शनिवार, मई 16, 2009

पुरानी फ़िल्में

कहानी क्या थी, विषय क्या था, यह सब कुछ याद नहीं था. याद थीं बस गाने की दो पक्तियाँ, "मेरे मन के दिये, यूँ ही घुट घुट के जल तू मेरे लाडले, ओ मेरे लाडले" और याद थी अँधेरे में दिया लिए तुलसी के पौधे के सामने पूजा करतीं सीधी सादी अभिनेत्री साधना जो उस समय बहुत अच्छी लगी थी. जहाँ तक याद है, वह फ़िल्म मैंने 1966 या 1967 में टेलीविजन पर देखी थी. वह श्वेत श्याम टीवी का ज़माना था जब शाम को कुछ घँटों के लिए दूरदर्शन का प्रसारण आता था. हमारे घर पर टीवी नहीं था इसलिए जब चित्रहार और रविवार की फ़िल्म प्रसारित होती तो पड़ोस में एक घर में उसे देखने जाते थे. फ़िल्म का यह गाना मन को बहुत भाया था, पर दोबारा उसे कभी सुना नहीं था.

पिछले महीने, चालीस साल बाद दिल्ली के पालिका बाज़ार में जब बिमल राय की 1960 की फ़िल्म "परख" की डीवीडी देखी तो तुरंत वही गाना मन में गूँज गया और डीवीडी खरीदी.



कुछ दिन पहले जब यह फ़िल्म देखी तो उतना आनंद नहीं आया, जिसकी बिमल राय की फ़िल्मों से अपेक्षा होती थी. शायद इसकी वजह हो कि मुझे गम्भीर फ़ल्में अधिक पसंद हैं जबकि "परख" हल्की फ़ुल्की फ़िल्म है जिसका विषय है समाज में पैसे का लालच और झूठ मूठ की बनावट. कहानी है गरीब लेकिन ईमानदार गाँव के पोस्टमास्टर की, जिन्हें ज़िम्मेदारी मिलती है कि एक बड़ी रकम को किसी अच्छे काम के लिए उपयोग किया जाये और कैसे उस बड़ी रकम को पाने के लिए सारे गाँव के बड़े लोग, यानि ज़मीनदार, डाक्टर, पुजारी आदि सब लोग तिकड़म लगाते हैं.



कहानी में पोस्टमास्टर की बेटी और गाँव के आदर्शवादी अध्यापक का प्रेम प्रसंग भी है, पर यह फ़िल्म का छोटा सा हिस्सा है. फ़िल्म में बड़े हीरो हीरोईन नहीं, पर उस समय के जाने माने बहुत से अभिनेता अभिनेत्रियाँ हैं जिनमें मोतीलाल, नज़ीर हुसैन, लीला चिटनिस, जयंत, कन्हैयालाल, असित सेन जैसे लोग हैं. पोस्टमास्टर की बेटी के भाग में हैं साधना, जिनकी यह प्रारम्भिक फ़िल्मों में से थी, और गाँव के अध्यापक के भाग में हैं बसंत चौधरी. फ़िल्म की कहानी और संगीत सलिल चौधरी का है.

सीधी साधी ग्लैमरविहीन साधना जिन्होंने इस तरह के भाग फ़िल्मों में कम ही किये, इस फ़िल्म में बहुत अच्छी लगती हैं. और फ़िल्म का संगीत बहुत बढ़िया है. "ओ सजना, बरखा बहार आयी", "गिरा है किसी का झुमका", "बंसी क्यों गाये, मुझे क्यों बनाये" जैसे लता मँगेशकर के गाने अभी भी सुनने को मिल जाते हैं. हाँ जो गीत मुझे सबसे अधिक प्रिय था, "मेरे मन के दिये", वह न जाने क्यों सफ़ल नहीं हुआ था, पर चालिस साल बाद दोबारा सुनना बहुत अच्छा लगा.

अगर आप यह गीत सुनना चाहें तो इसे यहाँ सुन सकते हैं

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एक मित्र ने पिछले क्रिसमस पर मुझे एक पुरानी रुसी फ़िल्म की डीवीडी भेंट दी, अँद्रेई तारकोव्स्की की फ़िल्म "इवान का बचपन" (Ivanovo Detstvo). यह फ़िल्म 1962 से है. अँद्रेई को रुसी सिनेमा को जानने वाले, बिमल राय जैसा ही बढ़िया सिनेमा बनाने वाला मानते हैं. मित्र बोले, तुम्हें गम्भीर फ़िल्में अच्छी लगती हैं तो यह भी अच्छी लगेगी. मैंने डीवीडी को लिया और संभाल कर रख लिया पर देखने का मन नहीं किया. लगा कि बोर करने वाली फ़िल्म होगी.



"परख" देखी तो जाने क्यों मन में आया कि "इवान का बचपन" को भी देखा जाये. फ़िल्म बहुत अच्छी लगी, इसका प्रिंट भी बहुत बढ़िया है, हर दृश्य साफ़ चमकता हुआ. फ़िल्म रूसी में थी जिसपर अँग्रेज़ी के सबटाईटल थे. फिल्म के कई दृश्य ऐसे लगते हैं कि मानो किसी चित्रकार ने तस्वीरें बनायीं हों. फिल्म की कहानी है द्वितीय महायुद्ध के समय में रूस और जर्मनी की लड़ाई की, जिसमें इवान, एक रूसी बच्चा छिप कर जर्मन हिस्से में जासूसी करने जाता है और रूसी सेना को सारी दुशमन की सारी खबर ला कर देता है. ईवान के पूरे परिवार को उसके सामने जर्मन सिपाहियों ने मार दिया था जिससे वह प्रतिशोध की आग में जल रहा है.

जब यह फ़िल्म बनी, रूस में यह समय स्टालिन की मृत्यु के बाद का था. शायद रूसी सिनेमाकार अधिक स्वतंत्र महसूस करते थे, उनमें नयी चेतना जागी थी जो फ़िल्म में झलकती है. फ़िल्म रूसी साम्यवाद की भावनाओं से भरी है और साथ ही रूसी दृष्टिकोण दिखाती है, यानि रुसी सभी अच्छे और नेकदिल लोग दिखाये गये हैं जो बच्चों को प्यार करते हैं, अच्छे कपड़े पहनते हैं, अच्छा खाना खाता हैं, गाना गाते हैं, साफ़ सुथरे रहते हैं, आदि. दूसरी तरफ़, जर्मन सभी क्रूर और हृदयहीन जानवर जैसे दिखाये गये हैं. पर इस सब के बावजूद फ़िल्म इस तरह से बनायी गयी है कि इसकी रोचकता कम नहीं होती.



तकनीकी दृष्टि से फ़िल्म बहुत सुंदर है. फ़िल्म का पहला दृष्य जिसमें एक बच्चा धूप में घास पर खेल रहा है, एक स्वपन का दृष्य है जो तब समझ में आता है जब बम गिरते हैं और सोया इवान नींद से चौंक कर उठ जाता है, बहुत सुंदर है. दृष्यों का कम्पोज़ीशन, रोशनी और छाया का प्रयोग, इत्यादि बहुत सुंदर हैं. फ़िल्म को दोबारा देखने का मन करता है, यही सब तकनीकी बातें बेहतर समझने के लिए. ईवान का भाग करने वाले बच्चे का अभिनय बहुत बढ़िया है.

5 टिप्‍पणियां:

दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi ने कहा…

आप की इस पोस्ट से बहुत सी जानकारियाँ मिलीं। कृपया ऐसी पोस्टें लिखते रहें।

दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi ने कहा…

शास्त्री जी को बहुत बहुत बधाई।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

परख का गीत बरसोँ बाद सुना - ये फिल्म अलग सी थी
सँगीत बेहद मधुर है
-लावण्या

नितिन | Nitin Vyas ने कहा…

समीक्षा अच्छी लगी।

rrrr ने कहा…

Wah .... Colour ke jammne me black and white filme kafi sukun pahuchati hai..rite now Gurudutt ki film dekh raha hu ...thakx for remind that i have some old filmes...

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