भारतीय पारम्परिक सोच के अनुसार लड़की का अपना कोई महत्व नहीं, वह शादी से पहले अपने पिता की होती है और शादी के बाद अपने पति की. शहरों में इस तरह की पाराम्परिक सोच से ऊपर उठने की कोशिश की जा रही है, पर इस प्रश्न से लगता है कि लड़कियाँ अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व बना सकें इसमें अभी बहुत सा काम करना बाकी है, वरना प्रतिष्ठित, संवेदनशीन फिल्में बनाने वाले इस तरह का प्रश्न पूछ पाते? जिससे वह प्रश्न कर रहे हैं उसके दादा प्रसिद्ध कवि थे, नाना जाने माने पत्रकार, माता पिता तो प्रसिद्ध हैं ही. और जिस लड़की की बात हो रही है वह कोई सामान्य युवती नहीं, मिस वर्ल्ड रह चुकी हैं, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जानी पहचानी अभिनेत्री हैं. अगर इन सब के बाद इस तरह का प्रश्न पूछा जा सकता है तो आप सोचिये कि साधारण युवतियों के लिए यह सोच कैसे बदलेगी?
शायद इस तरह का प्रश्न इस लिए पूछा गया क्योंकि पिछले दिनो में बच्चन राय विवाह के सम्बंध में आने वाले बहुत से समाचार पुराने दकियानूसी तरह के हैं जैसे कुण्डियाँ मिलवाना, मंदिरों में कन्या के माँगलिक होने के बुरे प्रभाव को हटाने के लिए पूजा करवाना और उसकी पेड़ से शादी करवाना? यानि कि जब सब कुछ पाराम्परिक सोच में है तो विवाह होने के बाद ऐश्वर्या के भविष्य की बात भी पाराम्परिक ही होनी चाहिये और इसलिए उन्हें विवाह के बाद काम करने के लिए पति की अनुमति चाहिये?
पर क्या जब हरिवँशराय बच्चन ने तेजी जी से प्रेमविवाह किया था तो क्या कुण्डली मिलवा कर किया था? या अमिताभ बच्चन ने जया भादुड़ी से विवाह के लिऐ कुण्डली मिलवायी थी? उनकी जो जनछवि है उसको सोच पर तो यह नहीं लगता पर शायद उस ज़माने में प्रेस इस तरह की बातों में इतनी दिलचस्पी नहीं लेती थी और शायद वह सभी इस तरह की परम्पराओं में विश्वास करते थे?
मैं यह नहीं कहता कि सभी युवतियों को विवाह के बाद काम करना चाहिये. पति और पत्नी दोनों काम करें या उनमें से कोई एक घर पर रहे, यह उनका आपस का निर्णय हो सकता है, उनकी अपनी इच्छा या आर्थिक परिस्थिति पर निर्भर हो सकता है. पर अगर पति को विवाह के बाद काम के लिए पत्नी की अनुमति नहीं लेनी पड़ती तो पत्नि को ही क्यों इसकी अनुमति लेनी चाहिये, यह समझ में नहीं आता?
कुछ समय पहले एक फ़िल्म आयी थी "लक्ष्य" जिसमें प्रीति जिंटा जो पत्रकार का भाग निभा रहीं थी कुछ ऐसी ही बात कहती हैं अपने मँगेतर से जब वह उसे कारगिल जाने से रोकता है, और वह इस बात पर शादी तोड़ देतीं हैं. परदे पर जो भी ही, असली जीवन में शायद ऐसा कम ही होता हो. यह भी सच है कि विषेशकर छोटे शहरों में और गावों में, आज भी नयी बहु को कुछ भी करने के लिए सास ससुर या पति की अनुमति चाहिये, पर क्या एश्वर्या जैसी लड़की के साथ यह हो सकता है?
फ़िल्मों में और सच के जीवन में यही फर्क होता है. यह सोच कर कि पढ़े लिखे परिवार से हैं, विदेश में पढ़े हैं, फ़िल्मों में उदारवादी और अन्याय से लड़ने वाले पात्रों का भाग निभाते हैं तो हम लोग सोचने लगते हैं कि शायद व्यक्तिगत जीवन में भी ऐसे ही हों. यही भ्रम है, सच और परदे के जीवन का!