शनिवार, जून 17, 2023

प्राचीन भित्ती-चित्र और फ़िल्मी-गीत

कुछ सप्ताह पहले मैं एक प्राचीन भित्ती-चित्रों की प्रदर्शनी देखने गया था। दो हज़ार वर्ष पुराने यह भित्ती-चित्र पोमपेई नाम के शहर में मिले थे। उन चित्रों को देख कर मन में कुछ गीत याद आ गये। भारत में फ़िल्मी संगीत हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन जाता है, और हमारे जीवन में कोई भी परिस्थिति हो, उसके हिसाब से उपयुक्त गीत अपने आप ही मानस में उभर आते है। यह आलेख इसी विषय पर है।

पोमपेई के प्राचीन भित्ती-चित्र

इटली की राजधानी रोम के दक्षिण में नेपल शहर के पास एक पहाड़ है जिसका नाम वैसूवियो पर्वत है। आज से करीब दो हज़ार वर्ष पूर्व इस पहाड़ से एक ज्वालामुखी फटा था, जिसमें से निकलते लावे ने पहाड़ के नीचे बसे शहरों को पूरी तरह से ढक दिया था। उस लावे की पहली खुदाई सन् १६०० के आसपास शुरु हुई थी और आज तक चल रही है।



इस खुदाई में समुद्र तट के पास स्थित दो प्राचीन शहर, पोमपेई और एरकोलानो, मिले हैं जहाँ के हज़ारों भवनों, दुकानों, घरों, और उनमें रहने वाले लोगों को, उनके कुर्सी, मेज़, उनकी चित्रकला और शिल्पकला, आदि सबको उस ज्वालामुखी के लावे ने दबा दिया था और जो उस जमे हुए लावे के नीचे इतनी सदियों तक सुरक्षित रहे हैं।

मैं पोमपेई के भग्नवषेशों को देखने कई बार जा चुका हूँ और हर बार वहाँ जा कर दो हज़ार वर्ष पहले के रोमन जीवन के दृश्यों को देख कर चकित हो जाता हूँ। जैसे कि नीचे वाले चित्र में आप पोमपेई का एक प्राचीन रेस्टोरैंट देख सकते हैं - इसे देखते ही मैं पहचान गया क्योंकि इस तरह के बने हुए ढाबे और रेस्टोरैंट आज भी भारत में आसानी से मिलते हैं।
 

इन अवषेशों से पता चलता है कि उस ज़माने में वहाँ के अमीर लोगों को घरों की दीवारों को भित्तीचित्रों से सजवाने का फैशन था, जिनमें उनके देवी-देवताओं की कहानियाँ चित्रित होती थीं। इन्हीं चित्रों की एक प्रदर्शनी कुछ दिन पहले बोलोनिया शहर के पुरातत्व संग्रहालय में लगी थी।

पोम्पेई कैसा शहर था और ज्वालामुखी फटने से क्या हुआ इसे समझने के लिए आप एक छोटी सी (८ मिनट की) फिल्म को भी देख सकते हैं जो कि बहुत सुंदर बनायी गयी है।

अब बात करते हैं पोमपेई के कुछ भित्तीचित्रों की जिन्हें देख कर मेरे मन में हिंदी फिल्मों के गीत याद आ गये।

प्रार्थना करती नारी

नीचे वाला भित्तीचित्र पोमपेई के एक बंगले में मिला जिसे चित्रकार का घर या सर्जन (शल्यचिकित्सक) का घर कहते हैं। इसमें एक महिला स्टूल पर बैठी है, उनके सामने एक मूर्ति है और मूर्ति के नीचे किसी व्यक्ति का चित्र रखा है। चित्र के पास एक बच्चा बैठा है और नारी के पीछे दो महिलाएँ खड़ी हैं। चित्र को देख कर लगता है कि वह नारी भगवान से उस व्यक्ति के जीवन के लिए प्रार्थना कर रही है। सभी औरतों के वस्त्र भारतीय पौशाकों से मिलते-जुलते लगते हैं।
 

इस चित्र को देखते ही मुझे १९६६ की फ़िल्म "फ़ूल और पत्थर" का वह दृश्य याद आ गया जिसमें राका (धर्मेंद्र) बिस्तर पर बेहोश पड़ा है और विधवा शांति (मीना कुमारी) भगवान के सामने उनके ठीक होने की प्रार्थना कर रही है, "सुन ले पुकार आई, आज तेरे द्वार लेके आँसूओं की धार मेरे साँवरे"।

इसी सैटिन्ग में "लगान" का गीत "ओ पालनहारे" भी अच्छा फिट बैठ सकता है। वैसे यह सिचुएशन हिंदी फिल्मों में अक्सर दिखायी जाती है और इसके अन्य भी बहुत सारे गाने हैं।

संगीतकार और जलपरी की कहानी

पोमपेई के भित्ती-चित्रों में ग्रीक मिथकों की कहानियों से जुड़े बहुत से भित्ती-चित्र मिले हैं। जैसे कि प्राचीन ग्रीस के मिथकों की एक कहानी में भीमकाय शरीर वाले पोलीफेमों को जलपरी गलातेया से प्यार था, उन्होंने संगीत बजा कर उसे अपनी ओर आकर्षित करने की बहुत कोशिश की लेकिन जलपरी नहीं मानी क्यों कि वह किसी और से प्यार करती थी। नीचे दिखाये भित्ती-चित्र में पोलीफेमो महोदय निर्वस्त्र हो कर गलातेया को बुला रहे हैं जबकि गलातेया अपनी सेविका से कह रही है कि इस व्यक्ति को यहाँ से जाने के लिए कहो।


इस चित्र की जलपरी सामान्य महिला लगती है और उनके वस्त्र व वेशभूषा भारतीय लगते हैं। मेरे विचार में भारत में अप्सराओं को गहनों से सुसज्जित बनाते हैं जबकि यह जलपरी उनके मुकाबले में बहुत सीधी-सादी लगती है।

जैसा कि इस चित्र में दिखाया गया है, प्राचीन रोमन तथा यवनी भित्तीचित्रों में पुरुष शरीर की नग्नता बहुत अधिक दिखती है और उसकी अपेक्षा में नारी नग्नता कम लगती है। इस चित्र को देख कर मुझे लगा कि इसमें पोलीफेमो अनामिका फिल्म का गीत गा रहा है, "बाहों में चले आओ, हमसे सनम क्या परदा", जबकि जलपरी कन्यादान फिल्म का गीत गा रही है, "पराई हूँ पराई, मेरी आरजू न कर"।

यवनी सावित्री और सत्यवान

प्राचीन ग्रीस की भी एक सावित्री और सत्यवान की कहानी से मिलती हुई कथा है। उनके नाम थे अलसेस्ती और अदमेतो, लेकिन इनकी कथा भारतीय कथा से थोड़ी सी भिन्न थी।

जब अदमेतो को लेने मृत्यु के देवता आये तो अदमेतो ने उनसे विनती की कि उन्हें नहीं मारा जाये, तो मृत्यु देव ने कहा कि वह उनके बदले उनके परिवार के किसी भी व्यक्ति की आत्मा ले कर चले जायेंगे, जो  उनकी जगह मरने को तैयार हो।

अदमेतो ने अपने माता-पिता से अपनी जगह पर मरने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। तब उनकी पत्नी अलसेस्ती बोली कि वह उसकी जगह मरने को तैयार थी। मृत्यु देव अलसेस्ती की आत्मा को ले कर वहाँ से जा रहे थे जब भगवान अपोलो ने उसे जीवनदान दिया और वह पृथ्वी पर अपने पति के पास लौट आयी।

इस चित्र में नीचे वाले हिस्से में अदमेतो, अलसेस्ती और उनके दास को दिखाया गया है। ऊपरी हिस्से में, उनके पीछे बायीं ओर अदमेतो के बूढे माता-पिता हैं और दायीं ओर, अलसेस्ती और भगवान आपोलो हैं।
 

इस चित्र में अलसेस्ती की वेशभूषा और उसके चेहरे का भाव मुझे बहुत भारतीय लगे, जबकि अदमेतो को निर्वस्त्र दिखाया गया है।
 
सावित्री-सत्यवान की कहानी पर बहुत सी फ़िल्में बनी हैं, लेकिन इस सिचुएशन वाला उनका कोई गीत नहीं मालूम था, उसकी जगह पर मेरे मन में एक अन्य गीत याद आया, “मार दिया जाये कि छोड़ दिया जाये, बोल तेरे साथ क्या सलूक किया जाये"। कहिये, यह गीत इस सिचुएशन पर भी बढ़िया फिट बैठता है न?

विश्वामित्र और मेनक

कालीदास की कृति "अभिज्ञान शकुंतलम" में ऋषि विश्वामित्र की तपस्या भंग करने के लिए इन्द्र स्वर्गलोक से अप्सरा मेनका को भेजते हैं, और उनके मिलन से शकुंतला पैदा होती है। अगले चित्र में ऐसी ही स्वर्ग की एक देवी की प्राचीन यवनी कहानी है।

इस ग्रीक कथा में स्वर्ग की देवी सेलेने का दिल धरती के सुंदर राजा एन्देमेनों पर आ जाता है तो वह खुद को रोक नहीं पाती और कामातुर हो कर उनसे मिलन हेतू धरती पर आती है। यह कहानी भी उस समय बहुत लोकप्रिय थी क्योंकि इस विषय पर बने बहुत से भित्तीचित्र मिले हैं। नीचे वाले चित्र में सेलेने निर्वस्त्र हो कर एन्देमेनो कीओर आ रही हैं, उनकी पीछे एक एँजल बनी है।


इस कथा के अनुसार देवी सेलेने उससे प्रेम करते समय एन्देमेनों को सुला देती है, इस तरह से वह सोचता है कि वह सचमुच नहीं था बल्कि उसने सपने में किसी सुंदर अप्सरा से प्रेम किया था।

इस तस्वीर को देख कर मेरे मन में आराधना फ़िल्म का यह गीत आया - “रूप तेरा मस्ताना, प्यार मेरा दीवाना, भूल कोई हमसे न हो जाये"। इस सिचुएशन पर अनामिका फ़िल्म का गीत, "बाहों में चले आओ, हमसे सनम क्या परदा" भी अच्छा फिट होता।

हीरो जी

अंत में अपने हीरो जैसे शरीर पर इतराते एक युवक की शिल्पकला है, जिसे देख कर मुझे सलमान खान की याद आई। इस शिल्प कला से लगता है कि उस समय अमीर लोगों का अपने घरों में नग्न पुरुष शरीर को दिखाना स्वीकृत था।


जब मैंने इस कलाकृति को देखा तो मन में सलमान खान का गीत "मैं करूँ तो साला करेक्टर ढीला है" याद आ गया। अगर कोई आप से इस युवक के चित्र के लिए गीत चुनने को कहे तो आप कौन सा गीत चुनेंगे?

मैंने पढ़ा कि शिल्प और चित्रकला में पुरुष शरीर को दिखाने की ग्रीक परम्परा में पुरुष यौन अंग को छोटा दिखाना बेहतर समझा जाता था, क्यों कि वह लोग सोचते थे कि इससे पुरुष वीर्य जब बाहर निकलता है तो वह अधिक गर्म और शक्तिशाली होता है, जबकि अगर वह अंग बड़ा हो गा तो वीर्य बाहर निकलते समय ठंडा हो जायेगा और उसकी शक्ति कम होगी।

अंत में

मुझे पोमपेई की गलियों और घरों में घूमना और वहाँ के दो हज़ार साल पहले के जीवन बारे में सोचना बहुत अच्छा लगता है।

भारत में मध्यप्रदेश में भीमबेटका में आदि मानव के जीवन और महाराष्ट्र में अजंता जैसी गुफाओं में भगवान बुद्ध के समय के जीवन, या फ़िर उत्तर-पश्चिम में लोथाल, गनेरीवाला और राखीगढ़ी जैसी जगहों पर पुरातत्व अवशेषों से और भित्ती-चित्रों से सिंधु घाटी सभ्यता को समझने के मौके मिलते हैं, लेकिन पोमपेई तथा एरकोलानो में जिस तरह से उस समय का समस्त जीवन पिघले हुए लावे में कैद हो गया, वह दुनिया में अनूठा है।

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2 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन जानकारी और चित्रों के अनुसार हिंदी फिल्म के गीतों का कमाल का संगम

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"जो न कह सके" पर आने के लिए एवं आप की टिप्पणी के लिए धन्यवाद.

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