"सुबह यहाँ शहर की छोटी जेल देखने गया. शहर के बीचों बीच बहुत सुंदर जगह पर बनी है. सामने मिलेटरी की अकेडमी का भव्य भवन है. जेल के सामने से निकलिये तो भी वह दिखाई नहीं देती. नीची टूटी फूटी इमारत है. सलेटी रंग के पत्थर की दीवार पुराना खँडहर सी लगती है.
अंदर घुसे तो एक टीन की छत वाली खोली में हमें बिठा दिया गया. खोली में एक युवक बैठा टाईपराईटर पर कुछ टिपटिप करता लिख रहा था. उसके सामने मेज़ पर अपने हाथों में सिर छुपा करके एक और युवक बैठा था जिसके हाथ में कँपन हो रहा था. सोचा कि शायद वह युवक बेचारा अभी नया नया जेल में लाया गया है और उसी के कागज़ तैयार हो रहे हैं.
जेल का भवन बहुत नीचा सा एक मंजिला है. भीतर से लोगों के बात करने और चिल्लाने की आवाज़ें आ रहीं थी. बीच बीच में तेज गँध का झौंका भी आ जाता, हालाँकि जुकाम से मेरी नाक आजकल बंद है इसलिए गँध कम सूँघ पाता हूँ. तभी मेरे करीब खड़े एक सिपाही ने अपनी बंदूक की सफाई करना और उसमें गोलियाँ भरना शुरु कर दिया. पहले कभी कालाशनिकोव बंदूक इतने करीब से नहीं देखी थी, और उसमें भरती एक के बाद एक गोलियों की कतार को देख कर थोड़ी सी घबराहट हुई. सोचा कहीं गलती न चल जाये.
तभी जेल के भीतर से एक सिपाही बाहर निकला और कुछ क्षणों के लिए दरवाजे से जेल के कैदी दिखाई दिये. जाँघिया पहने नंगे काले बदन, जाल में फँसी मछलियों जैसे. उनके ऊपर पानी डाल कर उनकी सफाई की जा रही थी. फ़िर दरवाजा बंद हो गया. वापस खोली में, सिर नीचा करके बैठा काँपते हाथों वाला युवक अब टाँगें फैला कर मेज़ पर यूँ बैठा था जैसे यहाँ का अफसर हो. मन में सोचा कि शायद वह कोई नशा करता हो जिससे उसके हाथ यूँ काँप रहे थे.
कुछ देर बाद कैदियों का नहाना पूरा करके उन्हें वापस बंद कर दिया गया था और हमें जेल में भीतर ले गये. पाँच कमरे हैं इस जेल में जिसमें 90 कैदियों की जगह है. पहले कमरा नम्बर 1 में गये. घुसते ही जी मिचला गया, मन किया की भाग जाऊँ और भीतर न देखूँ. नीचे एक साथ आगे पीछे कतार में बैठे युवकों को देख कर लगा पुराने अफ्रीकी गुलामों को बेचने जाने वाले जहाज़ पर बनी फिल्म का दृष्य हो. भीतर की ओर चार छोटी खिड़कियाँ थी और एक कोने में एक पाखाना. पीछे की दीवार पर नीले प्लास्टिक के थैलों में कैदियों का सामान लटका था. और सामने जमीन पर उकड़ू बैठे 217 अधिकतर जवान लड़के, एक दूसरे के साथ सटे. दिन रात कैसे रहते हैं यह 217 लोग इस छोटे से कमरे में जिसमें ज़्यादा से ज़्यादा 10 या 12 पलँग लग सकते हैं! वे खाते सोते कैसे हैं ? सुबह पाखाने में अगर उनमें से हर आदमी केवल २ मिनट लगाये, तो भी सबकी बारी आने में सात या आठ घँटे चाहिये. अंदर पानी का नल भी नहीं है.
दूसरा कमरा बीमार कैदियों के लिए था, तीसरे कमरे में पुराने और बिगड़े हुए खतरनाक कैदी थे.कमरा नम्बर चार अँधेरा कमरा था जहाँ सजा देने के लिए कैदियों को अँधेरे में रखा जाता है. वहाँ से किसी की आवाज़ आ रही थी. कमरा नम्बर पाँच जो सबसे बड़ा था, उसमें 271 कैदी थे.
यह नर्कतुल्य जेल उन कैदियों के लिए है जिनका मुकदमा नहीं पूरा हुआ और जिनकी सज़ा नहीं निर्धारित हुई. साल या छहः माह तक की छोटी सजा पाने वाले कैदी भी यहीं रहते हैं. जेल में फोटो नहीं खींच सकते, यह कहा गया मुझसे जब मैंने कमरे में बकरियों की तरह ठूँसे लड़कों की तस्वीर लेनी चाही.
प्रस्तुत हैं इसी यात्रा से कुछ तस्वीरें.



