भारत में तो अयोध्या देखने का अभी तक मौका नहीं मिला पर जब थाईलैंड में वहाँ की अयोध्या के बारे में सुना तो निश्चय किया कि अवश्य देखने जाऊँगा. हिंदु धर्म और भारतीय संस्कृति का थाईलैंड पर बहुत प्रभाव है जिसका एक उदाहरण वहाँ का राजपरिवार है जहाँ हर राजा को राम का नाम दिया जाता है. आज के थाई राजा श्री भूमिबोल जिन्होंने सन 1950 में राज शासन सँभाला, उन्हें "राम नवम" के नाम से भी जाना जाता है. अठारहवीं शताब्दी तक थाईलैंड की राजधानी थी प्राचीन शहर अयोध्या जिसे थाई भाषा में अयुथ्या भी कहते हैं.
पूछा तो मालूम चला कि अयोध्या शहर बैंकाक से करीब 80 किलोमीटर दूर है, पर उस सड़क पर यातायात बहुत होने से यात्रा का समय दो घँटे तक हो सकता है. बैंकाक से स्थानीय रेलगाड़ी भी मिलती है अयोध्या जाने के लिए पर उसमें भी दो घँटे लगते हैं. दिक्कत यह थी कि मैं बैंकाक काम पर आया था और दिन भर कहीं जाने का समय नहीं मिलता था. बस एक रविवार की सुबह ही थी जिस दिन खाली था पर उस दिन भी, दोपहर को एक बजे किसी को मिलना था.
रविवार को सुबह छह बजे ही होटल से निकला और फटफटिया ले कर विक्टरी मोनूमैंट पहुँचा जहाँ से अयोध्या की बस मिलने की जानकारी ली थी. विक्टरी मोनूमैंट चौराहा है जहाँ बीच में गोल बाग है और हर दिशा में सड़कें निकलती हैं. तब मालूम चला कि हर कोने से कहीं न कहीं की मिनीबसें जा रहीं थीं और सही सड़क खोजने में, जहाँ से अयोध्या वाली मिनीबस मिलनी थी, कुछ देर लगी. मिनीबस में बैठा तो पता चला कि इनके चलने का कोई पक्का समय नहीं, जब पूरी भर जाती है तभी चल पड़ती है. बस को भरते भरते कुछ देर लगी, तो मन में खुलबुलाहट हो रही थी कि एक ही तो सुबह मिली है घूमने के लिए और वह भी यात्रा में ही निकल जायेगी. करते करते सात बजे बस चली तो बहुत तेजी से और 45 मिनट में हम लोग अयोध्या पहुँच गये थे. यानी रविवार सुबह को यातायात कम होने का कुछ फायदा हुआ. इस यात्रा का किराया था 65 भाट यानि कि करीब 90 रुपये.
थाई अयोध्या शहर तीन नदियों के संगम पर बना है. मिनीबस शहर के नदियों से घिरे बीच के द्वीप में बोंग आयन सोई मार्ग पर रुकती है, वहाँ से मैं छाऊ फ्राया नदी की ओर निकला, सुना था कि वहाँ फेरी बोट स्टेशन के पास साईकिल किराये पर ली जा सकती है. साईकिल की दुकान को खोजने में देर नहीं लगी. साईकल का एक दिन का किराया था 40 भाट यानि कि 55 रुपये. साईकल की दूकान वाली लड़की नें साथ ही शहर का नक्शा भी दिया और इस तरह साईकल ले कर हम निकल पड़े शहर देखने.
मेरा सबसे पहला पड़ाव था सड़क के किनारे बना एक भग्न बुद्ध मंदिर जिसका नक्शे में कोई नाम नहीं था, न ही कोई बोर्ड लगा था, न कोई देखने वाला वहाँ, न टिकट. वहाँ थी एक मीनार जैसी छेद्दी या स्तूप और सामने पत्थरों पर रखी बुद्ध के सिर की मूर्ती. सब कुछ जीर्ण और गिरता हुआ. बहुत सुंदर लगा और थोड़ा सा दुख हुआ कि उसकी अच्छी देखभाल नहीं हो रही थी.
अगला पड़ाव था महाथाट बुद्ध मंदिर. यहाँ टिकट था 50 भाट. यह अयोध्या का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है. कई एकड़ फ़ैले इस मंदिर में अधिकतर खण्हर ही हैं. मुझसे सबसे अच्छा लगी पीत वस्त्र में बुद्ध की एक प्रतिमा और पंक्तियों में योग मुद्रा में बैठी सिर विहीन प्रतिमाएँ. इस मंदिर में इधर से उधर घूमने में बहुत समय निकल गया.
मंदिर से निकला तो फ़िर रुका एक बाग में जहाँ एक तरफ़ नाचती अप्सरा थी और दूसरी ओर एक अन्य बुद्ध मूर्ती. तब तक सूरज प्रखर हो चुका था और गर्मी बढ़ने लगी थी.
घड़ी देखी तो पाया कि दस बज चुके थे, तो फ़िर साईकल निकाली और चल पड़ा सम्माराट मंदिर की ओर. इस मंदिर में लोग पूजा करने आते हें और यहाँ देखने के लिए कोई शुल्क नहीं. एक ओर प्राचीन मंदिर के भग्नावशेष हैं जहाँ पंक्ति में खड़ी शेरों की मूर्तियाँ बहुत सुंदर हैं..
पीछे की ओर कमल की पँखुड़ियों में बना बुद्ध मुख भी है जो मुझे कुछ विषेश नहीं जँचा. सामने के भाग में राजा की तस्वीर के सामने भी पूजा हो रही थी और साथ ही वहां बहुत सी मुर्गों की मूर्तियाँ थीं जिनका महत्व मैं समझ नहीं पाया. थाईलैंड में यही दिक्कत है कि अँग्रेज़ी जानने वाले लोग बहुत कम हैं और किसी से कुछ पूछना थोड़ा कठिन है.
घड़ी की सूईयाँ निष्ठुरता से भाग रही थीं, मेरा घूमने का समय चुकता जा रहा इसलिए तुरंत अगले पड़ाव की ओर रुख किया, यानि फ्रा सी सनफेट मंदिर. सनफेट राज भवन का प्राचीन मंदिर था और बहुत सुंदर है. मंदिर के पीछे की ओर प्राचीन राजभवन के खण्डर भी हैं.
मुझे लगने लगा था कि वापस बैंकाक पहुँचनें में देर हो जायेगी इसलिए सनफेट मंदिर में थोड़ा सा रुका और फ़िर साईकल को वापस देने चला. पूरा चक्कर लगा कर वापस साईकल की दुकान पर पहुँचा तो वहाँ काम करने वाली युवती थोड़ी हैरान हुई कि मैं कुछ ही घँटों में वापस आ गया था.
वापस बस अड्डे पर जाने के लिए सीधा रास्ता न ले कर, बल्कि मछली और सब्जी बाज़ार के बीच में होते हुए बस स्टैंड पर वापस आया और वापस बैंकाक जाने की मिनीबस पकड़ी. किस्मत अच्छी थी, अपनी मीटिंग से कुछ मिनट पहले ही वापस होटल पहुँच गया.
यह अयोध्या यात्रा छोटी सी थी, कुछ ठीक से नहीं देखा, थोड़े से मंदिर देखे बस, न तो नाव से नदी की यात्रा की, न ही नये शहर को देखा. मन को समझाया कि इस बार किस्मत में इतना ही था. किस्मत होगी तो फ़िर वहाँ जाने का मौका मिलेगा.
अच्छी जानकारी दी आपने सुनील जी. और अच्छा ही किया कि भारत वाले अयोध्या नहीं गए. वहाँ और सब तो ठीक है, लेकिन राजनीतिक संतों ने जो जहर बो दिया है, उसका असर झेलना अब स्थानीय लोगों के लिए भी मुश्किल हो रहा है.
जवाब देंहटाएंचलिए एक ऐसा देश जहाँ अब हिन्दू संस्कृति नामशेष है, राम और अयोध्या बचे हुए है. भारत में अयोध्या तो है मगर वहाँ राम नहीं. हम धर्मनिरपेक्ष होने का ढोंग जो करने लगे है.
जवाब देंहटाएंकभी इरान से लेकर सिंगापुर तक एक संस्कृति थी, अब भारत के अलावा अन्य जगहों पर अवशेष मात्र बचे है. अहिंसा की क्या खूब कीमत चुकाई है हमने.
Accha yatra vrittant diya aapne. Aasha hai aapko apni yatra purn karne ka punah avsar mile.
जवाब देंहटाएंसुनील जी , बहुत बहुत धन्यवाद । हां कभी सुना था मैंने पर आपने तो एक दम संजीव चित्रण किया है । अच्छा लगा जानकर ।
जवाब देंहटाएंप्राचीन संस्कृतियों के बारे में जानना सदैव सुखद होता है।
जवाब देंहटाएंबढ़िया यात्रा वृतांत और बढ़िया फोटो। जगह के बारे में नोट कर लिया है, कभी थाईलैन्ड जाना हुआ तो वहाँ की अयोध्या को अवश्य देखा जाएगा! :)
जवाब देंहटाएंमिनीबस में बैठा तो पता चला कि इनके चलने का कोई पक्का समय नहीं, जब पूरी भर जाती है तभी चल पड़ती है.
खूब, इससे दिल्ली की ब्लू लाईन बसों याद आ गई जब स्कूल कॉलेज के समय में उन पर सफ़र करता था, वे भी सवारियों की प्रतीक्षा में रहती थीं और जब बस भर जाती तब ही चलती थीं!!
तस्वीरों के जरिये मैनें भी अयोध्या देख ली! धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुनील जी ,
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर इतिहास ,कला ,संस्कृति का अनोखा संगम देखने को मिलता है ..हर पोस्ट नयी जानकारियां लिए हुए ....
आपको होली की हार्दिक मंगल कामनाएं .
हेमंत कुमार
आज तो दिल बाग़-बाग़ हो गया हमारा.....हम भी जैसे आपके साथ थाईलैंड ही जा पहुंचे.....दरअसल चित्रों की गत्यात्मकता अक्सर हमें कहीं ना होते हुए भी हमें वहां पहुंचा देती है.....जैसे की आज....और इसके लिए आपको बहुत-बहुत-बहुत धन्यवाद..........!!
जवाब देंहटाएंआपने भगवान बुद्ध के इतने पुराने फोटो िदखाये कि आज मेरा मन उतकंठित हो गया
जवाब देंहटाएंराहुल तुम्हें मेरा यात्रा वृताँत अच्छा लगा इसे बताने के लिए धन्यवाद :)
हटाएंअनायास आपके ब्लॉग पेज पर आ गया... लेकिन थाईलैंड के अयोध्या के बारे में पढ़ और समझ कर बेहद मजा आया... धन्यवाद...
जवाब देंहटाएंअमिताभ रंजन
सराहना के लिए धन्यवाद अमिताभ
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