समय के साथ हमारा चिट्ठी लिखना कुछ कम हो गया पर फिर भी बीच बीच में हमारी बात होती रहती. "जाक्क?" हर बार मैं पूछता. "उसने शादी करली, हमारे घर से किसी को नहीं बुलाया." "माँ की तबियत बहुत खराब है, उसे लिखा है पर उसने कुछ जवाब नहीं दिया." "पापा का ओपरेश्न हुआ है पर जाक्क नहीं आया." ऐसे २१ साल बीत गये. इस बीच, मैरी क्रिस्टीन और छोटे भाई जां मैरी के विवाह हुए, तलाक हुए, दूसरे विवाह हुए, बड़ी बहन की दुर्घटना में टांग चली गयी, मां की मृत्यु हुई, पर जाक्क नहीं आया, न टेलीफोन किया, न चिट्ठी लिखी.
इतना गुस्सा कोई कैसे कर सकता है अपने मां बाप, भाई बहनों से, मेरी समझ से बाहर है. और अब मां की मृत्यु के चार साल बाद, अचानक क्या हो गया कि जाक्क वापस घर आया?
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शायद यहाँ के सोचने का ढ़ंग ही हमारे सोचने से अलग है? मारियो मेरा मित्र है, जब उसका पहला बेटा पैदा हुआ तो उसकी मां भी दक्षिण इटली से यहां आयीं, और तब वह मारियो की पत्नी आन्ना के माता पिता से पहली बार मिलीं. जब उन्होंने मुझे यह बताया तो मैं हैरान रह गया. "क्यों, जब तुम्हारी शादी हुई थी, तब नहीं मिली थी?" मैंने मारियो से पूछा. "नहीं हमने अपनी शादी में अपने माता पिता को नहीं बुलाया था, न मैंने, न आन्ना ने."
उनके इस व्यवहार के पीछे कोई झगड़ा या परेशानी नहीं, बस उनका सोचना था कि यह उनका जीवन है और वह अपने फैसले अपनी मरजी से करते हैं, इसमें परिवार को नहीं मिलाना चाहते.
मैं सोचता हूँ कि भारत में हमारा सोचने का ढ़ंग अलग है, पर क्या भारत भी बदल रहा है, क्या वहां भी ऐसी व्यक्तिगत संस्कृति आ सकती है, जिसमें सिर्फ, मैं-मेरा-मुझे सबसे ऊपर हों?
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आज दो तस्वीरें दक्षिण अफ्रीका से.


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