिखाईये। :)
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