लंदन जाना मुझे अच्छा लगता है हाँलाकि वहाँ जाने का अर्थ अधिकतर मेरे लिये अंतहीन मीटिंगस् होती हैं, जो जब स्माप्त होतीं हैं तो सिर दर्द कर रहा होता है. इस बार भी यूँ ही हुआ. जो कसर बची थी वह बारिश और ठंड ने पूरी कर दी. फ़िर भी सोचा कुछ तो अपने होटल से बाहर निकलना ही चाहिये. यही सोच कर मैं ब्रिक लेन की तलाश में निकल पड़ा.
लंदन की गाईड पुस्तिका कहती है कि ब्रिक लेन पहले घटिया सा गन्दा इलाका समझा जाता था, पर आज बंगलादेशी समुदाय के लोगों की वजह से सारे इलाके का काया पलट हो गया है. लिवरपूल स्टेशन के आसपास का सारा इलाका आज तो बहुत सुंदर लगता है. हाथ मे नक्शा ले हर मैं भी निकल पड़ा. चलते चलते बहत दूर निकल आया पर आसपास "छोटे बंगलादेश" का कोई निशान नहीं दिखा. फ़िर नक्शे को दुबारा से देखा. इतना छोटा छोटा सब दिखाया था उस नक्शे में के कि सड़कों के नाम पढने के लिये मुझे ऐनक उतार कर उसे आँखों के पास लाना पड़ा पर फ़िर भी कुछ समझ नहीं आया. शायद मेरी सूरत देख कर उन्हें दया आ गयी और एक महिला रुक गयीं. मैंने पूछा तो उन्होंने इशारे से रास्ता बताया. फ़िर से चल दिया और फ़िर से काफ़ी चलने के बाद भी जब ब्रिक लेन न मिली तो एक बार फ़िर किसी से पूछना पड़ा. उतनी देर में बारिश शुरु हो गयी थी.
अंत में जब ब्रिक लेन मिली तो मैं कुछ भीग चुका था. कुछ खास नहीं लगी यह ब्रिक लेन, दोनों तरफ बंगलादेशी रेस्टोरेंट, कोई इक्का दुक्का अन्य दुकान जैसे बंगाली कपड़ों की या किताबों या संगीत की. कुछ कुछ साउथहाल जैसा. सोचा कि इतनी तारीफ कर के एक ऐसी चीज़ जो शहर की अंग्रेज़ी खूबसूरती की बीच में बंगलादेशी हल्ला गुल्ला ले आयी हो, उसे ठीक तरीके से बेचना बहुत अच्छा आता है इन लंदन वालों को. टूरिस्ट घूमते हैं, खरीदारी करते हैं, बंगलादेशी दुकानदार भी अच्छी कमाई करते हैं, सभी खुश हैं. आसपास अधिकतर लोग बंगला बोल रहे थे, कोई कोई हिन्दी भी बोल रहा था. मुझे मिठाई खरीदने में हिन्दी में अपनी बात समझाने में भी कोई कठिनाई नहीं हुई.
लंदन में हर तरफ २०१२ के ओलिम्पिक खेलों की चर्चा हो रही थी कि वे इंग्लैड को मिलेंगे या फिर पैरिस को, या मोस्को को या न्यू योर्क को. वापस आते समय, हवाई जहाज़ में पायलेट ने सूचना सुनायी कि २०१२ के ये खेल इंग्लैंड में ही होंगे तो सभी अंग्रेजं यात्रियों ने तालियाँ बजा कर इस समाचार का स्वागत किया.
दो दिन के लिये गया था लंदन और ये दो दिन तो बीते ठंडक और बारिश मे. इटली में आ कर गरमियों को फ़िर से पाया हालाँकि आज तो केवल २६ डिग्री का तापमान है यहाँ, पर कम से कम स्वेटर या जैकेट पहनने की ज़रुरत तो नहीं है.
आज प्रस्तुत हैं लंदन की दो तस्वीरें - ब्रिक लेन और लिवरपूल स्टेशन
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
इस वर्ष के लोकप्रिय आलेख
-
हिन्दू जगत के देवी देवता दुनिया की हर बात की खबर रखते हैं, दुनिया में कुछ भी ऐसा नहीं जो उनकी दृष्टि से छुप सके। मुझे तलाश है उस देवी या द...
-
अगर लोकगीतों की बात करें तो अक्सर लोग सोचते हैं कि हम मनोरंजन तथा संस्कृति की बात कर रहे हैं। लेकिन भारतीय समाज में लोकगीतों का ऐतिहासिक दृष...
-
अँग्रेज़ी की पत्रिका आऊटलुक में बँगलादेशी मूल की लेखिका सुश्री तस्लीमा नसरीन का नया लेख निकला है जिसमें तस्लीमा कुरान में दिये गये स्त्री के...
-
पिछले तीन-चार सौ वर्षों को " लिखाई की दुनिया " कहा जा सकता है, क्योंकि इस समय में मानव इतिहास में पहली बार लिखने-पढ़ने की क्षमता ...
-
पत्नी कल कुछ दिनों के लिए बेटे के पास गई थी और मैं घर पर अकेला था, तभी इस लघु-कथा का प्लॉट दिमाग में आया। ***** सुबह नींद खुली तो बाहर अभी ...
-
सुबह साइकल पर जा रहा था. कुछ देर पहले ही बारिश रुकी थी. आसपास के पत्ते, घास सबकी धुली हुई हरयाली अधिक हरी लग रही थी. अचानक मन में गाना आया &...
-
हमारे घर में एक छोटा सा बाग है, मैं उसे रुमाली बाग कहता हूँ, क्योंकि वो छोटे से रुमाल जैसा है। उसमें एक झूला है, बाहर की सड़क की ओर पीठ किये,...
-
हमारे एक पड़ोसी का परिवार बहुत अनोखा है. यह परिवार है माउरा और उसके पति अंतोनियो का. माउरा के दो बच्चे हैं, जूलिया उसके पहले पति के साथ हुई ...
-
२५ मार्च १९७५ को भी होली का दिन था। उस दिन सुबह पापा (ओमप्रकाश दीपक) को ढाका जाना था, लेकिन रात में उन्हें हार्ट अटैक हुआ था। उन दिनों वह एं...
-
गृत्समद आश्रम के प्रमुख ऋषि विद्यार्थियों को पढ़ा रहे थे, जब उन्हें समाचार मिला कि उनसे मिलने उनके बचपन के मित्र विश्वामित्र आश्रम के ऋषि ग...
सुनिल जी ,
जवाब देंहटाएंआपक यात्रा-वर्णन बहुत ही रोचक है । सचमुच आपके आने से हिन्दी ब्लाग जगत को एक नया आयाम मिला है ।
अनुनाद
सुन्दर वर्णन। मज़ा आ गया ब्रिक लेन के बारे में पढ़ के। मैं वहां गया तो कई बार हूं लेकिन इस तरह का वर्णन अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएं