एक बार कहीं पढ़ा था कि चित्रकला विधि में सन १३०० और १४०० के आसपास पहली बार मानव शरीर के प्राकृतिक भावों का चित्रण होने लगा. इसकी शुरुआत इटली के कुछ चित्रकारों ने की. उससे पहले चित्रकारों का उद्देश्य था कि केवल सुंदर भावों वाले शरीर ही बनायें. माइकल एंजलो के कई चित्र हैं जिनमें झर्रियों वाले बूढ़े, टेड़े मेड़े शरीर वाले या बिना दाँत वाले, आम लोगों का चित्रण है.
क्या यह बात भारत पर भी लागू होती है? मुझे केवल इतना मालूम है कि मध्ययुगीन भारत में मुगल, काँगड़ा आदि चित्रकला की शैलियाँ थी, जिनमें मानव शरीर विषेश नियमबद्ध तरीके से दिखाये जाते थे, जिससे उनके प्राकृतिक रुप या भाव के बारे में कहना कठिन है. पर अगर पुरानी मूर्तियों के बारे में सोचूं या अजंता की गुफाओं में बने चित्रों के बारे में सोचूं तो कह नहीं सकता कि भारत में असुंदर या बैडोल व्यक्ति या भावों का चित्रण पुराने जमाने में कभी नहीं हुआ.
इटली के मध्ययुगीन चित्रकारों में से माइकल एंजलो और लियोनारदो दा विंची के नाम तो जग प्रसिद्ध हैं. पर उस युग के मेरे सबसे प्रिय कलाकार हैं कारावाज्जो (Caravaggio). उनका असली नाम था माइकल एंजलो मेरीसी, वह १५७१ में पैदा हुए और १६१० में ४१ वर्ष के आयु में मर गये. उन्हें इटली में "बदकिस्मत चित्रकार" के नाम से भी जानते हैं. उनके चित्र अपने "कियारो ओस्कूरो" (chiaro oscuro) यानि धूप-छाँव के प्रभावों के लिए प्रसिद्ध है. उनके हर चित्र में अँधेरे का बहुत महत्व है और चित्रपट का बहुत सा भाग काला होता है. अँधेरे में एक कोने से आती रोशनी की रेखा उनके बनाये पात्रों के चेहरों पर भावों को स्पष्ट कर देती है. परछाईयों से घिरे उनके बनाये चेहरों में मुझे लगता है कि मानव पीड़ा, स्नेह, गुस्सा, प्यार आदि भावनाएं ऐसी कोई अन्य चित्रकार नहीं दिखा पाया.
कारावाज्जो की चित्रकला के दो नमूने प्रस्तुत है. अगर आप उनके अन्य चित्र देखना चाहते हैं तो गूगल की तस्वीर खोज पर Caravaggio लिख कर देखिये.
***
राजेश जी आप के संदेश के लिए बहुत धन्यवाद. जिस किताब की मैं बात कर रहा था उसका पूरा नाम है "बंगला की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ", इसे रमाशंकर द्विवेदी ने सम्पादित किया है और २००२ में दिल्ली के साक्षी प्रकाशन ने छापा है.
गुरुवार, नवंबर 10, 2005
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