इटली के सबसे प्रसिद्ध कलाकारों में दो नाम सबसे ऊपर हैं, लेयोनार्दो द विंची और माईकलएँजेलो। लेयोनार्दो को उनकी चित्रकला और माईकलएँजेलो को उनकी शिल्पकला के लिए जाना जाता है। पैरिस के लूव्र संग्रहालय में रखी लेयोनार्दो की कलाकृति "मोनालिज़ा" शायद दुनिया की सबसे प्रसिद्ध कलाकृति है।
इस पहली तस्वीर में लेयोनार्दो के गाँव विंची में उनकी एक कलाकृति पर आधारित स्मारक दिखाया गया है। विंची का गाँव, रोम से करीब दो सौ किलोमीटर उत्तर में इटली के तस्कनी प्रदेश में अपेनीनी पहाड़ों में स्थित है।
चित्रकला के साथ-साथ, लेयोनार्दो को विभिन्न आविष्कारों के लिए भी जाना जाता है। अपनी डायरी में उन्होंने विभिन्न आविष्कारों के चित्र और उन्हें कैसे बनाया जाये, इसकी विधियाँ लिखीं थीं। उन आविष्कारों में हवाई जहाज़, हैलीकोप्टर, टैंक, पानी का पम्प आदि शामिल हैं, जिन्हें कई सौ सालों के बाद मानव ने बनाया। इनकी वजह से लेयोनार्दो को जीनियस यानि महाबुद्धिमान मानते हैं।
यह आलेख उनके वंशजों से ले कर उनके गाँव विंची से होता हुआ उनके बनाये शेर के खिलौने तक जाता है।
लेयोनार्दो के महाबुद्धिमान वशंज
लेयोनार्दो का जन्म विंची नाम के पहाड़ी गाँव में सन् १४५२ में हुआ और उनकी मृत्यु ६८ साल की उम्र में फ्राँस में हुई। कुछ समय पहले उनके वंशज-पुरुषों में उनकी डी.एन.ए. की जाँच की गई ताकि यह पता चले कि उनमें से कितनो को लेयोनार्दो के जीन्स मिले हैं, जिनसे वह भी जीनियस हो सकते हैं।
मानव शरीर के कोषों में डी.एन.ए. के २३ धागों के जोड़े होते हैं जिन्हें क्रोमोज़ोम कहते हैं, हर क्रोमोज़ोम पर जीन्स होते हैं। मनुष्यों में लिंग के हिसाब से एक क्रोमोज़ोम के जोड़े को सैक्स क्रोमोज़ोम कहते हैं, जो बच्चियों में एक जैसे होते हैं, एक्स और एक्स, जबकि लड़कों में इस सैक्स क्रोमोज़ोम के जोड़े में दो विभिन्न धागे होते हैं, एक्स और वाई। वाई क्रोमोज़ोम केवल उनके पिता से मिलता है, जबकि एक्स क्रोमोज़ोम पिता या माता किसी से भी मिल सकता है।
लियोनार्दो के वंशजों को खोजने के लिए उनके परिवार के लड़कों के डी.एन.ए. की जाँच की गई। उनके वंशजों की छह शाखाएँ मिलीं, उनमें से ३९ पुरुषों में से छह पुरुषों में पाया गया कि उनका वाई क्रोमोज़ोम बिल्कुल लेयोनार्दो जैसा था। नीचे की इस तस्वीर में, जो एक इतालवी अखबार से ली गई है, आप उनमें से पाँच लोगों को देख सकते हैं।
हालाँकि उनका वाई जीन्स लेयोनार्दो जैसा है, लेकिन वह सभी सामान्य सफलता वाले लोग हैं, उनमें से कोई भी जीनियस और जगप्रसिद्ध कलाकार नहीं है। उनमें से एक कुर्सियों पर कपड़ा चढ़ाने का काम करते हैं, एक बैंक में लगे हैं, एक नगरपालिका में काम करते हैं, एक अन्य दफ्तर में। लेकिन नम्बर दो पर ८९ साल के दलमाज़िओ ने कुछ छोटे-मोटे आविष्कार अवश्य किये हैं, जबकि माउरो के कुर्सियों, सोफों आदि के कपड़ा चढ़ाने के हुनर को बड़े-बड़े लोग मानते हैं, उन्होंने दुनिया के कई प्रसिद्ध नेताओं-अभिनेताओं के लिए फर्नीचर तैयार करने का काम किया है।
इनके परिवारों की कहानियों में इनके लक्कड़दादा के लक्कड़दादा लेयोनार्दो को छोड़ कर, ऐसे किसी व्यक्ति की बात नहीं सुनने को मिलती जिससे लगे कि वह महाबुद्धिमान थे।
लेयोनार्दो का घर
करीब पंद्रह साल पहले, एक दिन घूमते हुए हम लोग लियोनार्दो के गाँव विंची में पहुँच गये। यह गाँव फ्लोरैंस शहर के करीब के पहाड़ों पर बसा है। उनके घर को संग्रहालय की तरह रखा गया है लेकिन वहाँ लियोनार्दो की कोई कलाकृति आदि नहीं है, क्योंकि उनकी हर कृति की कीमत करोड़ों में आँकी जाती है और उन्हें छोटी-मोटी जगहों पर नहीं रखते। ऊपर वाली तस्वीर में लेयोनार्दो के घर का एक हिस्सा है और नीचे वाली तस्वीर में, उनके घर के बाहर का रास्ता है।
लेयोनार्दो का शेर
लेयोनार्दो को चाभी से चलने वाले खिलौने बनाने का बहुत शौक था। उनके बनाये खिलौनों को उस समय के राजा-महाराजों को उपहार के लिए दिया जाता था। मुझे एक बार बोलोनिया में एक प्रदर्शनी में उनके बनाये चाभी से चलने वाले छोटा सा लकड़ी का शेर को देखने का मौका मिला, जिसमें चाभी भरते थे तो वह पिछले पैरों पर खड़ा हो कर अपनी छाती खोल देता था, जहाँ फ़ूलों का गुलदस्ता लगा होता था। कहते हैं कि इस शेर को खतरनाक माना गया क्योंकि वह अपने भीतर फ़ूलों की जगह पर बम भी छुपा सकता था, जिससे राजा को मार सकते थे।
ऐसा ही एक चाभी से चलने वाला चीता हिन्दुस्तान में टीपू सुल्तान के पास भी था, जिसे अब लंदन के विक्टोरिआ-एल्बर्ट संग्रहालय में देखा जा सकता है। यह लकड़ी का चीता आकार में बहुत बड़ा था और किसी यूरोप के सिपाही को मार कर खाता दिखता था। इसकी चाभी चलाओ यह चीता मुँह चलाता और मरे सिपाही की बाजू हिलती थी। चीता और सिपाही भारत के किसी कारीगर ने बनाये लेकिन उनके भीतर के मशीनी हिस्से यूरोप से लाये गये थे।
अंत में
बात शुरु हुई अखबार के समाचार से जिसमें लियोनार्दो के वंशजों की बात थी, वहाँ से गई लियोनार्दो के गाँव विंची में और फ़िर वहाँ से लेयोनार्दो के शेर से होते हुए, टीपू सुल्तान की चीते तक पहुँची। आशा है कि आप को यह यात्रा मज़ेदार लगी। नीचे की आखिरी तस्वीर में लेयोनार्दो के घर से पहाड़ का विहंगम दृष्य है, सोचिये कि जब वह बच्चे थे और सुबह उठ कर बाहर देखते थे तो उन्हें यह दृष्य दिखता था।
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