है तो वह भोंदू, घर में आये किसी मेहमान पर नहीं भौंकता, बहुत छोटे बच्चों को छोड़ कर. हमें समझ नहीं आया कि क्यों वह छोटे बच्चों को देख कर कभी कभी भौंकने लगता है ? ऐसे में उन बच्चों के आहित माता पिता को मैं कहता हूँ कि छोटे बच्चे अक्सर इसकी पूँछ खींचते हैं इसलिए यह उनसे डरता है!
एक सप्ताह का था जब वह हमारे घर में आया था. उस समय हमारे घर में एक बिल्ला भी था, श्रीमान मारलोन उर्फ माऊँ. जब कुत्ता आया तो उसे मारलोन का साथी बनाने के लिए हमें ब्रांदो नाम रखने में बिल्कुल हिचकिचाहट नहीं हुई. तब से वह हम सब का लाड़ला है. बहुत आज्ञाकारी है, कुछ भी कहो तो तुरंत करता है. कभी कभी बाग में सैर करते समय किसी एक रास्ते से जाने या न जाने पर अड़ जाता है और पैर जमा लेता है, हिलाने से नहीं हिलता (तब हम उसे अंगद जी बुलाते हैं). अगर बरसात हो रही हो और सैर पर जाने के लिए उसे रेनकोट पहनाया जाये तो नीचे मुँह करके काँपने सा लगता है (तब हम कहते हें कि यह तो सीता मैया है जो कह रहीं हैं, धरती फट जा ताकि हम तुझमें समा जायें!).
पर उसके प्रेम की सबसे बड़ी हकदार है मेरी पत्नी, जिसके घर से बाहर कहीं जाने पर वह बिना लैला का मजनू बन जाता है और अपना अधिकतर समय दरवाजे के पास उसके वापस आने की आस में मुँह बना कर बैठा रहता है. अगर पत्नी कुछ दिनों के लिए कहीं चली जाये, तो दो दिनों में ही बेचारा कमजोर सा हो जाता है. इस बार भारत यात्रा में तीनों लोग उसे अकेला छोड़ कर चले जायेंगे तो क्या होगा, इसकी चिंता हम सबको परेशान कर रही है.
वे तीन सप्ताह उसे हमारी साली साहिबा के घर पर रहना है, जिन्हें वह अच्छी तरह से जानता है, पर वे भी कुछ डर रहीं हैं कि बेचारा परिवार के बिना कैसे रहेगा. जब जायेगा तो अपने साथ अपनी पुरानी चद्दर, मेरी पत्नी का पुराना स्वेटर, आदि ले कर जायेगा. आप शायद हँसें कि कुत्ते के बारे में इतना परेशान होना पागलपन है पर हमारे लिए तो वही इस शुभ अवसर पर हमारी सबसे बड़ी चिंता है.
आज कि तस्वीरों में ब्रांदो और हम लोगः









