पतझड़ के रंग बसंत के रंगों से कम नहीं होते. घर के नीचे एक बाग है जहाँ होर्स चेस्टनट, मेपल, पलेन, इत्यादि के पेड़ हैं, सभी रंग बदल कर लाल पीले पत्तों से ढ़क जाते हैं, जिन्हें हवा के झोंके गिरा देते हैं. जमीन पर गिरे इन पीले या भुरे पत्तों पर चलना मुझे बहुत अच्छा लगता है. पतझड़ के इन रंगों से दिल्ली के बसंत की याद आती है जब सड़क के दोनों ओर लगे अमलतास और गुलमोहर खिलते हैं और लगता है कि पेड़ों में आग लगी है.
रंग बदलने में मेपल के पेड़ जैसा शायद कोई अन्य पेड़ नहीं. इन पेड़ों से ढ़की बोलोनिया के आस पास की पहाड़ियाँ बहुत मनोरम लगती हैं. अमरीका और कनाडा में मेपल के पेड़ के रस के साथ पेनकेक खाने का चलन है. कुछ कड़वा सा, कुछ शहद जैसा, यह रस मुझे अच्छा नहीं लगता पर बहुत से लोग इसे पसंद करते हैं. इटली के मेपल उन अमरीकी मेपल से भिन्न हैं, और इनमें से कोई रस नहीं निकलता.
मेपल को हिंदी में क्या कहते हैं ? लिखते लिखते ही शब्दकोश में देखने गया तो पाया कि इसे हिंदी में द्विफ़ल कहते हैं. शायद इसके बीजों की बजह से ? छोटा सा हवाई ज़हाज लगते हैं इसके बीज. बीच में दो उभरे हुए इमली के बीज जैसी गाँठें और उनसे जुड़े दो पँख.
आज की तस्वीरें हैं समुद्री चीड़ों की, जिनके पत्ते पतझड़ में भी यूँ ही हरे रहते हैं.


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