खैर बात को वापस अपनी साईकल की ओर ले चलते हैं. मेरे सभी मित्रों के पास साईकल ही थी, एक साथ मिल कर पढ़ने और घूमने जाते. कितनी भी दूर क्यों न जाना हो, जब तक साईकल थी, कुछ अन्य चिंता नहीं होती थी. नयी दिल्ली की बहुत सी सड़कें जो आज दुगनी या तिगुनी चौड़ी हो कर भी, यातायात से नयी टथपेस्ट की तरह भरी रहती हैं, उस समय साईकलों पर घूमने के लिए बहुत अच्छीं थीं. न भीड़ भड़क्का, न यह डर कि तेज कार चलाने वाले आप को नीचे गिरा दें.
तब मन में कभी यह भाव नहीं आया कि साईकल चलाना हमारे सम्मान या शान को कम करता है. तब भी वेस्पा और लेम्बरेटा होते तो थे पर इतने कम कि उनके लिए लोगों में लालच नहीं बना था. स्कूल के बाद कोलिज जाना शुरु किया तो भी साईकल से ही जाते. पर जब कोलिज से निकले तो जमाना बदल चुका था. बजाज और चेतक जैसे स्कूटर बाजार में आ रहे थे. बहुत महीने पहले उनकी बुकिंग करानी पड़ती, तब जा कर मिलते. लगा जैसे अचानक साईकल चलाना हीन बन गया हो, गरीबी की निशानी, स्कूटर न खरीद पाने की निशानी. हमारी साईकल भी रख दी गयी और कुछ दिन खाली रहने के बाद, मां के विद्यालय का माली उसे ले गया.
कुछ और दस सालों के बाद दुनिया फिर बदली. बाजार में मारुती आयी थी और मध्यमवर्ग की आकांक्षाएँ और ऊपर बढ़ीं. गाड़ी होनी चाहिये साहब, वरना जीवन में क्या रुतबा है. हमारा बजाज भी गया और उसकी जगह आयी नयी मारुती. अब शायद दिल्ली जाऊँ तो साइकल पर चढ़ने की हिम्मत नहीं होगी. लगता है कि वहाँ का सबसे प्रमुख यातायात नियम है, "जिसका जोर उसी का अधिकार". शायद साइकल वाले भी पैदल चलने वालों पर धौंस जमाते हों, पर स्कूटर और कारों के सामने बेचारे साईकल वाले बहुत सावधान रहते हैं.
और आज इटली में ? नयी दुनिया और नये विचार. एक तरफ बढ़ता वजन और रक्तचाप, हर कोई यही सलाह देता है कि व्यायाम कीजिये और वजन कम कीजिये. दूसरी तरफ पर्यावरण प्रदूषण के बारे में जानकारी और समझ बढ़ी है. साईकल से बढ़िया इलाज क्या मिलता. गर्मियों में काम पर जाने के लिए साईकल पर ही जाता हूँ, आठ किलोमीटर का ही तो रास्ता है, जिसका बहुत सा भाग बागों और खेतों के बीच में गुजरता है. किसी लाल बत्ती पर एक के पीछे एक लगी गाड़ियों की कतार को देखता हूँ, हर गाड़ी में लोग गुस्से वाले चेहरे लिए बैठे होते हैं, तो मन को बहुत खुशी होती है, उनके बीच में से सीटी बजाते हुए गुजरते हुए फट से निकल जाने में ! साईकल छाप हूँ मैं और इसका गर्व है मुझे.
आज की तस्वीर भी बटलर स्कूल के साथियों की याद में.










