पिछली साल की कुछ छुट्टियाँ बची हुईं थीं. जब छोटी बहन ने कहा कि उसका नया नाटक वाशिंगटन में प्रस्तुत किया जायेगा तो सोचा कि क्यों न छुट्टियों का फ़ायदा उठाया जाये और उसके नाटक को देखने अमरीका जाया जाये? हमारे परिवार में सब लोग एक-दो कामों से संतुष्ट नहीं होते, कुछ न कुछ इधर उधर की करते ही रहते हैं. वही बात मेरी छोटी बहन की भी है. वैसे तो मनोरोग विशेषज्ञ है लेकिन साथ ही नाटक लिखने और करने का शौक है. इस नये नाटक की वह निर्देशिका भी है. नाटक का विषय है भारत की स्वाधीनता के पहले के कुछ दशक जिसमें गाँधी जी, नेहरु तथा जिन्ना के बहसों के माध्यम से भारत और पाकिस्तान के विभाजन होने की पृष्ठभूमि को समझने की कोशिश की गयी है. इसे लिखने के लिए उसने कई सालों तक शौध किया है. बस सोचा और अमरीका जा कर उसका नाटक देखने का कार्यक्रम बना लिया. इसी बहाने कुछ दिन न्यू योर्क में भी भतीजे के पास हो कर आऊँगा.
कल रविवार को सुबह अमरीका रवाना होना है, लेकिन छुट्टियों का पहला दिन आज था. सुबह उठा तो बाहर चमकती धूप देख कर मन प्रसन्न हुआ. पिछले दो तीन सप्ताहों से यहाँ उत्तरी इटली में हर दिन बारिश और ठँठक का मौसम चल रहा था. ईमेल खोलीं तो यहाँ के कला संग्रहालय का संदेश पढ़ा कि आज सुबह शहर के प्राचीन आकुर्सियो भवन में बने भित्ती चित्रों को समझने के लिए टूर का आयोजन किया गया है. यह भवन पुराने शहर के केन्द्र में बना है जहाँ कार से जाना मना है. लगा कि इतना सुन्दर दिन घर में बैठ कर नहीं, बल्कि कला संग्राहलय में भित्तीचित्रों के बारे में ज्ञान बढ़ा कर किया जाना चाहिये.
बस में जब पुराने शहर पहुँचा तो वहाँ बहुत भीड़ देखी. अधिकाँश लोग वृद्ध थे और पुरानी सिपाहियों वाली पौशाकें पहने थे. वहाँ के प्राचीन किले की दीवार पर द्वितीय महायुद्ध में जर्मन सैना के विरुद्ध लड़ाई में मरने वालों का स्मृति स्मारक बना है, जहाँ बहुत से नवजवान स्त्री पुरुषों की तस्वीरें भी लगी हैं. कुछ लोगों ने उन तस्वीरों के सामने फ़ूल चढ़ाये और सलामी दी. वहाँ युद्ध में साईकिल से एक जगह से दूसरी जगह समाचार पहुँचाने वाले सिपाही अपनी पुरानी साईकिलें ले कर खड़े थे.
जब भी इस तरह के अवसर होते हैं, नेता लोग भाषण देते हैं कि हम तुम्हारे बलिदानों को कभी नहीं भूलेंगे, तुम्हारा नाम अमर रहेगा, इत्यादि. पर यह सब कहने की बातें होती हैं. युद्ध में जान देने वालों को याद करने के लिए बहुत लोग नहीं थे, जो थे, सभी बूढ़े या मरने वालों के परिवार वाले.
कुछ देर स्मृति समारोह में भाग ले कर मैं कला संग्रहालय पहुँचा. भित्तिचित्रों के बारे में टूर शुरु होने की प्रतीक्षा में कुछ लोग इक्टठे हुए थे. मुझे हमेशा इस बात से अचरज होता है कि कला और सभ्यता के बारे में इतनी दिलचस्प बातें जानने का मौका मिलता है पर फ़िर भी अधिक लोग नहीं आते. खैर थोड़े लोग हों तो गाईड की बात सुनने और कला को देखने में आसानी होती है. एक घँटे का टूर था, लगा कि कुछ पलों में समाप्त हो गया हो. इस भवन में भित्तिचित्र सन 1250 में बनने शुरु हए थे. पिछली नौ शताब्दियों का इतिहास कला में देखना, यह समझना कि किस तरह समय के साथ कला की शैली में परिवर्तन आये, यह जानना कि क्यों कोई चित्र बनवाया गया, बहुत दिलचस्प लगा.
सभी भित्तिचित्रो के बारे में बताना तो कठिन होगा, पर नमूने के तौर पर आज के टूर से एक चित्र का विवरण प्रस्तुत है. यह चित्र एक गैलरी में बना है जिसे सन 1600 के पास बनवाया गया, जब बोलोनिया शहर कैथोलिक धर्म यानि पोप के शासन का हिस्सा था और पोप ने एक पादरी को शहर का गर्वनर बनाया था.
इस भित्तिचित्र में नीचे की ओर बने हैं ग्रीक देवता मर्करी यानि बुध, जो कि तारों भरे आकाश की चादर को हटा कर पीछे से स्वर्ग में क्या हो रहा है उसका दृश्य दिखा रहे हैं. स्वर्ग में दायीं ओर शान्ति तथा न्याय खड़ी हैं, उनके हाथ में पोप का मुकुट है जिसे देवताओं के राजा जुपिटर यानि बृहस्पति आशीर्वाद दे रहे हैं.
जब ईसाई धर्म आया था तो उसने प्राचीन ग्रीक तथा रोमन देवी देवताओं को झूठे देवी देवता कह कर नकार दिया था. लेकिन 1600 के आसपास रिनेसेंस काल में प्राचीन ग्रीक सभ्यता को मानव सभ्यता का सबसे उच्चतम स्वरूप कहा जाने लगा था. ग्रीक ज्ञान, वास्तुशिल्प शैली, दर्शन आदि को कलाकार, दर्शनशास्त्री, वैज्ञानिक महत्व देने लगे थे. ऐसे में यह चित्र यह दिखा रहा था कि प्राचीन ग्रीक देवता भी पोप का सम्मान करते थे. चूँकि तब तक उन पुराने देवी देवताओं की कोई पूजा नहीं करता था और न ही समाज में उनका कोई महत्व बचा था, इसलिए पोप द्वारा अपनी शक्ति को बढ़ाने के लिए प्राचीन ग्रीक देवी देवताओं के प्रयोग में कोई कठिनाई नहीं थी.
टूर के बाद वहीं पर ब्राज़ील की पशु, पक्षी तथा प्राकृतिक सम्पदा पर एक प्रदर्शनी लगी थी उसे देखने गया. प्रदर्शनी देख कर निकल रहा था तो नगरनिगम के उस कक्ष के सामने से गुज़रा जहाँ सिविल विवाह होता है. अन्दर कक्ष पर नज़र पड़ी तो वहाँ साड़ी पहनी एक युवती दिखी. मन में जिज्ञाया जागी कि किसकी शादी हो रही है. अन्दर जा कर पूछा तो मालूम चला कि वालेन्तीना नाम की युवती का विवाह था जो पाकिस्तानी युवक जहीर से विवाह कर रही थी. फ़िर वालेन्तीना को देखा तो समझ में आया कि मैं उस युवती को जानता था. वह भरतनाट्यम सीखती है और उससे कई बार मुलाकात हो चुकी थी. कुछ देर के लिए मैं भी उसके विवाह में शामिल हुआ.
वालेन्तीना और जहीर विवाह के लिए अन्दर गये तो एक अन्य इतालवी युगल विवाह करके बाहर निकला. इस बार वधु वर से कुछ लम्बी थी पर जोड़ी बहुत सुन्दर थी. बाहर प्रांगण में उनके रिश्तेदारों ने उन पर चावल फैंके, गुब्बारे छोड़े, रंगीन कागज़ के फुव्हारे छोड़े. उन सब के साथ मैंने भी थोड़ी देर उनके पारिवारिक समारोह का आनन्द लिया.
नगरनिगम भवन से बाहर आया तो एक अनोखी कलाकार पर दृष्टि पड़ी. एक युवती हाथ में हारमोनिका बजा रही थी और घुटने से बँधे धागों को हिला कर कठपुतलियों से नृत्य करा रही थी. उसका नाम भी वालेन्तीना था. थोड़ी देर रुक मैंने भी उसका संगीत और कठपुतली का कार्यक्रम देखा.
आखिर में जब घर पहुँचा तो लगा कि छुट्टी के पहले दिन का प्रारम्भ बढ़िया रहा. शायद इसका अर्थ है कि अमरीका में बाकी की छुट्टी भी बढ़िया ही बीतेगी. अब तो आप से अमरीका से वापस आने पर ही मुलाकात होगी.
***
कल रविवार को सुबह अमरीका रवाना होना है, लेकिन छुट्टियों का पहला दिन आज था. सुबह उठा तो बाहर चमकती धूप देख कर मन प्रसन्न हुआ. पिछले दो तीन सप्ताहों से यहाँ उत्तरी इटली में हर दिन बारिश और ठँठक का मौसम चल रहा था. ईमेल खोलीं तो यहाँ के कला संग्रहालय का संदेश पढ़ा कि आज सुबह शहर के प्राचीन आकुर्सियो भवन में बने भित्ती चित्रों को समझने के लिए टूर का आयोजन किया गया है. यह भवन पुराने शहर के केन्द्र में बना है जहाँ कार से जाना मना है. लगा कि इतना सुन्दर दिन घर में बैठ कर नहीं, बल्कि कला संग्राहलय में भित्तीचित्रों के बारे में ज्ञान बढ़ा कर किया जाना चाहिये.
बस में जब पुराने शहर पहुँचा तो वहाँ बहुत भीड़ देखी. अधिकाँश लोग वृद्ध थे और पुरानी सिपाहियों वाली पौशाकें पहने थे. वहाँ के प्राचीन किले की दीवार पर द्वितीय महायुद्ध में जर्मन सैना के विरुद्ध लड़ाई में मरने वालों का स्मृति स्मारक बना है, जहाँ बहुत से नवजवान स्त्री पुरुषों की तस्वीरें भी लगी हैं. कुछ लोगों ने उन तस्वीरों के सामने फ़ूल चढ़ाये और सलामी दी. वहाँ युद्ध में साईकिल से एक जगह से दूसरी जगह समाचार पहुँचाने वाले सिपाही अपनी पुरानी साईकिलें ले कर खड़े थे.
जब भी इस तरह के अवसर होते हैं, नेता लोग भाषण देते हैं कि हम तुम्हारे बलिदानों को कभी नहीं भूलेंगे, तुम्हारा नाम अमर रहेगा, इत्यादि. पर यह सब कहने की बातें होती हैं. युद्ध में जान देने वालों को याद करने के लिए बहुत लोग नहीं थे, जो थे, सभी बूढ़े या मरने वालों के परिवार वाले.
कुछ देर स्मृति समारोह में भाग ले कर मैं कला संग्रहालय पहुँचा. भित्तिचित्रों के बारे में टूर शुरु होने की प्रतीक्षा में कुछ लोग इक्टठे हुए थे. मुझे हमेशा इस बात से अचरज होता है कि कला और सभ्यता के बारे में इतनी दिलचस्प बातें जानने का मौका मिलता है पर फ़िर भी अधिक लोग नहीं आते. खैर थोड़े लोग हों तो गाईड की बात सुनने और कला को देखने में आसानी होती है. एक घँटे का टूर था, लगा कि कुछ पलों में समाप्त हो गया हो. इस भवन में भित्तिचित्र सन 1250 में बनने शुरु हए थे. पिछली नौ शताब्दियों का इतिहास कला में देखना, यह समझना कि किस तरह समय के साथ कला की शैली में परिवर्तन आये, यह जानना कि क्यों कोई चित्र बनवाया गया, बहुत दिलचस्प लगा.
सभी भित्तिचित्रो के बारे में बताना तो कठिन होगा, पर नमूने के तौर पर आज के टूर से एक चित्र का विवरण प्रस्तुत है. यह चित्र एक गैलरी में बना है जिसे सन 1600 के पास बनवाया गया, जब बोलोनिया शहर कैथोलिक धर्म यानि पोप के शासन का हिस्सा था और पोप ने एक पादरी को शहर का गर्वनर बनाया था.
इस भित्तिचित्र में नीचे की ओर बने हैं ग्रीक देवता मर्करी यानि बुध, जो कि तारों भरे आकाश की चादर को हटा कर पीछे से स्वर्ग में क्या हो रहा है उसका दृश्य दिखा रहे हैं. स्वर्ग में दायीं ओर शान्ति तथा न्याय खड़ी हैं, उनके हाथ में पोप का मुकुट है जिसे देवताओं के राजा जुपिटर यानि बृहस्पति आशीर्वाद दे रहे हैं.
जब ईसाई धर्म आया था तो उसने प्राचीन ग्रीक तथा रोमन देवी देवताओं को झूठे देवी देवता कह कर नकार दिया था. लेकिन 1600 के आसपास रिनेसेंस काल में प्राचीन ग्रीक सभ्यता को मानव सभ्यता का सबसे उच्चतम स्वरूप कहा जाने लगा था. ग्रीक ज्ञान, वास्तुशिल्प शैली, दर्शन आदि को कलाकार, दर्शनशास्त्री, वैज्ञानिक महत्व देने लगे थे. ऐसे में यह चित्र यह दिखा रहा था कि प्राचीन ग्रीक देवता भी पोप का सम्मान करते थे. चूँकि तब तक उन पुराने देवी देवताओं की कोई पूजा नहीं करता था और न ही समाज में उनका कोई महत्व बचा था, इसलिए पोप द्वारा अपनी शक्ति को बढ़ाने के लिए प्राचीन ग्रीक देवी देवताओं के प्रयोग में कोई कठिनाई नहीं थी.
टूर के बाद वहीं पर ब्राज़ील की पशु, पक्षी तथा प्राकृतिक सम्पदा पर एक प्रदर्शनी लगी थी उसे देखने गया. प्रदर्शनी देख कर निकल रहा था तो नगरनिगम के उस कक्ष के सामने से गुज़रा जहाँ सिविल विवाह होता है. अन्दर कक्ष पर नज़र पड़ी तो वहाँ साड़ी पहनी एक युवती दिखी. मन में जिज्ञाया जागी कि किसकी शादी हो रही है. अन्दर जा कर पूछा तो मालूम चला कि वालेन्तीना नाम की युवती का विवाह था जो पाकिस्तानी युवक जहीर से विवाह कर रही थी. फ़िर वालेन्तीना को देखा तो समझ में आया कि मैं उस युवती को जानता था. वह भरतनाट्यम सीखती है और उससे कई बार मुलाकात हो चुकी थी. कुछ देर के लिए मैं भी उसके विवाह में शामिल हुआ.
वालेन्तीना और जहीर विवाह के लिए अन्दर गये तो एक अन्य इतालवी युगल विवाह करके बाहर निकला. इस बार वधु वर से कुछ लम्बी थी पर जोड़ी बहुत सुन्दर थी. बाहर प्रांगण में उनके रिश्तेदारों ने उन पर चावल फैंके, गुब्बारे छोड़े, रंगीन कागज़ के फुव्हारे छोड़े. उन सब के साथ मैंने भी थोड़ी देर उनके पारिवारिक समारोह का आनन्द लिया.
नगरनिगम भवन से बाहर आया तो एक अनोखी कलाकार पर दृष्टि पड़ी. एक युवती हाथ में हारमोनिका बजा रही थी और घुटने से बँधे धागों को हिला कर कठपुतलियों से नृत्य करा रही थी. उसका नाम भी वालेन्तीना था. थोड़ी देर रुक मैंने भी उसका संगीत और कठपुतली का कार्यक्रम देखा.
आखिर में जब घर पहुँचा तो लगा कि छुट्टी के पहले दिन का प्रारम्भ बढ़िया रहा. शायद इसका अर्थ है कि अमरीका में बाकी की छुट्टी भी बढ़िया ही बीतेगी. अब तो आप से अमरीका से वापस आने पर ही मुलाकात होगी.
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वाह हमेशा की तरह ही सुंदर चित्र व उतना ही सुंदर वर्णन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद काजल :)
हटाएंसुन्दर वृत्तांत एवं चित्र
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विवेक :)
हटाएंWhat a beautiful day :-) Certainly enriching for us too!
जवाब देंहटाएंIt was a wonderful morning, full of beautiful experineces! Thanks :)
हटाएंआपकी कलम से इटली के नजारे पढ़ने और देखने को मिले। अद्भुत । घुटनों से कठपुतली नचाने वाली कलाकार तो पहली बार ही देखे। और यह देखकर भी अच्छा लगा कि वहां भी विवाह समारोह हमारे देश जैसे ही गहमागहमी वाले होते हैं। आपकी यात्रा का हर दिन इसी तरह बीते।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद राजेश जी :)
हटाएंनई पोस्ट, नई उर्जा। मनमोहक चित्रमय झांकी।.. वाह !
जवाब देंहटाएंरोचक विवरण, पहली सुबह सा..
जवाब देंहटाएंअमेरिका से लौटकर वहां के भी ऐसे ही दिलकश नजारों से अपने नजरिये से रूबरू करवाइए, इंतज़ार रहेगा|
जवाब देंहटाएंसुंदर चित्र व सुंदर वर्णन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर! अभी कहाँ हैं? सम्भव हो तो कार्यक्रम की सूचना दीजिये।
जवाब देंहटाएंआप सब लोगों को धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंस्मार्ट इन्डियन जी, उत्तर में देरी के लिए क्षमा कीजिये. मैं आजकल दीसी के पास बेथेस्डा में हूँ और बुधवार को वापस यूरोप चला जाऊँगा.
आभार सुनील जी. यह पोस्ट देखने में मुझे देर हो गयी थी। कोई बात नहीं, फिर कभी मुलाक़ात का अवसर मिला तो नहीं चूकूंगा।
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