शुक्रवार, जून 02, 2006

कहाँ से चले

विचार थाली के बेंगन होते है, कभी इधर लुड़कते हैं कभी उधर, कहीं से शुरु होते हैं और कहीं और जा कर रुकते हैं. कुछ ऐसा ही है अतंरजाल पर घूमना. छुट्टियाँ हैं इन दिनों, इस लिए कभी कभी यहाँ वहाँ घूमने और पढ़ने में बहुत समय निकल जाता है.

एक जगह पढ़ा कि स्पेन की सबसे प्रसिद्ध अभिनेत्री, पेनेलोपे क्रूज़ (Penelope Cruz) ने स्पेनिश लेखक जाविएर मोरो (Javier Moro) की पुस्तक भारतीय प्रेम ज्वर (Indian Passion) पर फिल्म बनाने का निर्णय किया है जिसमें उनके साथ मुम्बई फिल्मी दुनिया के कई कलाकार भी होंगे. यह फिल्म एक स्पेनिश स्त्री अनीता देलगादो के एक भारतीय महाराजा से विवाह की कहानी है.

मन में कुछ उत्सुकता जागी कि कौन थी और किस भारतीय महाराजा से शादी की थी उन्होने ? हिंदी और अंग्रेजी पर खोज करने से अनीता देलगादो के बारे में कुछ विषेश नहीं खोज पाया सिवाय इसके कि कपूरथला के महाराजा जगतजीत सिंह से उनका विवाह हुआ था सन 1910 में.




पर स्पेनिश भाषा में खोज करने पर अनीता देलगादो के बारे में बहुत कुछ पढ़ने को मिला. आंजेल देलगादो और कंदेलारिया ब्रिओनेस की पुत्री अनीता का जन्म हुआ मलागा में 8 फरवरी 1890 को हुआ था. गरीब घर में जन्मी अनीता गायिका नर्तकी बन कर मेडरिड पहुँच गयीं जहाँ "सेंत्राल कुरसाल" नाम के रेस्तोरेंत में 1908 में उन्हें गाता देख कर जगतजीत सिंह जी उन पर मुग्ध हो गये और उनसे शादी का प्रस्ताव रखा. अनीता पहले तो नहीं मानी फिर महाराजा के साथ पेरिस पहुँची और उसके बाद विवाह करके मुम्बई और कपूरथला. 1925 में वे जगतजीत सिंह से अलग हो कर पहले फ्राँस में आयीं और फिर मेडरिड, जहाँ 7 जुलाई 1962 को उनकी मृत्यु हुई. उनका एक बेटा था राजकुमार अजीत सिंह जो 1910 में पैदा हुए और 1967 में लंदन में मरे.


अनीता की कहानी पढ़ने के बाद दोबारा जगतजीत सिंह के बारे में पढ़ा. सिख साँस्कृतिक धरौहर (Sikh Heritage) नाम के अंतरजाल स्थल पर उनके बारे में बहुत लम्बा लिखा है. इस लेख और उसी विषय पर स्पेनिश में जो पढ़ा, उनमें बहुत अंतर है. यह लेख महाराजाधिराज के किसी अपने द्वारा लिखा लगता है जिसमें जगतजीत सिंह और उनके खानदान को बहुत बढ़ा चढ़ा कर बताया गया है, कितने अमीर थे वह, कितने विद्वान थे, कितनी भाषाएँ जानते थे, कैसे यूरोप के विभिन्न राजा महाराजों से उनके निकट के सम्बंध और दोस्ती थी, कैसे यह ड्यूक या वह बेरोन उनके यहाँ रहने आये, कैसे अंग्रेजी सरकार ने उन्हे यह या वह खिताब दिया. लेख गर्व से यह भी बताता है कैसे उन्होने अंग्रेजों के साथ वफादारी दिखाई और दुश्मनों (भारत की स्वत्रंता के लिए लड़ने वालों) के छक्के छुड़ा दिए और इसके बदले में उन्हें क्या खिताब और ज़मीनें मिलीं.

स्वत्रंता के बाद उनको पुत्रों ने भारतीय सेना में शामिल हो कर पाकिस्तान से युद्धों में वीरता के पुरस्कार भी पायें हैं. आज कपूरथला के महाराजा है जगतजीत सिंह के पोते ब्रिगेडियर सुखजीत सिंह जिन्हें महावीर चक्र मिला था.

स्पेनिश में अनीता देलगादो के बारे में जगतजीत सिंह की शान में कुछ नहीं लिखा है, लिखा है कि स्पेन में स्कैंडल हो गया कि उनकी लड़की एक भारतीय से विवाह करके भारत जा रही थी. लिखने का तरीका ऐसा है कि लगता है उनकी दृष्टि में स्पेन में रहने वाली गरीब नाचने वाला उनका जीवन भारत जैसे देश में रहने से कई गुना अच्छा था और जगतजीत के साथ भारत जा कर उन्होंने बड़ा त्याग किया हुआ हो.

जगतजीत सिंह के बारे में पढ़ते पढ़ते, एक और बात निकल आई. 1877 में पैदा हुए जगतजीत सिंह ने 1886 में 9 वर्ष की आयू में महारानी हरबँस कौर से पहला विवाह किया. दूसरा विवाह किया 1910 में अनीता देलगादो से और तीसरा विवाह किया चेकोस्लोवाकिया की एउजेनिया ग्रोसूपोवा से जिन्होंने दिल्ली की कुतुब मीनार से कूद कर आत्महत्या की थी.

यह पढ़ कर बहुत अचरज हुआ और अब एउजेनिया ग्रोसूपोवा के बारे में जानने की उत्सुक्ता जागी है. अभी तक अंतरजाल में उनके बारे में कुछ अधिक नहीं खोज पाया हूँ पर शायद चेक भाषा में खोजूँ तो अवश्य मिल जायेगा!

6 टिप्‍पणियां:

  1. अंतरजाल का यही मज़ा है , खोजने से सब कुछ मिल जाता है, आगे भी बतायें यूजीनिया ग्रोसूपोवा के बारे में

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  2. दिलचस्प!! बेहद दिलचस्प!!

    एउजेनिया ग्रोसूपोवा के बारे में आगे जब भी मालूमात हो, अपने ब्लाग पर जरूर चस्पा करें।

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  3. सुनील जी, हमेशा की तरह बेहद दिलचस्प जानकारी है। आज से सौ साल पहले हुई लुप्तप्राय घटनायें भी संजाल पर शोध कर जानी जा सकतीं हैं, जान कर बेहद खुशी हुई।

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  4. बहुत ही रोचक जानकारी जुटाई है आपने. बहुत-बहुत धन्यवाद!

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  5. आप सीनियर चिठा्कारों को विशेष आमंत्रण है कि इस बार अनुगूँज में लिख ही डालिये, भाभी जी के गुस्‍से का ठीकिरा हमारे सर पे फोड़ दीजयेगा

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  6. वाह, बहुत ही रोचक जानकारी दी आपने। जब भी वो महाराज की चेक पत्नी यूजीनिया ग्रोसूपोवा के बारे में पता चले, ब्लॉग पर प्रकाशित कर हमें भी ज्ञान दें। :)

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"जो न कह सके" पर आने के लिए एवं आप की टिप्पणी के लिए धन्यवाद.

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