शहर छोटा अवश्य है पर बहुत सुंदर है. चारों ओर एल्पस के पहाड़ों से घिरा हुआ, हरियाली से भरा. वहाँ बसने वाले प्रवासी लोग कहते हैं कि वहाँ के लोग कुछ ठँडी तरह के हैं, प्रवासियों से ठीक से बात नहीं करते, पर निजी अनुभव ऐसा नहीं है. शायद इस लिए कि श्रीमति जी का परिवार कई सदियों से वहाँ रह रहा है और उसकी वजह से वहाँ के लोग मेरे साथ आम प्रवासियों वाला व्यावहार नहीं करते ?
स्कियो छोटा सा है पर बहुत पैसे वाला शहर है. वहाँ बने लक्सओटिका चश्मे सारी दुनिया में निर्यात होते हैं. साथ ही बहुत पुराने विचारों वाला शहर है. "असभ्य प्रवासियों को बाहर निकालो ... मुसलमान नहीं चाहिये यहाँ... हम इटली से अलग हो कर अपना देश पादानिया बनायेंगे..." जैसी बातें करने वाली नेशनलिस्टिक पार्टी "लेगा नोर्द" का यहाँ बहुत ज़ोर है.
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शाम को कुत्ते को ले कर सैर को निकला तो रास्ते में पुराना मित्र ज्योर्जो मिल गया. बहुत जोश से गले मिला और साथ ही चलने लगा. उसके परिवार की कई दुकाने हैं स्कियो में और बहुत पैसा है उनके पास. भारत और नेपाल कई बार घूम कर आ चुका है और दोनो ही देश उसको बहुत प्रिय हैं.
बातें करते करते, बात आई "लेगा नोर्द" पार्टी की. वह बोला, "मैं यहाँ की पार्टी के दफ्तर में सचिव हूँ." सुन कर मैं सन्न सा रह गया. उसके जैसा देश विदेश घूमा, भारत प्रेमी कैसे इस तरह का सोच सकता था. मैंने पूछा, "अगर तुम सभी प्रवासियों के विरुद्ध हो तो फ़िर तो मुझे भी तुमसे डरना चाहिये ?"
वह गम्भीर हो कर बोला, "पढ़े लिखे सभ्य लोग आयें तो बुरा नहीं लगता पर यहाँ तो अनपढ़, पिछड़े विचारों वाले लोग आ रहे हैं, जिनमें न हमारी सभ्यता की कोई जानकारी है और न ही वह कोई जानकारी चाहते हैं. वह तो आपस में मिल कर चूहों की तरह रहना चाहते हैं और हमारे जीवन को नष्ट कर रहे हैं. उनकी औरतें तो काले पर्दे में सिर से पाँव तक ढ़कीं रहतीं हैं, कहते हैं कि हमारी औरतों को भी इस तरह खुले नहीं घूमना चाहिए ..."
घूमते घूमते स्कियो के पुराने भाग में आ गये जहाँ तंग, छोटी छोटी गलियाँ हैं. इस तरफ आये तो मुझे कई साल हो गये थे. बिल्कुल बदल गयी थी यह जगह. पुरानी दुकानें, कैफ़े, बार आदि होते थे यहाँ. उनकी जगह, टेलीफोन सेंटर, हलाल मीट की दुकान, एशियन स्टोर जैसी दुकानें खुल गयीं थीं. सारी सड़क विदेशियों से भरी थी, कहीं बगँलादेश वाले, कहीं पाकिस्तान वाले, कहीं टुनिसी और मोरोक्को वाले, कहीं नाईजीरिया वाले, कहीं पूर्वी यूरोप वाले.
ज्योर्जो गुस्से से बोला, "देखो, क्या कर रहे हैं यह असभ्य लोग! कितनी ज़ोर ज़ोर से बात करते हैं, आपस में चिल्लाते हैं. सड़क पर कागज, गन्दगी फ़ैंक देते हैं! बताओ, कोई है यहाँ इतालवी बोलने वाला ? तुम्हारे भारत में किसी सड़क पर इस तरह सारे विदेशी आ जायें तो क्या तुम सह पाओगे ?"
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लिवियो मिला. उसकी पत्नी सांद्रा हमारी श्रीमति की बचपन की मित्र है. लिवियो की फेक्टरी है, जहाँ चमड़े के कपड़े बनाते हैं. मैंने ही ज्योर्जो से हुई बात कही तो लिवियो बोला, "मुझे अपनी फेक्टरी में काम करने के लिए कोई इतालवी नहीं मिलता. लोग कहते हैं कि बदबू वाला काम है. इतने नखरे हैं इनके, यह करेंगे, वह नहीं करेंगे, आज छुट्टी चाहिये, कल वह चाहिये. अगर प्रवासी न हों तो हमारी सारी फेक्टरियाँ बंद हो जाये. यहाँ लोग बच्चे तो पैदा नहीं करते, लड़के लड़कियाँ चालिस साल के हो जाते हैं पर शादी नहीं करते, तो हम काम कैसे करें ? मुझे भी अच्छा नहीं लगता कि हमारे शहर इस तरह विदेशियों से भर जायें पर क्या करें ? अपनी फेक्टरी को पूर्वी यूरोप के किसी देश में या चीन ले जायें ?"
भूमँडलीकरण में दुनिया बदल रही है. शायद इण्लैंड, अमरीका में ऐसे परिवर्तन बहुत पहले आ चुके हैं और उनसे सीखना चाहिये कि कैसे स्कियो जैसे छोटे शहर इस परिवर्तन का सामना करें!
आज की तस्वीरों में स्कियो में हमारी छुट्टियाँ.
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तरुण ने लिखा है कि मुझ जैसे "वरिष्ठ" चिट्ठाकारों को अनुगूँज के विषय पर लिखना चाहिये. तरुण, वरिष्ठता की पदवी के लिए धन्यवाद. हालाँकि नेतागिरी और राजनीति के विषय पर लिखने की कोई इच्छा नहीं थी, पर तुमने कहा तो अवश्य कोशिश करुँगा.
भूमँडलीकरण पर अब मैं क्या अपने विचार व्यक्त करूँ, आप मुझसे बहुत अधिक जानते और समझते हैं।
जवाब देंहटाएंपर तस्वीरें वाकई बहुत सुंदर हैं, एल्पस से घिरा शहर तो वाकई प्रकृति की गोद में होगा। दूसरे नंबर वाली तस्वीर मुझे बहुत अच्छी लगी, शहर के साथ एल्पस भी दिखते हैं। :)
तस्वीरें तथा लेख दोनों बढ़िया लगीं।
जवाब देंहटाएं...वह तो आपस में मिल कर चूहों की तरह रहना चाहते हैं ...
जवाब देंहटाएंइससे ज्यादा सटीक टिप्पणी अन्य कोई नहीं हो सकती इन तालिबानी विचार धाराओं के लोगों के लिए...
अपने शहर में भी ऐसे लोगों को देख मुझे शर्म, दया, इत्यादि सबकुछ आता है और अब मुझे चूहे भी याद आएंगे.
पठनीय लेख है, सुंदर
जवाब देंहटाएंवाकई मस्त तसवीरें हैं चारों तरफ हरयाली आपकी सहत अच्छी बनी रहेगी
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक लेख और संदर तस्वीरें. भूमंडलीकरण के दौर में जरुरी है कि प्रवासी स्थानीय संस्कृति और भाषा को
जवाब देंहटाएंउचित सम्मान प्रदान करें.
बहुत सही लिखा.
जवाब देंहटाएंबहुत सही लिखा हैं. आपका नियमीत पाठक बन गया हुं. हमारे यहाँ तो कोई कह ही नहीं सकता कि मुस्लमान नहीं चाहिए, हम धर्मनिरपेक्ष(!!!) हैं ना.
जवाब देंहटाएंस्थानिय लोगो का गुस्सा अपनी जगह एक दम सही हैं. बाहरी लोग तभी अच्छे लगेंगे जब वे स्थानिय लोगो में दुध में चीनी कि तरह घुल जायेगे.
प्रवासियों का विरोध वहाँ के लोग क्यूँ करते हैं इस बारे में प्रकाश डालने के लिये शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंसुनील जी, कुछ सालों पहले एल्प्स पर्वत शिखर पर जाने का मौका मिला था, वहॉ एक "बोलीवुड रेस्टोरेंट" था।
जवाब देंहटाएंआपके लेख हमेशा पठनीय होते हैं।