करीब तीस-बत्तीस साल के बाद मिल रहे थे. इस बीच में हमारे बीच कोई भी सम्पर्क नहीं रहा था.
साथ साथ मेडिकल कालेज में पढ़े थे पर मेडिकल कालेज के दिनों में हमारे बीच कोई विषेश दोस्ती नहीं थी. हमारी विषेश दोस्ती बनी थी पढ़ायी के समाप्त होने पर जिस समय नये स्नातक डाक्टरों को, एक साल के लिए अस्पताल में काम करके चिकित्सा विज्ञान का प्रेक्टिकल अनुभव प्राप्त करना होता है, जिसे इन्टर्नशिप कहते हैं. उस दौरान हम दोनो की कई पोस्टिंग साथ साथ हुईं थीं. इन्टर्नशिप के दौरान नये डाक्टरों से खूब दिन रात काम लिया जाता है, साँस लेने कि फुरसत मुश्किल से मिलती थी. उन दिनों में जब भी कुछ समय मिलता, अक्सर हम दोनो दिल्ली में कश्मीरी गेट से आगे जा कर यमुना तट पर बने तिब्बती रेस्टोरेंट में खाना खाने जाते और घँटों बातें करते.
वह इन्टर्नशिप का वर्ष समाप्त हुआ, डिग्री मिली और हम दोनों के रास्ते अलग दिशाओं में मुड़ गये. सुना कि उसका विवाह अमरीका में कहीं हुआ है. फ़िर सुना कि जहाँ विवाह हुआ था वहाँ कुछ झँझट थे, पर कुछ अधिक नहीं पता चला. बस उसके बाद कोई अन्य बात नहीं सुनी, न ही मालूम हुआ कि वह कहाँ है, क्या करता है?
अब कुछ समय पहले फेसबुक और मेडिकल कोलिज में साथ में हमारे साथ पढ़ने वाले लोगों की वजह से उससे फ़िर से सम्पर्क हुआ. मालूम चला कि वह इँग्लैंड में रहता है. उसके शहर में जाने का मौका मिला तो उससे मुलाकात भी हुई. एक पब में मिले और बीयर पीते पीते पुरानी बातों की बात हुई.
वह छरहरा सा लड़का जो मेरी यादों में था, अब अच्छे खासे खाते पीते घर के तँदरुस्त व्यक्ति में बदल गया था, जिसे अगर सड़क पर मिलता तो पहचान ही नहीं पाता. जब बीते दिनों की बातें चुक गयीं तो कुछ समझ नहीं आया कि क्या बात करें. इतने सालों में हमारे जीवनों में जो कुछ हुआ था, उससे हमारे बीच की बातें कुछ कम हो गयी थीं.
अचानक वह बोला,"तू तो बिल्कुल अँकल टाइप लगता है इन सफेद बालों में. बालों को डाई क्यों नहीं करता?"
उसके बाल घने और गहरे काले थे. मुझे हँसी आ गयी, मैं बोला, "बेटा, तू चाहे तो तू भी मुझे अँकल बुला ले, मैं बुरा नहीं मानूँगा."
वह पहला व्यक्ति नहीं था जिसने बाल रँगने करने के लिए मुझे कहा था. पहले भी कुछ लोगों से यही बात सुन चुका था.
यह सच है कि मैंने कई बार सोचा है कि अपने बालों का एक लच्छा जामुनी या हरे रंग में रंगवा लूँ, लेकिन उनको काला करके अधिक जवान दिखने की मेरी कभी कोई इच्छा नहीं हुई. एक बार मँगोलिया में यात्रा के दौरान एक लड़का मिला था जिसने अपने बाल हलके भूरे रंग में रँगवाये थे, जो मुझे बहुत अच्छा लगा था और मन में आया था कि अपने बाल वैसे ही भूरे रँगवा लूँ.
अपने बालों को जो काला नहीं रंगवाना चाहता, इसके पीछे बात है मेरे पिता के परिवार के इतिहास की.
मेरे दादा द्वारका प्रसाद छोटे से थे जब उनके पिता का देहाँत हुआ था. वह अपने बड़े भाई बेनी प्रसाद की छत्रछाया में बड़े हुए. द्वारका प्रसाद 33 वर्ष के थे, जब उनका देहाँत हुआ था. उस समय मेरे पिता ओम प्रकाश तीन साल के थे. मैं स्वयं बीस साल का था जब मेरे पिता का देहाँत हुआ था.
बचपन से ही मेरे मन में यह बात घर कर गयी थी कि हमारे परिवार में पिताओं को अपने बच्चों को ठीक से बड़ा होते देखना नसीब नहीं होता. बहुत सालों तक मेरे अपने मन में भी डर था कि अपने बेटे को ठीक से बड़ा होते देखने का मुझे भी मौका नहीं मिलेगा. पर ऐसा नहीं हुआ. मुझे अपने बेटे का बड़ा होना, उसका नौकरी करना, उसका विवाह, सब कुछ देखने को मिला.
इसलिए मुझे लगता है कि बहुत किस्मत से इतनी पुश्तों के बाद हमारे परिवार में मेरे बेटे को सफेद बालों वाला पिता मिला है. जब हम दोनों शाम को कभी बाग में बाते करते हुए घूम रहे होते हैं तो कभी कभी सोचता हूँ कि मेरे पिता, दादा, परदादा, सभी हम दोनो के साथ साथ ही घूम रहे हैं, हमारी बातें सुन रहे हैं और खुश हो रहे हैं.
आप ही कहिये, इतनी किस्मत से मिले सफ़ेद बाल, इनको कैसे रँगा जा सकता है?
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हमारी कुछ पुरानी तस्वीरें:
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ये लॉजिक जानने के बाद तो हम भी यही कहेंगे, बिल्कुल न रंगियेगा।
जवाब देंहटाएंपहले समय में कई मामले सुने हैं कि संतान बचती नहीं थी तो अजब अजब टोटके करते थे लोग, नाम अजीब सा रख देना, टोकन अमाऊंट के बदले दाई को बेच देना आदि। दुर्भाग्य को ऐसी बातों से झाँसा दे सकने जैसी बातें आज अजीब बेशक लगें लेकिन लोगों की सादगी तो बता ही देती हैं।
आप तो फ़िर दादाजी बन चुके, हम तो अभी सिर्फ़ पापाजी ही हैं लेकिन फ़िर भी अंकल कह्कर पुकारे जाते हैं और बुरा भी नहीं मानते:)
धन्यवाद संजय. :))
हटाएं(अभी तक दादा बनने का मौका नहीं मिला, और लगता है है कि जल्दी मिलेगा भी नहीं!)
माफ़ कीजियेगा, समझने में कुछ भूल हुई।
हटाएंआपको ढेरों शुभकामनायें, आप ऐसे भी बहुत अच्छे लगते हैं।
जवाब देंहटाएं:))))) बहुत धन्यवाद
हटाएंआप ही कहिये, इतनी किस्मत से मिले सफ़ेद बाल, इनको कैसे रँगा जा सकता है?
जवाब देंहटाएंअनुभव को रंगा नहीं जा सकता .
रमाकाँत जी ठीक कहा आप ने, अनुभव के संग से ही तो हम अपने सारे जीवन को रंगते हैं, उसे कैसे रंगे? धन्यवाद :)
हटाएंबहुत ख़ूब वाह!
जवाब देंहटाएंआपकी नज़रे-इनायत इसपर भी हो-
रात का सूनापन अपना था
धन्यवाद चन्द्र भूषण जी
हटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंआपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 15-10-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1033 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ
चन्द्र भूषण जी, आप को शतः धन्यवाद :)
हटाएंसुनील दीपक जी धवल हिमालय लिए सर पे चलना अर्जित सुख है जीवन के अनुभवों का .बाल धुप में सफ़ेद नहीं होते हैं सफेदी अनुभव की होती है जो व्यक्तित्व को एक विशेष गरिमा प्रदान करती है .बढ़िया संस्मरण परक रचना है आपकी .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद वीरेन्द्र जी, आप की बात बिल्कुल सही है, और आप ने कही भी बहुत कवितामय रूप में है. :)
हटाएंकई बार मुझे लगता है कि जीवन इतना आसान था, सब कुछ हमेशा मन चाहा मिला, इसलिए अनुभव और यह सफ़ेद बाल, दोनो ही बिना मेहनत के ही मिल गये!
बहुत प्यारी पोस्ट....
जवाब देंहटाएंजाने कहाँ से आपके ब्लॉग तक आना हुआ....
आपकी लेखन शैली सुन्दर और सहज है....
तय बात है कि आपने बाल धूप में सफ़ेद नहीं किये :-)
सादर
अनु
धन्यवाद अनु, इस सराहना के लिए :)
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंकृपया आप इसे अवश्य देखें और अपनी अनमोल टिप्पणी दें
यात्रा-वृत्तान्त विधा को केन्द्र में रखकर प्रसिद्ध कवि, यात्री और ब्लॉग-यात्रा-वृत्तान्त लेखक डॉ. विजय कुमार शुक्ल ‘विजय’ से लिया गया एक साक्षात्कार