मिस्री मूल के लेखक और पत्रकार श्री मगदी अल्लाम (Magdi Allam) इटली के लोकप्रिय अखबार "कोरियेरे देला सेरा" (Correire Della Sera) के वरिष्ठ सम्पादक दल का हिस्सा हैं. पिछले कुछ समय से वह इस्लामी जिहाद और आतंकवाद के विरुद्ध लिख रहे हैं जिसकी वजह से उन्हें जान से मारने की धमकियाँ मिलीं हैं और उन्हें इतालवी सरकार ने राजकीय सुरक्षा दी है. पाकिस्तानी नेता बेनज़ीर भुट्टो के खून के बारे में 29 दिसंबर की अखबार में "इस्लाम और जनतंत्र" के नाम से बहुत कठोर सम्पादकीय लिखा है. उनका कहना है किः
"इस्लाम और जनतंत्र में आपसी विरोधाभास है और यह दोनो बातें एक साथ नहीं हो सकतीं कि इस्लाम बहुमत के देश में जनतंत्र स्थापित हो. जो भी देश अपने आप को "इस्लामी जनतंत्र" का नाम देते हैं जैसे पाकिस्तान, ईरान, अफगानिस्तान आदि, वहाँ जनतंत्र है ही नहीं. इस्लामी कान्फेरेंस संस्था के 56 देशों में से कोई भी देश जनतंत्र के नियमों का पूरी तरह से पालन नहीं करता, वहाँ जनतंत्र नाम के लिए है और वहाँ विभिन्न मानव अधिकारों की अवहेलना की जाती है... आधुनिक इतिहास यही दिखाता है कि इस्लामी बहुल्य के देश के जनतंत्र तभी सही होता जब शासन में धार्मिक वर्ग को अन्य जननीतियों से अलग रखा जाये. अगर यह भेद नहीं रखा जाता तो रूढ़िवादी और कट्टरपंथी लोग आम जीवन की हर बात में अपनी दखलदाँज़ी की जबरदस्ती करते हैं. चूँकि इस्लाम में कोई एक व्यक्ति या पद नहीं जिसे सबसे ऊपर माना जाये, हर धार्मिक नेता अपनेआप को धर्म का सच्चा रखवाला कहता है और चाहता है कि उसकी बात मानी जाये. इसी वजह से, इतिहास बताता है कि अन्य धर्मों से झगड़ा करने से पहले, इस्लाम अपने भीतर ही झगड़ों में उलझा रहा है..."कल, 28 दिसंबर के एक अन्य इतालबी अखबार "लिबेरात्स्योने" (Liberazione) में, इतालवी पत्रकार फ्राँचेस्का मार्रेत्ता का लिया हुआ पाकिस्तानी मूल के ईण्लैंड में रहने वाले प्रसिद्ध लेखक हनीफ़ कुरैशी से एक साक्षात्कार भी छपा है. उसे भी आज ही पढ़ा. उन्होंने ने भी कुछ इसी तरह की बात कही हैः
"पाकिस्तान को मुसलमानों के लिए जनतंत्र की तरह सोच कर बनाया गया था, पर मुसलमान जनतंत्र में नहीं रह सकते, क्योंकि वे धर्म को बाकी सब बातों के सामने रखते हैं. मेरा अपना व्यक्तिगत विचार है कि पाकिस्तान को अलग देश नहीं बनाना चाहिये था, उसे भारत का हिस्सा ही रहना चाहिये था."फ़िर पढ़ा भारतीय अँग्रेजी की अखबार इँडियन एक्सप्रेस (Indian Express) में श्री अरुण शोरी का नया लेख, "हिंदुत्व तथा उग्रवादी इस्लामः जहाँ यह दोनो मिलते हैं" (Hindutva and radical Islam: Where the twain do meet). इस लेख में शोरी जी का कहना है कि "हिंदुत्व उग्रपंथी इस्लाम से कम कट्टरपंथी नहीं है" वाली बात में अतिश्योक्ति है पर साथ ही कुछ सच्चाई भी है और हर धर्म के ग्रंथों में हिंसा को सही मानने वाली बात मिल सकती है. वह गाँधी जी के हिंदू विश्वास और बाल गंगाधर तिलक के हिंदू विश्वास की विभिन्नता की बात करते हैं और कहते हैं कि भगवद् गीता से हमें हिंसा का हिंसा से उत्तर देने की शिक्षा मिलती है.
उनके लेख पढ़ कर कुछ डर सा लगा, मानो वे चेतावनी दे रहे हों कि हिंदू हिँसा बढ़ने वाली है, बढ़ रही है. उससे भी अधिक डर लगा इस बात से कि शायद वह इस हिंसा को ही उचित मान रहे हैं.
शायद आज यह समझना आवश्यक है कि उग्रवाद, रूढ़िवाद, कट्टरपन, आदि जैसी बातें किसी एक धर्म की धरौहर नहीं, हर धर्म को अपनी चपेट में ले सकती हैं, हर धर्म को निर्भीक विचारक चाहियें जो किसी भी रुप में हिंसा को उचित न स्वीकारें, जो हमेशा उसका विरोध कर सकें. जो यह माने कि कोई भी धर्म मानव से हट कर या ऊँचा नहीं, और हर धर्म में मानव को उस पर खुल कर बहस करने, उसकी आलोचना करने का अधिकार हो.