मैं सोचता हूँ कि जिस तरह के उत्तर इज़राईल देता है, उससे आतंकवाद बढ़ता है और जेनेवा कन्वेंशन के अनुसार यह युद्ध अपराध हैं. एक सैनिक के बदले में दस औरतों या बच्चों को मार दो, इसकी नैतिकता नाजी जर्मनी की नैतिकता से मिलती है और अगर इज़राईल को ज़िन्दा रहने के लिए नाज़ियों जैसा बनना पड़ता है तो इज़राईलियों को सोचना चाहिए कि क्या इस लिए उन्होंने अपना देश माँगा था?
आज के भारत के लिए युद्ध की कीमत क्या होगी? थोमस फ्रीडमेन अपनी पुस्तक द फ्लेट अर्थ (The flat earth) में सन 2002 में पाकिस्तान और भारत के बीच तनाव होने और युद्ध की सम्भावना होने के बारे में कहते हैं -
"विवेक कुकलर्णी जो उस समय कर्नाटक राज्य के इंफोर्मेशन तकनीकी के सचिव थे,सन 2002 के मुकाबले में आज भारत का स्थान विश्व व्यापार में और बढ़ गया है, और आज युद्ध की कीमत और भी अधिक होगी, तो क्या बेहतर नहीं होगा कि और बातों को भूल कर भी, सिर्फ भारत की आर्थिक प्रगति का सोच कर, आतंकवाद के विरुद्ध अन्य तरीके खोजे जायें?
उन्होंने मुझे बताया कि हम राजनीति में दखल नहीं देना चाहते पर हमने सरकार को बताया
कि अगर भारत युद्ध में जाता है तो हमारे उद्योग को क्या दिक्कतें हो सकती हैं...
भारत सरकार को संदेश मिल गया. क्या केवल भारत का दुनिया के उद्योग में बढ़ता हुआ
स्थान ही अकेला कारण था जिसकी बजह से वाजपेयी सरकार ने झगड़े की बात कम कर दी और
युद्ध की कागार से देश पीचे हट गया, यह तो नहीं था. और भी कारण थे ..."
पाकिस्तान में कट्टरवादियों की कमी नहीं है और निकट भविष्य में उन्हें रोकने की क्षमता और इच्छा शायद वहाँ की सरकार में नहीं है. इसलिए भारत में आतंकवादियों को पकड़ने, थामने के लिए जो भी जरुरी हो वह करना चाहिए, पर यह सोच कर जिससे वह कमज़ोर हों, न कि आतंकवाद को बढ़ावा मिले.
एक और पाकिस्तान है जो आम लोगों का है. किसी मैच के सिलसिले में जब पाकिस्तानी लोग भारत आये थे और परिवारों के साथ ठहरे थे तब बात करते थे भारत और पाकिस्तान की साझा संस्कृति के बारे में. कल सिफी पर सामुएल बैड का लेख निकला है जिसमें वह "पाकिस्तान में भारत का सांस्कृतिक धावे" (Indian "cultural invasion" welcome in Pakistan) की बात करते हैं. उनके अनुसार दूरदर्शन में प्रसारित होने वाले रामायण और महाभारत पाकिस्तान में बहुत लोग देखते थे. उनके लेख में पीपलसं पार्टी के एक युवक कहता है कि उसे इन कहानियों से उसे बहुत प्रेरणा मिलती है. फैज़ अहमद फैज़ ने कहा कि पाकिस्तानी संस्कृति की जड़ें आगरा और दिल्ली में हैं. इस पाकिस्तान को मज़बूत करना भारत के अपने हित में है.
मैं नहीं मानता कि भारत को इज़राईल से सीख लेनी चाहिए कि कट्टरवाद से कैसे लड़ा जाये. भारत को कट्टरवाद और आतंकवाद का कड़ा जवाब देते हुए साथ ही इस दूसरे मुसलमान समाज को प्रोत्साहन देना चाहिए जो भारत और पाकिस्तान में है जो अपने साझे इतिहास को मानता है. ऐसी लड़ाई जिससे आतंकवादी कमज़ोर हों और अज़ीम प्रेम जी, सानिया मिर्जा, शबाना आज़मी, शाहरुख खान, जैसे लोगों की बात मज़बूत हो.
धर्म के बूते से बने देश, पाकिस्तान और बँगलादेश, इसको आसानी से नहीं होने देंगे. जहाँ विभिन्न धर्मों वाले, प्रगतिशील भारत में मुसलमान उन दोनो से अधिक हैं, और वह देश सब नागरिकों को जीवन स्तर सुधारने का अवसर देता है, जहाँ सभी धर्मों के मानने वालों के मानव अधिकारों का सम्मान है, इससे अच्छा क्या सबूत चाहिऐ कि धर्म की बिनाह पर अलग देश माँगना बेवकूफी है?
good thinking
जवाब देंहटाएंइजरायल लेबनान विवाद मे पीस रहे आम नागरीकों को देख दुःख होता है. गलती इजरायल की है तो हिजबुल्ला की भी कम नही है. क्यो ये लोग इजरायल की नाक मे दम किए रहते हैं. अगर इजरायल उन्हे ऐसा जवाब ना दे, तो ये लोग तो उसका अस्तित्व मिटाने को तत्पर बैठे हैं.
जवाब देंहटाएंभारत कभी इजरायल नही बन सकता. पर पाकिस्तान की ज्यादती भी कब तक बर्दास्त की जाए. और बांग्लादेश की गुस्ताखी तो शुभान अल्लाह!!
ठीक हैं इज्राइल का रास्ता हमारा नहीं हैं, फिर कैसे जवाब दिया जाये? सभी कहते हैं, मजबुती से जवाब दो. पर किस प्रकार ?
जवाब देंहटाएंएक रास्ता यहाँ सुझाया गया हैं, पर यह बेहद लम्बा हैं.
http://www.tarakash.com/joglikhi/?p=59
सुनिलजी - आपने सब कुछ सही लिखा है और आपके विचार भी नेक हैं मगर आप जैसे विचार उन लोगों मे कहां? बेंगाणी भाई ने ठीक ही तो कहा कि भारत आतंकवाद को कैसे दे जवाब?
जवाब देंहटाएंसुनील जी,
जवाब देंहटाएंशत प्रतिशत खरी बात। इज़राइल जो कर रहा है, बिल्कुल ठीक नही है, और मै मानता हूँ कि आम जनता हमेशा निर्दोष होती है, चाहे कहीं की भी हो, पाकिस्तान, भारत, इज़राइल, लेबनान, लेकिन पिसती सबसे ज्यादा वही है इन सियासत की घटिया चालों में और दोहरे मापदंडों में।