इमोला "ग्रान प्री फोरमूला-एक" की कार रेस के लिए मशहूर है. अप्रेल में जब कार रेस के दिन आते हैं तो देश विदेश से लाखों पर्यटक यहाँ आते हैं और एक सप्ताह के लिए वहां की जनसंख्या ३० हजार से ३० लाख हो जाती है. जब वहाँ रहते थे तो उस एक सप्ताह में बड़ी कोफ्त होती थी. इतनी भीड़ की कुछ भी काम न हो पाये. सड़कों के फुटपाथों पर लोग कार पार्क कर देते, बागों में टेंट लगा देते, और कार रेस ट्रेक से कारों की घुर घुर इतनी तेज़ होती जैसे हवाई जहाज़ की आवाज होती है.
इतने दिनों बाद वहाँ लौटना अच्छा भी लगा और अजीब भी. वही पुरानी सड़कें जहाँ से रोज गुजरता था, जानी पहचानी भी लग रहीं थीं और नयी भी. किले के पास घूम रहे थे जब अचानक पत्नी ने एक लड़के को आवाज लगायी, "रिक्की!" मैं तो पहले पहचान नहीं पाया. लम्बा, पतला सा लड़का. बिखरे गंदे बाल, पतला शरीर, बुझा चेहरा, गंदे कपड़े. धीरे धीरे पास आया तो याद आया. बेटे का स्कूल का दोस्त था, अकसर घर आता था. कई बार बेटे के साथ साथ उसे भी मैंने होम वर्क करवाया और पढ़ाया था. उसके पिता की फैक्टरी है और बहुत पैसे वाले लोग हैं. कभी कभी मिलते थे पर विषेश दोस्ती नहीं थी. इमोला से आने के बाद, जानता था कि मेरे बेटे से कभी बात होती है पर मैंने उससे या उसके परिवार से दोबारा बात नहीं की थी.
उसे देख कर हैरान हो गया. इतना कैसे बदल गया था. वह खास बोला नहीं, बस सिर हिलाता रहा. चार पाँच मिनट बात की, मेरी पत्नी ने ही बात की, घर की, परिवार के समाचार पूछे. सारे समय वह या तो नीचे देखता रहा या फिर उसकी आँखें इधर उधर अजीब ढ़ंग से घूम रहीं थीं जैसे कैद हुआ हिरन भागने का रास्ता ढ़ूंढ़ रहा हो. छोटा सा सुंदर सा हँसमुख लड़का जो मेरी याद में था वह इस गम्भीर, बीमार से नवजवान से बिल्कुल मेल नहीं खाता था. बाद में पत्नी ने कहा कि शायद नशा करता है.
सब कुछ तो था उनके पास. पढ़े लिखे शालीन माता पिता, पैसा, सभी सुख, बचपन से जवानी के रास्ते में क्या हुआ ? ऐसा कैसे हो गया?
आज की तस्वीरे इमोला सेः इमोला का किला और पुरानी कपड़े धोने की जगह, जहाँ स्त्रियाँ कपड़े धोने आती थीं और आज भी बूढ़ी औरतें कपड़े धोने के बहाने आ जाती हैं.


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