रवि की टप्पणी पढ़ी कि किसी ने चिट्टा "चुरा" लिया है तो बहुत कौतुहल से देखने गया. सोच रहा था कि रवि तुमने कैसे जाना? क्या प्रतिदिन तुम हर तरह के चिट्ठे देखते हो जो कोई भी इस तरह की बात हो तुरंत पकड़ी जाये या फ़िर इस बार किस्मत से तुम्हे दिख गया?
मैं ईशेडो की बात से सहमत हूँ कि यह भी प्रशँसा का एक तरीका हो सकता है, हालाँकि इस बार मेरा विचार है कि बेचारे ने मेरे विज्ञापन जैसे चिट्ठे को इस लिए छाप दिया ताकि और लोग उसे पढ़ सके और मुझे अधिक सुझाव मिलें! अच्छा होता कि वह साथ ही लिखता कि उसने यह कहाँ से लिया है पर हो सकता है कि उसने यह अधिक सोचे बिना किया.
मैं क्रियेटिव कोम्मन्स (Creative Commons) में विश्वास रखता हूँ. मेरे विचार में मैं जो भी लिखता हूँ वह बिल्कुल निजी या नया और अपूर्व हो, यह कहना गलत होगा. अक्सर लिखने का विचार किसी और का लिखा कुछ पढ़ कर ही आता है, और अतर्मन में जाने अब तक पढ़ी कितनी किताबें, लेख, आदि होंगे जिनका मेरे लिखने पर प्रभाव होगा. इसलिए यह सोंचू कि मेरे लिखने पर मेरा कोपीराईट हो, मुझे लगता है कि गलत होगा.
यह बात भी है मैं अपने लिखने से नहीं जीता, यह तो समय बिताने का तरीका और अपनी सृजनात्मक इच्छाओं को व्यक्त करने का साधन है, इसलिए कोपीराईट को भूल जाना, उसकी परवाह न करना, इससे मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता. पर जो जीवनयापन के लिए अपने लेखन पर निर्भर हैं, अवश्य उनके लिए ऐसा सोचना कठिन होगा.
यह बात वैज्ञानिक खोज पर लागू हो सकती है. कोपीराईट की बात सुन कर, और यह कि लोग या कम्पनियाँ अपनी नयी कोज से करोड़ या अरबपति बन जायें, मुझे कुछ ठीक नहीं लगता. जिस खोज में पैसा, समय, मेहनत लगी हो, उसका सही मेहनताना उन्हें मिलना चाहिए, पर दस बीस साल तक कोई उनकी "खोज" को छू नहीं सकता, यह गलत लगता है. कोई भी "नयी" वैज्ञानिक खोज, हज़ारों लोगों की पुरानी खोजों के बिना नहीं हो पाती. जीवित प्राणियों से जुड़े कोपीराईट पर तो मुझे और भी गलत लगता है. पर शायद इस सब पर विचार करने के लिए समय चाहिए, एक छोटे से चिट्ठे में यह सब बातें कहना और उनका विवेचन करना कठिन है.
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आप सबको जिन्होंने मेरे पर्श्नों को बारे में सुझाव दिये, धन्यवाद.
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बिल्कुल सही।
जवाब देंहटाएंतीसरा पैरा बहुत सटीक और सत्य है , कुछ सीखने को मिला , शुक्रिया जनाब
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